सत्येंद्र कुमार यादव
ये तस्वीर यूपी के देवरिया के लार क्षेत्र की है । नोटबंदी के बाद से बैंकों के सामने लोगों की कतार अभी भी लंबी है। इसकी कई वजहें हैं। पहला तो खेतीबाड़ी का सीजन है और दूसरे बेटे-बेटियों की शादियां है। इसके लिए लोगों को कैश चाहिए। जिनके पास 500 और 1000 के नोट हैं वो भी बदलवाने के लिए लाइन में लगे हैं और जिनको पैसों की जरूरत है, वो भी। हालात ये हो गए हैं कि अगर एक हफ्ते के अंदर लोगों को पैसे नहीं मिले तो मारामारी की स्थिति आ सकती है। देवरिया समेत और जिलों के ग्रामीण इलाकों में कहीं एटीएम के बाहर हंगामा तो कहीं जिलाधिकारी का घेराव शुरू हो गया है। देश की अधिकांश करेंसी 500 और 1000 रुपए के नोट के रूप में थी और वो कुछ सरकारी संस्थानों को छोड़कर बाकी जगहों पर अमान्य हो चुकी है। ऐसे में लोगों के पास पैसे की भारी कमी हो गई है।
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में देश में कुल 17 लाख 50 हजार करोड़ की करेंसी प्रचलन में थी। जिनमें से 84 फीसदी यानि साढ़े 14 लाख करोड़ रुपए की करेंसी 500 और 1000 के नोट के रूप में थी, जो अब चलन से बाहर हो गई है। 500 और 1000 के नोट को छोड़कर बाकी करेंसी सिर्फ 3 लाख करोड़ के आस पास है जो बैंकों और बाजारों में है। इसके अनुपात में सरकार ने जो नई करेंसी मार्केट में लाई है वो एक लाख करोड़ से भी कम है। ऐसे में पर्याप्त मात्रा में 500 और 2000 रुपए के नोट अभी तक बैंकों की शाखाओं की पहुंच से बाहर है। नतीजा लोगों को 2-2 हजार रुपए देकर काम चलाया जा रहा है।
खेतीबाड़ी में 2 हजार रुपए से कुछ होने वाला नहीं है। हालांकि चेक से आप 24 हजार रुपए तक निकाल सकते हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में चेक का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है। चूंकि बैंकों में काफी भीड़ उमड़ चुकी है ऐसे में पासबुक के जरिए भी पैसे निकालने में मुश्किलें आ रही हैं । ग्रामीण इलाकों में बैंकों की शाखाओं की संख्या कम होने की वजह से भी दिक्कत है। किसी को शादी करनी है तो किसी को न्यौता भेजना है। बीमार लोगों को भी इलाज के लिए पैसे चाहिए। सरकार ने भले ही ऐलान कर दिया हो कि सरकारी अस्पतालों में 500 और 1000 रुपए के नोट चलेंगे (निजी अस्पतालों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है) लेकिन हकीकत ये है कि कोई भी पुराने नोट लेने को तैयार नहीं है। निजी अस्पताल तो मुंह फेर ले रहे हैं। मेडिकल स्टोर 100 रुपए की दवाई पर 500 का नोट लेने से मना कर रहे हैं। पेट्रोल पंप पर 500 रुपए से कम कीमत का तेल लेने पर लोगों को लौटा दिया जा रहा है। बसों में भी वही हाल है। छोटे व्यापारियों के पास 100-100 रुपए के इतने नोट नहीं हैं कि वो अपना कारोबार कर सकें। यानि एक तरह से ऐसी स्थिति हो गई है कि आम आदमी सरकार के फैसले के समर्थन में होकर भी अपनी परेशानियों की वजह से थोड़ा ख़फ़ा सा है।
जरा सोचिए जिन लोगों को उधारी खाद और बीज मिल जा रहा है उनका तो काम किसी तरह से चल जाता है। लेकिन अधिकांश लोग ऐसे हैं जिन्हें कोई दुकानदार उधार देने को तैयार नहीं है। पैसे के अभाव में तैयार खेत खाली पड़े हुए हैं। कुछ ट्रैक्टर वाले इस मौके का फायदा उठाने में जुटे हैं। जिस दिन पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था उसी दिन में गांव पहुंचा था। सुनने में मिला कि कुछ ट्रैक्टर वाले ब्याज पर खेती कराने के लिए तैयार हैं। यानि खेत की जुताई अभी करा लो और जब पैसे आ जाएं तो ब्याज के साथ लौटा देना। मजबूर किसान क्या ना करे। आखिर में ऐसे लालचियों की बात मानकर खेती कराने के लिए मजबूर है। क्योंकि नवंबर बीत जाने के बाद गेहूं की बुआई बहुत फायदेमंद नहीं होगी। दिसंबर में ठंड की वजह से गेहूं के बीज उगने में टाइम लेंगे और अगर किसी तरह से गेहूं तैयार भी हो गया तो पैदावार काफी कम होगी।
समस्या यही नहीं है कि पैसे नहीं मिल रहे हैं या पैसों के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। गांव के लोग आईडी प्रूफ की फोटोकॉपी कराने के लिए दर दर भटक रहे हैं। अगर कहीं फोटोकॉपी की जा रही है तो 10 रुपए प्रति कॉपी चार्ज किया जा रहा है। इसमें दिहाड़ी मजदूरों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। लाइन में लगने के लिए एक तो मजदूरी छोड़नी पड़ रही है वहीं फोटोकॉपी जैसे झमेलों में पड़कर पैसे और वक्त की बर्बादी भी हो रही है। बैंक का कर्मचारी अगर ओवरटाइम कर रहा है तो उसके पैसे बन रहे हैं। बाकी चीजों पर सरकार पैसे खर्च कर रही है लेकिन अगर किसी को नुकसान उठाना पड़ रहा है तो वो आम आदमी है। जिसे ना तो ओवरटाइम का मेहनताना मिलेगा और ना ही दिहाड़ी मजदूरी छोड़ने का मुआवजा। लाइन में खड़े खड़े कोई बीमार हो गया या किसी की मौत हो गई तो कोई पूछने वाला नहीं है।
नोटबंदी की मार से ऐसे निपटे सरकार!
