‘यहां तक आते-आते सूख जाती हैं नदियां, मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा होगा । वैसे तो कवि दुष्यंत ने ये लाइन कई बरस पहले लिखी लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज के दौर में बखूबी फिट बैठती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीति और नीयत पर हमेशा जोर देते रहे हैं। हालांकि ना तो सरकार की नीयत का कुछ पता चल रहा है और ना ही नीतियां कारगर हो रही हैं। हर दिन सरकार पुरानी योजनाओं को नया अमलीजामा पहनाकर ढोल पीटती है। 2014 में मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद गरीबों और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए मुद्रा योजना की शुरूआत की। प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया कि इससे स्वरोजगार करने वालों को मदद मिलेगी और सूदखोरों से समाज को मुक्ति मिलेगी, लेकिन दो बरस बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं। ये हम नहीं कह रहे बल्कि वो युवा कह रहे हैं, जिन्हें अपना रोजगार बढ़ाने के लिए मुद्रा योजना से लोन लेने के लिए बैंकों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इनमें कईयों को ना तो लोन मिल रहा ना ही कोई वजह बताई जा रही है। बिहार के मुजफ्फरपुर में एक युवा कारोबारी मुमताज को मुद्रा लोन के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े फिर भी उन्हें इसका लाभ नहीं मिला और हारकर उन्हें सूदखोरों की शरण में ही जाना पड़ा। मुमताज बंदरा के विष्णुपुर मेहसी का निवासी और गायघाट प्रखंड के बखरी में उनकी छोटी-सी रेडीमेड गारमेंटस की दुकान है । बदलाव के लिए ब्रह्मानंद ठाकुर ने मुमताज की आपबीती जानने की कोशिश की।
बदलाव- आपको अपना कारोबार शुरू करने या उसे बढ़ाने का विचार कैसे आया ?
मुमताज– ये एक दशक पहले की बात है । इन्टर मीडिएट करने के बाद आर्थिक तंगी की वजह से पढ़ाई आगे जारी नहीं रख सका। इस बीच शादी भी हो गई और बदहाली के बीच एक नई जिम्मेदारी सिर पर आ गई। लिहाजा 2003 में रोजगार की तलाश में दिल्ली चला गया। 5-6 बरस तक प्राइवेट कंपनी में 1500 से 2500 तक की छोटी-मोटी नौकरी की, लेकिन ज्यादा दिन नौकरी रास नहीं आई और दिल्ली, गुड़गांव के चक्कर काटने के बाद 2010-11 में वापस गांव लौट आया और ग्रेजुएशन पूरा किया। दूसरी बार नौकरी की तलाश में कोलकाता की और चल पड़ा, लेकिन वहां भी हालात में कोई खास अंतर नहीं 12 घंटे की ड्यूटी लेकिन पगार बहुत ही मामूली। किचकिच ऊपर से । इस बीच जो थोड़ा बहुत पैसा कमाया था उसी से अपना रोजगार शुरू करने का मन बनाया और वापस गांव लौट आया।
बदलाव- कारोबार के लिए पैसा और हुनर दोनों की जरूरत होती है ?
मुमताज– दिमाग में पोल्टी फार्म खोलने का आइडिया आया लेकिन इसके लिए पूरे पैसे मेरे पास नहीं थे लिहाजा महाजन से 5 रुपये सैकड़ा के हिसाब से कुछ कर्ज लिया और छोटा सा पोल्ट्री फॉर्म घर पर ही खोल दिया।
बदलाव- फिर पोल्ट्री फॉर्म बंद क्यों करना पड़ा?
मुमताज– शुरू में तो सब कुछ ठीक रहा। ऐसा लगा कुछ दिन में मेरे हालात बदल जाएंगे, आमदनी भी अच्छी होने लगी थी लेकिन समय साथ नहीं दिया । उसी समय (नवम्बर, 15 से मार्च 2016 तक) बर्डफ्लू का प्रकोप हुआ और सब कुछ तबाह हो गया । पंजाब, हरियाणा और यूपी जैसे राज्यों में इस बीमारी के फैल जाने से बड़ी मात्रा में मुर्गियां बाहर भेजी जाने लगी। बीमार मुर्गियों को मार कर मिट्टी में गाड़ देने के बजाय चोरी छुपे कम कीमत पर बाहर भेज देने से इसके रेट में अप्रत्याशित कमी आ गयी। थोक भाव 20 रूपये किलो तक हो गया। बीमारी के प्रकोप से हमारी भी कुछ मुर्गियां मर गयीं । हालात ये हो गये कि लागत निकालना मुश्किल हो गया।
बदलाव- फिर क्या हुआ ?
मुमताज– मुर्गीपालन व्यवसाय ठप हो जाने के बाद मैं पूरी तरह हताश हो गया। समझ में नहीं आ रहा था कि आगे अब क्या करूं जिससे रोजी-रोटी चल सके। इस बीच अखबारों और शहर में जगह-जगह मुद्रा योजना की होर्डिंग लगी देखी। पीएम मोदी की तस्वीर के साथ पोस्टर में योजना की जानकारी दी गई थी लिहाजा उम्मीद बंधी कि एक बार फिर मैं अपना कारोबार पटरी पर ला सकता हूं।
बदलाव- तो क्या आपने पोल्ट्री फर्म को नये सिरे से दोबारा शुरू करने के लिए लोन लिया ?
