देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की चंपारण शताब्दी वर्ष मना रहा है । दिल्ली से लेकर बिहार तक प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री सभी बड़े-बड़े कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। हर तरफ गांधी ज्ञान की गंगा बहाई जा रही है, लेकिन गांधी के आदर्शों, विचारों और उनके नाम पर चलने वाली संस्थाओं की दुर्दशा का हाल किसी से छिपा नहीं है । 1917 में चंपारण आगमन के दौरान शिक्षा और किसानों की दुर्दशा सुधारे पर गांधी जी का जोर था। गांधी जी के इस काम में उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी कंधे से कंधा मिलकार चलीं, लेकिन आज उन्हीं के नाम पर बिहार में चलने वाले कस्तुरबा गांधी विद्यालय के कर्मचारियों की बुरी दशा है और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं, लिहाजा सभी कर्मचारी गांधी मार्ग को अपनाते हुए शांतिपूर्ण हड़ताल पर चले गए हैं कर्मचारियों का आरोप है कि केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित मानदेय का भुगतान राज्य सरकार नहीं करती।
बिहार में 244 कस्तुरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय हैं । इस विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों ने आंदोलन के पहले चरण में अपने-अपने जिला मुख्यालयों पर धरना दिया । मशाल जुलूस निकाला और इस पर भी जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो राजधानी में सचिवालय के पास धरने पर बैठ गये। इनका केन्द्र ने कस्तुरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय के वार्डेन का मानदेय प्रतिमाह 22 हजार 772 रूपये निर्धारिय किया है और बिहार सरकार उन्हें मात्र 7200 रूपये दे रही है। शिक्षिका का मानदेय 7000, रात्रि प्रहरी, चपरासी और मुख्य रसोईया का मानदेय 3500 , सहायक रसोईया को 2900 और लेखापाल को 5800 रूपये मानदेय मिलता है। वार्डेन और शिक्षिका समेय तमाम कर्मियों की बहाली संविदा पर की जाती है। इन्हें 24 घंटे छात्रावास में रहने की बाध्यता है। छुट्टी साल में मात्र 30 दिन। आकस्मिक अवकाश और अन्य पर्व त्योहार की छुट्टी भी इसी में शामिल है। महिलाएं अपने छोटे बच्चे को अपने साथ नहीं रख सकतीं। इस बात की सख्त मनाही है । दूसरे के बच्चों का भविष्य गढ़ने वाली कस्तुरबा आवासीय बालिका विद्यालय की शिक्षिकाओं को अपने बच्चे के भविष्य से बेखबर रहने की मजबूरी है।
बिहार में कस्तुरबा गांधी आबासीय बालिका विद्यालय मे दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक वैसी बालिकाओं का नामांकन होता है जो विभिन्न कारणों से शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल होने से वंचित हैं। इसमें 11 से 14 साल की बालिकाओं का छठी कक्षा में नामांकन होता है।इनमें ज्यादातर वैसी ही बच्चियां होती हैं जिन्होंने पारिवारिक कारणों से 5वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी। एक कस्तुरबा आवासीय विद्यालय में 100 छात्राओं का नामांकन होता है। प्रतिवर्ष जितनी बच्चियां आठवीं उतीर्ण होती हैं, उनकी जगह फिर नया नामांकन होता है। छात्रावास में छात्राओं को मुफ्त भोजन, वस्त्र, पाठ्य सामग्री भी उपलब्ध कराई जाती है । बीमारी की स्थिति में उसके इलाज का भी प्रावधान है। एक तरह से देखा जाए तो यह कार्यक्रम कस्तुरबा गांधी की बालिका शिक्षा के प्रति योगदान की याद दिलाने वाला है, लेकिन इसमें कार्यरत शिक्षिकाओं और अन्य कर्मियों की उपेक्षा सरकार की नीयत का भी खुलासा करती है।
अब इसे संयोग माने या संगठन के पदाधिकारियों का आंदोलन का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम कि कस्तुरबा आवासीय विद्यालय के कर्मी ऐसे वक्त पर अपनी मांग मनवाने के लिए गांधीवादी तरीके से आंदोलन चला रहे हैं जब बिहार में गांधी के चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह का आयोजन हो रहा है। बापू 10 अप्रैल 1917 को चम्पारण जाने के लिए मुजफ्फरपुर आए थे। यहां वे 5 दिन ठहरने के बाद 15 अप्रैल को चम्पारण के लिए प्रस्थान कर गये। वहीं उन्होंने शिक्षा की भी अलख जगाई थी । खुद अपनी पत्नी कस्तूरबा को चम्पारण बुलाया था। शिक्षा के अपने अभियान में सहयोग करने के लिए। अब देखना है कि गांधी के चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में कस्तुरबा गांधी आवासीय विद्यालय के शिक्षकों और कर्मचारियों का दिन बहुरता भी है या नहीं।
ब्रह्मानंद ठाकुर/ BADALAV.COM के अप्रैल 2017 के अतिथि संपादक। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। गांव में बदलाव को लेकर गहरी दिलचस्पी रखते हैं और युवा पीढ़ी के साथ निरंतर संवाद की जरूरत को महसूस करते हैं, उसकी संभावनाएं तलाशते हैं।