पुष्यमित्र
इन दिनों पटना समेत बिहार के सभी शहरों और कस्बों में चौक-चौराहे लाल, पीले और हरे रंगे के होर्डिंग्स से अटे पड़े हैं। मगर जैसे ही आप इन चौक-चौराहों और बस्तियों से आगे बढ़ते हैं, खेत-खलिहानों तक पहुंचते हैं तो आपको एक ही रंग दिखायी देता है और वह है पीली पड़ती हरियाली। सूख रही धान की बालियां। इनमें कुछ में दाने हैं, ज्यादातर बिना दानों के हैं। पिछले दिनों चुनावी मुद्दों की पड़ताल के लिए जिधर भी जाना हुआ, यही रंग, यही नजारा नजर आया। मन में एक सवाल था कि आखिर हुआ क्या है, हो क्या रहा है? यही जानने समझने पटना से सटे फुलवारीशरीफ विधानसभा के एक गांव की तरफ निकल पड़ा।
चुनावी ज़मीन पर मुद्दों की पड़ताल-6
एम्स से तकरीबन 2-3 किमी आगे सरैयां गांव के पास मिले सिद्धेश्वर राय। खेत से ही लौट रहे थे। उनसे जब पूछा कि क्या हाल है तो उन्होंने पलट कर जवाब दिया कैसे बुझाते हैं? सवाल का जवाब सवाल था। मतलब? मतलब मेरा रंग-रूप, हाव-भाव कैसा बुझा रहा है? देखिये कि हरियाए हुए हैं कि सुखाए कुम्हलाये हुए हैं? किसान से उसका हाल-चाल मत पूछिये, उसका रंग-रूप और हाव-भाव देखिये और अंदाजा लगा लीजिये कि क्या हाल है? 8-9 बीघा जमीन पर धान लगाये थे, एक बीघा का फसल भी ठीक से घर आ गया तो समझेंगे किस्मत ठीक था। उसका भी उम्मीद नहीं है। काहे…? पानिये नै है, धान सुखा कर खतम हो गया।
थोड़ा आड़े बढ़े तो राजेंद्र राय मिले। छोटी जोत वाले हैं। दस कट्ठा में धान लगाया था। कहते हैं, पूरे खतम है। एक दाना घर नहीं पहुंचने वाला। वजह वही, पानी का अभाव। कहते हैं, न आकाश से बरसा, न नहर में आया, सरकारी बोरिंग है नहीं और डीजल अनुदान लेते नहीं हैं। काहे नहीं लेते डीजल अनुदान? सवाल सुन कर बिगड़ जाते हैं, कहते हैं, इ डीजल अनुदान किसान के लिए नहीं है पत्रकार जी। ई तो उनके लिए है जो बलौक में दलाली करते हैं, घोटाला करते हैं। फरजी बिल लगाइये, आधा घूस दीजिये और आधा पैसा लेकर घर आ जाइये। अभी तो चुनाव का मौसम है, नेता सब जो वोट मांगने आता है, उसको काहे नहीं बताते हैं इसके बारे में? क्या बतायें… उ लोग को नहीं मालूम है क्या? सबको मालूम है, सबकी मरजी से होता है।
हुलासचक के पास शंकर जी हमें मिल जाते हैं, जो अपने गांव ले चलते हैं। शंकर जी के पास 5 बीघा जमीन है, मगर पानी का साधन नहीं था इसलिए समझदारी दिखायी और खेती ही नहीं की। मगर उनकी जान पहचान के कई किसानों ने खेतों में पैसा लगा दिया है, अब माथा पीट रहे हैं। शंकर जी सीधे दिनेश शर्मा के पास ले जाते हैं, जो इस गांव के सबसे बड़े और प्रगतिशील किसान माने जाते हैं।
हुलासचक की एक पुलिया पर शशिकांत शर्मा बैठे मिलते हैं। उनका भी दो बीघा धान पानी के अभाव में झुलस गया है। कहते हैं, सरकार क्या करेगी? सरकार तो घोटाला करने के लिए योजना बनाती है और योजना को लागू करने के नाम पर खानापूर्ति होता है। अब जहां हम बैठे हैं, उस पुलिया को देखिये। यह सोन नहर का हिस्सा है। इसको कुरकुरी लाइन कहते हैं। जब मैं उधर देखता हूं जिसे नहर कहा जा रहा है तो हैरत में पड़ जाता हूं। दरअसल वह किसी शहरी नाले जैसा दिखता है, जिसमें गांव के लोगों ने गंदा पानी बहाना शुरू कर दिया है। यह नहर है? इस सवाल पर पास में बैठे रामाधार कहते हैं, जी हां, यह नहर है। 200 बस्तियों के लोग इस नहर से अपने खेतों की सिंचाई करते थे। 20 साल पहले जेठ महीने में इतना पानी होता था कि हमलोग यहीं नहाते थे।
(पुष्यमित्र की ये रिपोर्ट साभार- प्रभात खबर से)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
थार में न भात, जुबान पर जात… पुष्यमित्र की एक और रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें