तुम न आये
और फिर
लो आ गया
फागुन निगोड़ासाल पिछले भेजते
इसको कहा था,
हाथ में इसके
तुम्हारा, इक
पुराना ख़त दिया था
बिन लिए उनको
न आना द्वार मेरेदेख लो तुम
आज भी मन में हमारे,
है वही मौसम
ठिठुरती ठण्ड का,
और कड़कती धूप का
आ गए सब कामनियों
के सजन
बस तुम न आयेऔर फिर लो
आ गया फागुन निगोड़ाआम की अमराइयों पर
बाग़ की पुरवाइयों पर
आ गयी है रुत सुहानीचटकती कलियों के रुख पर
और पी के संग रमती
कामनी की कामना पर,
आ गयी फिर से जवानीआज भी बस तड़प
का मौसम लिए,
मैं युगों से हूँ
प्रतीक्षा मैं तुम्हारेहर गली हर बीथिका में
गोपियों संग फिर रहा
कान्हा दीवाना
बस तुम न आयेऔर फिर लो
आ गया फागुन निगोड़ा
मृदुला शुक्ला। उत्तरप्रदेश, प्रतापगढ़ की मूल निवासी। इन दिनों गाजियाबाद में प्रवास। कवयित्री। आपका कविता संग्रह ‘उम्मीदों के पांव भारी हैं’ प्रकाशित। कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं छपीं और सराही गईं।
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