मुमताज– नहीं एक बार इस कारोबार में इतना टूट गया कि उसे दोबारा करने का मन नहीं किया लिहाजा रेडीमेट गारमेंट की दुकान खोलने की योजना बनाई और मुद्रा लोन लेने के लिए बैंक के दरवाजे पर जा पहुंचा। मुद्रा ऋण योजना में शिशु ऋण, किशोर ऋण और तरूण ऋण की बात कही गयी थी। मुझे 5 लाख तक के लोन की जरूरत थी लिहाजा मैंने किशोर ऋण योजना के तहत लोन की प्रक्रिया शुरू की ।
बदलाव- क्या आपको बैंक से लोन मिला ?
मुमताज– लोन मिलना तो दूर सही जानकारी तक नहीं दी गई। सबसे पहले मैं बैंक ऑफ़ बडौदा के पीरापुर शाखा के शाखा प्रबंधक से मिला। उनसे इस योजना के तहत ऋण देने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि मैं उनके बैंक के कार्यक्षेत्र में नहीं आता हूं। लिहाजा निराश होकर मैं बैंक आफ इण्डिया की पीयर ब्रांच के शाखा प्रवंधक से मिला। ये बैंक बंदरा प्रखंड का मेन बैंक है। पहले तो शाखा प्रबंधक ने कहा कि मैं उनके कार्य क्षेत्र में नहीं हूं। फिर मेरे यह पूछने पर कि मैं किस बैंक के कार्यक्षेत्र में हूं, यही बता दीजिए तो जवाब मिला एक हफ्ते बाद आइएगा। मैं लगातार वहां जाता रहा और मुझे अगले हफ्ते आने को कह कर टाल दिया जाता। महीनों बैंक के चक्कर लगाने के बाद आखिर मेरा धैर्य जवाब देने लगा और मैंने शाखा प्रबंधक से बड़ी विनम्रता से कहा- सर ! साफ साफ बता दीजिए कि लोन दीजिएगा या नहीं? इस पर उन्होंने कहा कि यहां से केवल मोरगेज करने पर ही लोन मिल सकता है। अब मेरे पास मोरगेज के लिए कुछ तो था नहीं सो निराश होकर लौट आया।
बदलाव- तो क्या फिर आप किसी बैंक नहीं गए ?
मुमताज– कुछ दिन बाद एक माध्यम मिला जो मुझे शहर के एक बैंक के ब्रांच में ले गया। वहां कार्यक्षेत्र में होने या न होने की बाध्यता तो खास नहीं थी, लेकिन दो लाख कर्ज के लिए 50 हजार का फिक्स्ड डिपोजिट करने और 15 प्रतिशत कमीशन की बात उस माध्यम ने बतायी। यानी 2 लाख के लिए पहले मुझे 80 हजार का इंतजाम करना होगा। जबकि मुझे 5 लाख की जरूरत थी लिहाजा कमीशन देने की बजाय मैंने वापस लौटना ही उचित समझा ।
बदलाव- लेकिन आपने तो अपनी रेडीमेड की दुकान खोल ली है फिर पैसे का इंतजाम कैसे हुआ ?
मुमताज– मेरे पास अब एक ही रास्ता था वो भी महाजन के पास जाने का । हालांकि यहां मुझे 5 रुपये सैकड़ा के हिसाब से कर्ज मिला लेकिन कारोबार शुरू करने के लिए किसी तरह पैसे का इंतजाम करना था लिहाजा मैंने कर्ज ले लिया। आज हालात ये है कि जो पूंजी बचती है वो महाजन का ब्याज चुकाने में ही खर्च हो जाती है । लिहाजा किसी तरह काम चल रहा है ।
बदलाव- तो क्या दोबारा कभी बैंक नहीं गए।
मुमताज– सर अब तो महाजन ही हमारा सहारा है ब्याज भले ही ज्यादा देने पड़ रहे लेकिन पैसे तो जरूरत के मुताबिक मिल गए । अब महाजन के पैसे चुकाऊं या फिर बैंक से दोबारा लोन लेकर दोहरी मार झेलूं वो भी तब जब ये भी नहीं पता कि बैंक लोन देगा या नहीं ।
बदलाव- आप सरकार की योजनाओं को किस रूप में लेते हैं ?
मुमताज– सरकार की योजनाएं अच्छी जरूर होती हैं। सुनने और बताने में जितना आसान लगता है वैसा होता नहीं, अगर बिना किसी गारंटर के लोन देने का प्रावधान है तो आखिर मुझे लोन क्यों नहीं दिया गया। मेरे जैसे देश के न जाने कितने युवा साथी बैंकों के चक्कर काट रहे होंगे इसलिए सरकार से गुजारिश है कि योजना बनाने से पहले उसके क्रियान्वयन के लिए सही व्यवस्था करे ताकि युवाओं को भटकना न पड़े।
ब्रह्मानंद ठाकुर/ बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के रहने वाले । पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। गांव में बदलाव पर गहरी दिलचस्पी रखते हैं और युवा पीढ़ी के साथ निरंतर संवाद की जरूरत को महसूस करते हैं, उसकी संभावनाएं तलाशते हैं।