अरुण यादव
दिल्ली में कृषि मेला। राजधानी का ताना-बाना खेत-खलिहान वाला नहीं है, लेकिन पिछले हफ्ते देश के सबसे बड़े कृषि अनुसंधान केंद्र में कृषि मेला लगा तो दिल्ली ही नहीं पूरे देश से लाखों किसान सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर मेला देखने पहुंचे। लोगों की भीड़ देख यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था कि हम कृषि मेले में आए हैं या फिर ट्रेड फेयर में। मेरे लिए पिछले 10 सालों में ये पहला मौका था, जब किसी कृषि मेले में जाना हो पाया।
मेले की साज सज्जा किसी का भी मन मोहने के लिए काफी थी। खेतों के बीच मेक इन इंडिया का शेर जैसे दहाड़ रहा हो। फूलों से खास तौर पर सजाया गया ये शेर हर किसी को अपनी ओर खींच रहा था, इस नारे के साथ- मुझसे डरो नहीं, मेरे पास आओ। मुझे तुम्हारी और तुम्हे मेरी जरूरत है। तमाम लोग उसके पास फोटो लेने में मशगूल दिखे। कुछ किसान उसमें लगे फूलों के बारे में अधिकारियों से बातें करते भी नज़र आए।
मेले में ऐसे उत्पादों की प्रदर्शनी लगी थी, जो किसानों ने खुद तैयार किए थे और जिसके जरिए वो खूब मुनाफा कमा रहे हैं। कभी ये लोग भी आम किसान हुआ करते थे लेकिन थोड़ी सी मेहनत और सूझबूझ से ये लोग वो तमाम प्रोडक्ट बनाकर बाजार में बेच रहे हैं, जिसकी जरूरत हमें और आपको है। खेती के उपकरण तो एक से बढ़कर एक दिखे। इनमें ज्यादातर बड़े किसानों के लिए ही थे। कुछ ऐसे उपकरण भी दिखे जिसके जरिए किसान अपने खेत के कामकाज को आसान बना सकता है। मेले में जो कुछ था, उसे देखकर इतना तो यकीन हो गया कि किसान के पास करने के लिए बहुत कुछ है।
कृषि मेले में घूमते हुए हॉल नंबर दो पहुंचा, जहां किसानों से खचाखच भरे हॉल में पूसा केंद्र के अधिकारी दूर-दराज से आए किसान भाइयों को खुद की अहमियत और अपनी उपज की कीमत पहचानने के टिप्स दे रहे थे। पूसा में तैनात एस के झा ने बड़े ही आसान शब्दों में किसानों को बताया कि आप किस तरह थोड़ी पूंजी लगाकर अपने उत्पाद की कीमत 200 से 300 गुना बढ़ा सकते हैं और इसके लिए पूसा केंद्र उनकी पूरी मदद करेगा। फ्लैक्स से लेकर बेकरी तक का कारोबार खुद शुरू करने के लिए एस के झा ने किसानों को प्रेरित किया। यहां एक अच्छी बात ये रही कि ये सारी बातें बस सेमिनार तक ही सीमित नहीं रही। एसके झा जी ने किसानों को न्योता दिया कि वो जब चाहें उनसे संपर्क कर सकते हैं, मिल सकते हैं।
फिर क्या था जैसे ही उनकी स्पीच खत्म हुई, लोगों ने उनको घेर लिया। किसानों की उत्सुकता देख वो हैरान थे। कोई बेकरी से जुड़ा कारोबार शुरू करना चाहता था, तो कोई फूलों की खेती से जुड़ी जानकारी चाहता था। मेरी भी उत्सुकता बढ़ रही थी। लिहाजा, मैंने भी एस के जी से कुछ सवाल पूछे जिसमें सबसे पहला था कि “क्या किसानों के लिए लोकल स्तर पर ऐसी ट्रेनिंग नहीं दी जा सकती और ऐसा क्यों है कि जिला कृषि केंद्र लोगों को जागरुक बनाने में नाकाम रहा है ।”
एसके ने कहा कि “ये बिल्कुल सही है कि जिला कृषि केंद्र अपना काम पूरी ईमानदारी से नहीं कर पा रहे, नहीं तो किसानों को अपनी समस्याएं लेकर इतनी दूर नहीं आना पड़ता। हालांकि इसको दूर करने के लिए हम लोग छोटी जगहों पर सेमिनार करने की तैयारी कर रहे हैं, इसके लिए किसानों को भी आगे आना होगा और अपने जिला कृषि अधिकारी से मिलकर अपनी बात रखनी होगी। वो अगर समूह बनाकर कृषि अधिकारी के पास जाएं और कृषि से जुड़ी ट्रेनिंग की बात करें तो वो जरूर उनके लिए इसका इंतजाम कराएंगे, जरूरी हुआ तो पूसा से भी लोग जाएंगे ।”
ये तो साफ है कि कृषि केंद्र और किसानों के बीच की खाईं पाटने की ज़रूरत है और ये तभी मुमकिन है जब किसान जिज्ञासु बने और अधिकारी उसका समाधान करने के लिए तत्पर हों। साथ ही सरकार की योजनाओं का ठीक तरीके से और पूरी जानकारी लोगों तक पहुंचे। उदाहरण के लिए मुद्रा बैंक योजना को लिया जाए तो ये तो सबको पता है कि इस योजना से सरकार नया काम शुरू करने के लिए लोन देती है, लेकिन लोन कैसे मिलेगा, उसके लिए क्या जरूरी है। अगर नया काम शुरू करना है तो उसकी प्रोजेक्ट फाइल कहां बनेगी। इस बारे में ना तो सरकारें विज्ञापन देती हैं और ना ही लोगों को जागरुक करने की कोशिश होती है। ऐसे में जिनके भीतर कुछ करने की चाहत भी होती है, वो बैंक के एक-दो चक्कर काटकर शांत बैठ जाते हैं।
इस मेले में फसल बीमा से लेकर व्यापार लगाने और कृषि संयंत्रों से लेकर उत्पादन बढ़ाने तक के बारे में ढेरों जानकारी थी। किसानों ने यहां से जो कुछ हासिल किया है, उसे जमीन पर आजमाने की जरूरत है। उससे कहीं ज्यादा जरूरत है निरंतर संवाद की।
अरुण प्रकाश। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।