पशुपति शर्मा
बर्फ़ीली वादियों में
तुम्हारा रक्त भी तो जम जाना था
वो जम न सका तो
कसूर तुम्हारा है मेरे भाई!
दाल-रोटी खाकर
प्रभु के गुण गाने से
तुमने क्यों कर ली तौबा
ये कसूर तो तुम्हारा ही है भाई!
लाखों की भीड़ में
तुमने ही क्यों उठाए चंद सवाल
वाकई तुम्हारा दिमाग ख़राब है
कहने की जरूरत है क्या भाई!
वक़्त बदलेगा, तारीखें बदलेंगी
किसी बर्फ़ीले तूफ़ान में
बन जाएगी तुम्हारी क़ब्र
हम भूल जाएंगे तुम्हें
हम भूल जाएंगे तुम्हारी कशिश
तुम्हारा दर्द
तुम्हारी बेबसी
तुम्हारा आक्रोश!
लेकिन हज़ारों-लाखों साल बाद भी
किसी ममी की तरह जिंदा रहेंगे
कई परतों में लिपटे तुम्हारे सवाल
तब भी महसूस होगी
जिंदा सवालों की तपिश
लेकिन मुर्दा जवाबों का दौर ख़त्म होगा
कह नहीं सकता मेरा भाई।
तुम आज अकेले हो
शायद, नितांत अकेले
तुम्हारे साथ नहीं है कोई कारवां
पलट कर देखने की जरूरत नहीं
एक ख़ामोश भीड़ चल रही है तुम्हारे साथ
वो कभी तो जुबां खोलेगी,
वो कभी तो बोलेगी
अपने मन की बात!
तो ऐ मेरे सिरफिरे भाई
मेरी एक बात मानोगे क्या
कभी अपने सवालों पर
अफ़सोस मत करना
ओ मेरे लड़ाके साथी
मैं बस तुम्हारी सवाल करने की
इस अदा का ही तो कायल हूं।
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।
Inqalabi Kavita hai…Bahut umda