संजय पंकज
बोल गया फागुन
अंग अंग में
जाने कैसा रस
घोल गया फागुन !
रंग नयन में
गंध सांस में
प्राण बंध अनुबंध हास में
तैर गगन में
उतर धरा पर
बोल अबोले
बोल गया फागुन !
गुन गुन गाती
धूप सुनहरी
रंग रूप की बातें गहरी
छंद अनूठे
मन में भरता
रचता राग
हिंडोल गया फागुन!
अधर-अधर पर
कली सलोनी
लगी मचलने कुछ अनहोनी ,
अलि ने पी कर
रस की हाला
छलकायी तो
डोल गया फागुन ।
संजय पंकज। युवा कवि एवं लेखक ‘यवनिका उठने तक ‘, ‘मां है शब्दातीत , ‘मंजर मंजर आग लगी है ‘ , यहां तो सब बंजारे , सोच सकते हो सहित अनेक काव्य कृतियां एवं वैचारिक लेखों का संग्रह ‘समय बोलता है ‘प्रकाशित। सम्प्रति निराला निकेतन पत्रिका बेला का सम्पादन। सम्पर्क शुभानंदी, नीतीश्वर मार्ग, आम गोला मुजफ्फरपुर। आपसे मो.न.–09973977511 या
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