इन दिनों अमरुद के पेड़ झुक गए हैं। हमारे यहाँ इसे लताम भी कहते हैं। खूब फल आये हैं। बच्चों के झुण्ड तो ताक में रहते हैं। पिताजी जान बूझ कर अनदेखा कर देते हैं। जब छोटे और बिलकुल कच्चे लताम से उनकी बनियान भर जाती है तो अचानक तेज आवाज़ निकाल कर डरा देते हैं। फिर हँसते हुए अपने बचपन की कोई कहानी काव्या और बिहान को सुनाने लगते हैं। पिताजी के पास उनके बचपन की अनगिनत कहानियां हैं। इतनी मेरे पास नहीं हैं। कभी कभी सोचता हूँ कि क्या मेरे बच्चों के पास होंगी इतनी कहानियां …!
– रूपेश कुमार, सिंहेश्वर, मधेपुरा।
कुछ प्रतिक्रियाए, फेसबुक से
1. Gaurav Sharma- cool pic
2. Sudip Rathaur -बेहतरीन तस्वीर
3. रोमा प्रियदर्शी- कहानियाँ तो होंगी लेकिन उनमें आम के बगीचे, नदियां, तालाब, खेत, और भी न जाने क्या क्या गुम हो जाएँगे…