विकास की आड़ में ‘विनाश’ का मीठा ज़हर घुल रहा है ?

विकास की आड़ में ‘विनाश’ का मीठा ज़हर घुल रहा है ?

एम अखलाक

GAON JWAR GROUP”भारत का पूंजीवादी विकास मॉडल शोषण पर आधारित है। इससे समाज का एकतरफा विकास हो रहा है, जबकि विकास सबकी जरूरत है। हमें तय करना होगा कि विकास किसके लिए और किस तरह का हो। जिस तरह दुनिया के चंद देशों ने कमजोर देशों का शोषण कर अपना विकास किया है,  क्या हम भी उसी तरह गरीबों व दबे-कुचलों का शोषण कर भारत का विकास करना चाहते हैं? हमने जो विकास का मॉडल अपनाया है वह समाज में असमानता पैदा कर रहा है।” यह कहना है प्रख्यात समाजवादी चिंतक व लेखक सच्चिदानंद सिन्हा का। उन्होंने मुज़फ़्फरपुर के नीतीश्वर कॉलेज में गांव जवार के लोक संवाद में मुख्य वक्ता के तौर पर कई गंभीर सवाल उठाए।

sachchidanand sinhaसच्चिदानंद सिन्हा के मुताबिक सरकारों ने बाजार के नजरिए से सब कुछ विकसित करने की ठान ली है। सिर्फ मुनाफा कमाना ही बाजार का चरित्र होता है। उसके भीतर मानवीय संवेदनाएं नहीं होतीं। यही कारण है कि इस मॉडल के बुरे परिणाम भी भुगत रहे हैं। भारत चूंकि गांवों और किसानों का देश है, इसलिए विकास का मॉडल गांवों से तय होना चाहिए। हमें ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि समुदाय खुद तय करें कि उसकी जरूरत क्या है, उसका विकास कैसा और कैसे होगा? पूंजीवादी मॉडल को खारिज करते हुए  उन्होंने कहा कि रूस ने अमेरिका बनने की होड़ की, अंजाम क्या हुआ सबको पता है? हम भी रूस की तरह भारत को इंडिया बनाने की होड़ में शामिल हैं, यह बेहद ख़तरनाक साबित होगा।

खेती और किसानों की स्थिति पर चर्चा करते हुए वीरेन्द्र राय ने कहा कि आजादी के बाद भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 65 फीसदी हिस्सा कृषि से पूरा होता था। वह लगातार घटता जा रहा है। आज हम कृषि अनुसंधान पर सिर्फ दो फीसदी खर्च करते हैं। किसानों की योजनाएं ऐसे नौकरशाह बनाते हैं, जो कभी खेतों में गए ही नहीं। ओवरब्रिज बनाने की हम प्लानिंग तो करते हैं लेकिन उत्पादन के लिए हम एडवांस प्लानिंग नहीं कर रहे हैं। बिहार में कभी 125 चीनी मिलें होती थीं लेकिन आज उनमें से कई बंद हैं। गन्ना उत्पादन में नंबर वन राज्य कहलाने वाला बिहार दो बार कृषि रोड मैप बना चुका है और सरकार खुद मान रही है कि कोई बेहतर परिणाम नहीं मिला। पूंजीवादी विकास मॉडल  यही तो चाहता है कि आम लोग खेती और किसान छोड़ दें, ताकि कंपनियां उनके खेतों से मुनाफा कमा सकें।
unnamed (5)सामाजिक कार्यकर्ता मृत्युंजय मिश्रा ने आमलोगों के संदर्भ में बैंकिंग सेवा की नीतियों पर चर्चा की। कहा कि देश में बड़े कर्जदारों के लिए सेक्रेसी एक्ट बना है। उनकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं हो सकती, लेकिन मामूली कर्ज लेने वालों को जेल भेज दिया जाता है। 17 हजार 48 सौ करोड़ बड़े घरानों के पास बकाया है। वहीं बैंकों को 18 फीसदी राशि कृषि पर खर्च करनी है, लेकिन बैंक ऐसा नहीं करते हैं। कृषि प्रधान देश में यह कदम घातक है। एक तरफ सरकारी बैंकों को मर्ज करने की बात हो रही है, दूसरी तरफ प्राइवेट बैंक खोलने के लिए लाइसेंस दिए जा रहे हैं। ये पूंजीवादी विकास मॉडल नहीं तो फिर क्या है ।

