आशीष सागर दीक्षित
कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढुंढे वन माहि।
ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि।
वैसे तो ये पक्तियां कबीर ने राम भक्ति के संदर्भ में लिखी थी लेकिन आज सूखे बुंदेलखंड के लिए ये चरितार्थ हो रही है। हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड क्षेत्र में पड़ने वाले ललितपुर के बिरधा की रहने वाली कस्तूरी की। जिसके लिए कुआं किसी संजीवनी से कम नहीं। कस्तूरी के पुरुषार्थ की गीता, कुरान और बाइबिल है कुआं। बुंदेलखंड के दशरथ अहिरवार की तरह कस्तूरी ने वो कर दिखाया है, जो सरकार लाखों पैसे खर्च करने के बाद भी नहीं कर सकी। कस्तूरी के लिए पानी के सभी रास्ते बंद हो गए थे, परिवार के सामने पानी का संकट देख कस्तूरी ने कुआं खोदने का मन बनाया और एक दिन अपनी जमीन पर खुदाई शुरू कर दी। जब बेटे और बेटी के साथ मिलकर कस्तूरी ने कुआं खोदना शुरू किया तो आसपास के लोग उसकी हंसी उड़ाते। उस रास्ते से आने-जाने वाले उसका मजाक बनाते लेकिन कस्तूरी के पहाड़ से हौसले को ना तो गांववालों की बेरुखी डिगा सकी और ना ही पथरीली जमीन। करीब एक महीने की पहाड़तोड़ मेहनत के बाद उम्मीद की बूंदें दिखी तो जैसे कस्तूरी का हौसला और बढ़ गया। कल तक जो लोग उसका मजाक उड़ाते थे वही लोग अगले ही दिन उसके हौसले को सलाम करने लगे और उसके इस काम में हाथ बटाने लगे और देखते ही देखते सूखी धरती पर इंसान की प्यास बुझाने के लिए कुआं तैयार हो गया।
आदिवासी समुदाय से आने वाली कस्तूरी के कुआं खोदने के पीछे एक कहानी है। बिरधा गांव के लोग बताते हैं कि कस्तूरी के पति का देहांत हो चुका था और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उसी पर थी। पहले वो पास में वन विभाग के क्षेत्र में आने वाले बोरवेल से पानी लेती थी लेकिन उसे पानी लेने से मना कर दिया गया। इसके बाद वो पास के मंदिर से पानी भरने लगी, लेकिन यहां भी समाज के कुछ ठेकेदारों ने उसे ज्यादा दिन पानी नहीं लेने दिया और पानी की कमी का हवाला देकर पानी भरने से मना कर दिया। लिहाजा उसने परिवार की प्यास बुझाने के लिए सूखी धरती को खोदने का मन बनाया। इरादे नेक थे, ईश्वर उसके साथ और आज वो अपने साथ गांव के 50 परिवारों की प्यास बुझा रही है।
अगर कुछ पाना चाहो, मिटा दो इस तरह खुद को ।
कि दाना खाक में मिलकर गुले-गुलजार होता है ।।
कस्तूरी के इस नेक काम की जानकारी जब साईं ज्योति नाम की संस्था को मिली तो उसने कस्तूरी के साथ कुएं की खुदाई में लगे सभी लोगों के लिए कपड़े का इंतजाम किया। हालांकि आदिवासी समुदाय के कुएं में पानी निकलने पर जिले के डीएम भी वहां गए। बुंदेलखंड में पोखर और कुओं के लिए पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी सरकार लोगों को पानी का इंतजाम क्यों नहीं करा पा रही। जब एक कस्तूरी अकेली 50 परिवार का प्यास बुझाने की जुगत कर सकती है तो 19 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली अखिलेश सरकार और सवा अरब की आबादी की अगुवा मोदी सरकार लोगों को पानी तक मुहैया कराने का इंतजाम क्यों नहीं करती?
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।
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अगर कुछ पाना चाहो, मिटा दो इस तरह खुद को ।
कि दाना खाक में मिलकर गुले-गुलजार होता है ।।
बडे़ ही अदभुत स्टोरी है। सर बहुत अच्छा लगा आपकी लेखनी से निकली एक सच्ची घटना ।