अब सवाल ये है कि इस समस्या का समाधान क्या है? मेरी तरफ से सरकार के लिए कुछ सुझाव हैं जो इस भागमभाग और भीड़ को खत्म कर सकते हैं-
- बैंक मित्रों की संख्या बढ़ाई जाए और हर एक पंचायत में इनकी तैनाती की जाए।
- केंद्र सरकार शिक्षकों की मदद ले सकती है। एक बैंककर्मी के साथ 2 शिक्षक गांव-गांव कैश लेकर भेजे जाएं ताकि गांव स्तर पर लोगों की समस्या दूर कर दी जाए। इसमें सरकार पीएसी, आरएएफ और सीआरपीएफ के जवानों की मदद ले सकती है। जैसे किसी गांव में एक बैंककर्मी और 2 शिक्षकों के साथ 3-4 पुलिसकर्मी तैनात कर दिए जाएं ताकि पैसे की निगरानी हो सके।
- मोबाइल एटीएम की संख्या गांव में बढ़ा देनी चाहिए और चौबीस घंटे कैश की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। मोबाइल एटीएम को गांव-गांव भेजकर लोगों की परेशानियां दूर की जाएं।
- सहकारी समितियां भी सरकार की मदद कर सकती हैं।
- राज्य सरकार की मशीनरियों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
- जिनके घरों में शादी है उनके लिए अलग से काउंटर की व्यवस्था हो सके तो की जाए ताकि उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से ज्यादा परेशानी ना हो ।
- किसानों के लिए खाद-बीज विक्रय केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए या जो लोग खाद-बीज बेचते हैं उनकी मदद ली जाए। पासबुक में बैलेंस देखकर दुकानदार उन्हें खाद-बीज दे और स्थिति सामान्य होने पर उनके पैसों का भुगतान किया जा सके।
सरकार अगर पैसे की निकासी की व्यवस्था सरल बना दे तो लोगों की परेशानियां कम हो जाएंगी और अच्छे फैसले का बेहतरीन परीणाम सामने आ सकेगा। फिलहाल सरकार का ये फैसला काफी अच्छा है लेकिन अगर लोगों को तकलीफ होगी तो अच्छा फैसला भी सरकार के लिए नुकसानदायक हो सकता है। हर कोई चाहता है कि देश में कालाधन खत्म हो। काले कुबेरों पर कार्रवाई हो । सरकार ने पहले कोई व्यवस्था क्यों नहीं की, सवाल ये नहीं है। सवाल ये है कि फैसले के बाद फैली अव्यवस्था को व्यवस्थित जल्द किया जाए। क्योंकि जनता ज्यादा दिन तक कड़वी दवा का डोज नहीं ले पाएगी। विपक्षी अभी से नारा देने लगे हैं कि अमीर डर रहा है, गरीब मर रहा है, फिर कैसे देश बदल रहा है? विपक्ष चाहेगा कि सरकार का ये फैसला कामयाब ना हो । ऐसे में सरकार को चाहिए कि विपक्ष के इस मंसूबे को पूरा ना होने दे और देशहित में इस फैसले को सफल बनाने के हर पहलू पर काम करे।
सत्येंद्र कुमार यादव, एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर सक्रिय । मोबाइल नंबर- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।
सुझाव तो अच्छा और जरूरी है लेकिन इस पर अमल किया जाय तब न !वैसे यह सम्भव नही लगता कि दर्द देने वाला दवा भी दे ।