unnamed (1)सामाजिक कार्यकर्ता मनोज वर्मा ने बीमा क्षेत्र का जिक्र करते हुए कहा कि ”नई आर्थिक नीति को अपनाने के बाद निजी बीमा कंपनियां आमदनी की 26 फीसदी राशि विदेश भेज देती हैं। आईआरडीए ने गांव व गरीबों से जुड़ी कई योजनाएं बंद कर दीं। अब 60 साल से आगे बीमा नहीं होता है। 90 फीसदी बीमा योजनाएं 45-50 साल के बीच की हैं। वजह साफ है कि डेथ क्लेम घटेगा और पूंजी ज्यादा जमा होगी, जिससे कारपोरेट का मनचाहा विकास होगा। आजादी के बाद बीमा क्षेत्र का जो मकसद था अब नहीं रहा। यही वजह है कि नीतियां तेजी से बदली जा रही हैं। यह आम लोगों के हित में नहीं है।”

पर्यावरणविद सुरेश गुप्ता ने पर्यावरण को लेकर अपनी फिक्र सबके साथ साझा की। सुरेश गुप्ता का साफ कहना है कि ”पूंजीवादी मॉडल के कारण ही दुनिया भर में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पैदा हुई है। उन्होंने वीटी को जानलेवा वायरस बताते हुए न सिर्फ खेती व किसानों के लिए बल्कि लोगों की सेहत के लिए भी ख़तरनाक बताया। वीटी कपास उपजाने का परिणाम हम कैंसर के रूप में देख चुके हैं, अब वीटी सरसो उपजाने की बात चल रही है, यह जानलेवा साबित होगा। उन्होंने- अपनी खेती, अपना खाद, अपना बीज, अपना स्वाद की नीति पर चलने की वकालत की।

14237549_1053704501392311_5340866516943482873_nवरिष्ठ पत्रकार चंदन शर्मा ने मीडिया के बदलते स्वरूप की चर्चा करते हुए कहा कि बाजार का बुरा प्रभाव इस सेक्टर पर भी पड़ा है। पहले आजादी लक्ष्य था। फिर अर्थिक विकास, फिर सामाजिक विकास लक्ष्य हुआ। अब नई आर्थिक नीति के दबाव में हम उद्योग बन गए हैं। समाज की जरूरत क्या है और टीआएपी के खेल में हम क्या परोस रहे हैं, इस पर मंथन होना चाहिए। चंदन शर्मा ने मीडिया पर सामाजिक व आर्थिक मसलों से समाज का ध्यान हटाने के लिए तरह-तरह का स्वांग रचने का आरोप भी लगाया। बेहतर समाज के लिए स्वतंत्र मीडिया को जरूरी बताते हुए एक कंपनी के हाथ में सिमट रहे इस पेशे पर चिंता जाहिर की।

शिक्षाविद ब्रह्मानंद ठाकुर ने शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा करते हुए कहा कि देश में समान शिक्षा प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। लेकिन पूंजीवादी विकास माडल में इसकी गुंजाइश नहीं है। एक गहरी साजिश के तहत हमारी शिक्षा व्यवस्था को चौपट किया गया, ताकि हम विद्वान नहीं बनें, सिर्फ कामगार बनकर कंपनियों की सेवा करें।
इससे पूर्व लोक संवाद का प्रारंभ सकरा से आए डा दिग्विजय नारायण सिंह ने भावचंद्र भानू लिखित गांव जवार के टाइटल गीत से किया। अंत में प्रो अवधेश कुमार, आशुतोष कुमार, आनंद पटेल, बैजू कुमार, नागेन्द्रनाथ ओझा, हरिओम निशाद, स्वाधीन दास समेत कई लोगों ने वक्ताओं से सवाल पूछे। मंच संचालन अखलाक (लेखक स्वयं) ने किया।


ekhalaque profile

एम अखलाक। मुजफ्फरपुर के दैनिक जागरण में वरिष्ठ पद पर कार्यरत एम अखलाक कला-संस्कृति से गहरा जुड़ाव रखते हैं। वो लोक कलाकारों के साथ गांव-जवार के नाम से बड़ा सांस्कृतिक आंदोलन चला रहे हैं। उनसे 09835092826 पर संपर्क किया जा सकता है।