सितम्बर 2013 में यूएन जनरल असेम्बली के समय पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म ने पत्रकारों के साथ नाश्ते के दौरान कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ओबामा के सामने एक देहाती औरत की तरह शिकायत लगाई थी । इस बात को जियो न्यूज़ के एन्कर हामिद मीर ने, जो नाश्ते के वक्त मौजूद थे, अपने शो में बढचढकर, चटखारे ले-लेकर उछाला था । उसी नाश्ते में बरखा दत्त भी थीं, लेकिन बरखा का कहना था कि मियां साहेब ने ऐसे अल्फाज़ का इस्तेमाल नहीं किया था । बाद में नवाज भी अपनी बात से पीछे हट गए । उस समय पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने एक रैली में इसे जमकर मुद्दा बनाया और कहा कि मियां साहब को 120 करोड वाले मुल्क के प्रधानमंत्री के बारे में ऐसी बात कहने की हिम्मत कैसे हुई, और हमारे भारतीय पत्रकार ये सुनने के बावजूद नाश्ते से उठकर क्यों नहीं चले आए ?
अब वक्त बदला है । मियां साहब अपने मुल्क में इमरान खान और बिलावल भुट्टों के तीरों से छटपटा रहे हैं, मोदी के आदेश पर हुए सर्जिकल स्ट्राइक ने उन्हें जता दिया है कि पडोसी मुल्क के पीएम को देहाती औरत कहना कितना महंगा साबित हुआ है । पूरी दुनिया में कोई भी मुल्क पाकिस्तान के कश्मीर राग को सुनने के लिए तैयार नहीं है । ये मैं नहीं कह रहा हूं, ये पाकिस्तानी संसद में तमाम पार्टियों की लीडरान कह रहे हैं । मियां साहब, देहाती औरत की बात तो अपने ज़ेहन से निकाल दें, अब मर्दों वाली बात करें ।
मर्दों वाली बात होती है- 1- अपने रक्षा मंत्री से ये धमकी न दिलवाना कि हमने एटम बम नुमाइश के लिए नहीं रखे हैं ।
2- जिहाद के अफीमचियों को हथियार देकर फौजी ठिकानों पर अत्मघाती हमले के लिए न भेजना, हिम्मत हो तो अपनी फौज को भेजें और पता लगा लें कि हमारी फौज में कितना दम है ।
3- अपनी कुर्सी बचाने की खातिर अपने आर्मी चीफ के कहने पर उठक-बैठक न करना, आप अगर अपने मुल्क की अवाम के चुने हुए वजीरे आजम हो, तो हिम्मत करके अपने आर्मी को बताओ कि आतंकी तंजीमों को सरहद पार भेजने का तमाशा बन्द करें ।
अगर अब भी मर्दों वाली बात समझ में न आई, तो दुनिया यही कहेगी कि आप ही देहाती औरत हो, जो जॉन कैरी से लेकर तमाम मुल्कों से शिकायत लगा रहे हो । रही बात कश्मीर की, तो वो हमारी सरकार, हमारे नेताओं और कश्मीरी अवाम पर छोड दें, हम खुद सुलट लेंगे ।
रमेश परिदा, एडिटर, इंडिया टीवी (फेसबुक वॉल से)