वो बुंदेलखंड का कुल’दीप’ है

साऊथ अफ्रीका में कॉमन वेल्थ जूडो चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाले कुलदीप
साऊथ अफ्रीका में कॉमन वेल्थ जूडो चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाले कुलदीप

सुनीता द्विवेदी

तेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा, इस स्याह समंदर से नूर निकलेगा।” किसी शायर की इन लाइनों को अपनी बेनूर ज़िंदगी का मकसद बना कर बाँदा के नेत्रहीन छात्र कुलदीप ने वो कर दिखाया जो आँखें होने पर भी बेहद मुश्किल है। बेहद गरीब परिवार ने सपने में भी नहीं सोंचा था कि जिस नेत्रहीन लड़के को वो बोझ समझते थे वही एक दिन उनके कुल का असली दीपक बन उनको गौरवान्वित करेगा। बाँदा के इस दिव्यांग ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए साऊथ अफ्रीका में आयोजित कॉमन वेल्थ जूडो चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर जिले और प्रदेश ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन किया है।

बाँदा की तहसील बबेरू के एक छोटे से गाँव कुमेढा सानी में एक बेहद गरीब और दलित परिवार में पैदा हुए कुलदीप कुमार जन्मजात नेत्रहीन हैं। पिता राजकरन और माँ बेलुवा के चार पुत्रों में सबसे छोटे कुलदीप की पढ़ाई में दिलचस्पी देख गरीब दम्पति ने उसको बाँदा के महोखर स्थित राष्ट्रीय दृष्टिबाधित स्कूल “स्पर्श” में भिजवा दिया और वर्तमान में कुलदीप इंटरमीडिएट का छात्र है। परिवार में माँ-पिता के अलावा तीन भाई मनदीप अशोक और विजय मनरेगा जॉब कार्ड धारक हैं और मज़दूरी कर बेहद ग़ुरबत की ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। होनहार कुलदीप ने पढ़ाई के साथ ही खेलकूद को अपना शौक बना लिया और राष्ट्रीय जूडो प्रतियोगिता में वर्ष 2013, 2014 और 2015 में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए तीनो साल गोल्ड मैडल जीता। 14 मार्च से 19 मार्च 2016 तक चली स्पेशल ओलम्पिक भारत प्रतियोगिता में भी कुलदीप के सितारे बुलंद रहे और शॉट पुट व 200 मीटर रेस में भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीत कर अपना दबदबा कायम रखा। पिछले महीने 23 से 26 अप्रैल में साऊथ अफ्रीका में “नेल्सन मंडेला वे म्युनिस्पिल्टी” द्वारा आयोजित कॉमन वेल्थ जूडो चैंपियनशिप के लिए भारत से कुलदीप समेत पाँच प्रतिभागी चयनित हुए। जिनमें कुलदीप ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का डंका बजाया और गोल्ड मेडल जीत कर देश को गौरवान्वित कर दिया।

bnd kuldeepसाउथ अफ्रीका में अपने हौसले का लोहा मनवा चुके गोल्ड मैडलिस्ट दिव्यांग कुलदीप को ग़ुरबत और दलित होने के चलते समाज ही नहीं बल्कि उसके शिक्षकों के तानो से भी कदम कदम पर अपमानित होना पड़ा था और इसी अपमान ने कुलदीप के इरादों को मज़बूत और जिस्म को फौलाद बना दिया। गुड़गांव की संस्था आई०सी०बी० में जूनियर की पढ़ाई के दौरान शिक्षकों ने कुलदीप को इतना अपमानित किया कि यही अपमान उसकी ज़िंदगी की वो मज़बूती बन गई। जिसने कुलदीप को आज इस शिखर में पहुंचा दिया। गुड़गाँव में उन्हें बात बात पर अपमानित किया जाता था। उनकी गरीबी और जाति को लेकर उनका हमेशा मज़ाक उड़ाया गया। टीचर परमानन्द और प्रिंसपल नीना अनेजा ने कुलदीप से कहा था कि “वास्तव में भिखारी की औलाद भिखारी ही रहेगी, तुम गरीब की औलाद हो जाकर भीख मांगो।” अपने टीचरों के तानो को ही कुलदीप ने अपनी ताक़त बना ली।

बाँदा के जिलाधिकारी योगेश कुमार के साथ कुलदीप
बाँदा के जिलाधिकारी योगेश कुमार के साथ कुलदीप

बाँदा स्पर्श में एडमिशन के साथ ही कुलदीप ने खुद लकड़ी के कुंदो को, गाँव वालो से औज़ार मांगकर तराश कर व्यायाम के उपकरण बनाए और खुद के बनाए जिम में कसरत शुरू की। वार्म-अप उपकरण के लिए हैंडपम्प को चुन लिया। जूडो बैग की जगह बोरी में रेत भरकर प्रैक्टिस करता रहा। कुलदीप कहते हैं कि उन्होंने सिर्फ 10 दिन की ट्रेनिंग ली और ट्रेनिंग कैंप में प्रवेश की कोशिश की लेकिन उन्हें यहाँ भी गरीबी और जातिद्वेष के चलते जगह नहीं दी गयी। फिर एक, दोस्त सुरेश रैदास ने उन्हें इलाहाबाद के कोंच संजय गुप्ता से मिलवाया और आज उन्ही के मार्गदर्शन में कुलदीप ने सफलता प्राप्त की है।

बाँदा के जिलाधिकारी योगेश कुमार ने कुलदीप को उसके विद्यालय और अपने कार्यालय में बुलाकर सम्मानित किया और उसके सपनो को पूरा कराने में हर मदद का भरोसा भी दिया है। साथ ही कुलदीप के परिवार को लोहिया आवास योजना में और गाँव को भी विकास की दौड़ भी शामिल किया है और दमा के मरीज़ कुलदीप के पिता का पूरा इलाज कराने के निर्देश भी दिए हैं। डीएम योगेश कुमार का कहना है कि कुलदीप सूखे और अकाल से जूझ रहे बुंदेलखंड के बाशिंदों के लिए एक बेहतरीन आदर्श है।


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सुनीता द्विवेदी। उत्तरप्रदेश के बांदा की निवासी हैं। हिंदी से एमए और बीएड की डिग्री लेने के बाद इन दिनों सामाजिक बदलाव की चेतना जगा रही हैं। सार्थकता की संभावनाएं तलाशने और लोगों में उम्मीद जगाने में सुनीता यकीन रखती हैं।