संजय तिवारी
8 जनवरी की सुबह मैं अपने दोस्त के साथ अलवर से तकरीबन 1 घंटे की दूरी तय कर राजस्थान के भीकमपुरा पहुंचा। जहाँ जल संरक्षण को लेकर लगभग 26 साल से काम कर रहे राजेंद्र सिंह से मुलाकात हुई। राजेंद्रजी सरकारी नौकरी को ताक पर रखकर जल सरंक्षण की मुहिम को अपने जीवन का ध्येय बना लिया। आज लाखों लोगों तक उनकी इस मुहिम का फायदा पहुंच रहा है।
राजेंद्र जी ने आज से 26 साल पहले अलवर के पास एक छोटे से गाँव गोपालपुरा में जोहड़ खोद कर पानी को सरंक्षित करना शुरू किया था ताकि आसपास के गावों और राजस्थान में विलुप्त होती नदियों को बचाया जा सके। प्रकृति को फिर से संवारा जा सके और फ़सलों को एक नया परिवेश मिल सके। “जल ही जीवन है” की इस प्रचलित लाइन को फिर से सरोकारी रूप में देखा जा सके।
1985 में पहली बार कुछ किसानों के साथ मिलकर राजेंद्र सिंह ने पहली जोहड़ की खुदाई शुरू की। शुरूआती दिनों में गाँव के किसानों ने उन्हें कई कुतर्क दे कर अकेला छोड़ दिया। किसान सूखे की वजह से गाँव छोड़ कर चले गए और कुछ किसान बारिश की आस में सूखे आसमान को निहारते रहे, लेकिन राजेंद्र सिंह ने हार नहीं मानी। तपती गर्मी में वो फावड़ा, कुदाल ले कर पूरे-पूरे दिन माटी में अपना सब कुछ झोंकते रहे और जोहड़ बना कर ही दम लिया। राजेंद्र जी बताते हैं कि “गोपालपुरा में 2-2 साल तक बारिश का नामोनिशां तक नहीं था, लेकिन मेरा मानना था कि अगर बारिश के पानी को एक जगह इकट्ठा कर लिया जाए तो ज़ाहिर है कि आस पास के सूखे कुओं का जलस्तर ज़रूर बढ़ेगा और जोहड़ में इकट्ठे हुए पानी से खेती में मदद मिलेगी।“
राजेंद्र सिंह ने जोहड़ों के निर्माण के लिए पंचायतों को इकट्ठा करने का काम किया और शुरआती दिनों में कुल 25 किसानों की मदद से उन्होंने गोपालपुरा के आस पास कुछ जोहड़ खुदवाये। जब बारिश हुई तो अलवर के सूखे खलिहानों में, जोहड़ों में पानी इकट्ठा होने लगा और कुओं, नदियों का जलस्तर बढ़ने लगा।
राजेंद्र जी ने बताया कि “जो किसान 3 साल पहलेगाँव छोड़ कर चले गए थे वो वापस आने लगे और मेरे साथ जोहड़ बनाने में जुट गए, उन्होंने मुझ पर विश्वास करना शुरू कर दिया, शायद उन्हें समझ आने लगा था कि यही एक तरीका है जिससे खेती और जीने के लिए पानी का जुगाड़ किया जा सकता है।” राजेंद्रजी ने राजस्थान के लगभग 1000 गांवों, 7 नदियों को जिन्दा किया है और प्रकृति से एक नया रिश्ता जोड़ा है। पेशे से डॉक्टर रहे राजेंद्र सिंह ने दवाइयाँ बेचकर अपना जीवन निर्वाह किया लेकिन कभी राजस्थान को सूखा नहीं रहने दिया। शायद यही कारण है कि आज उन्हें भारत का “जलपुरुष” कहा जाता है।
2011 के रमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित राजेंद्र सिंह आज भी भीकमपुर में रह कर जल सरंक्षण और वन सरंक्षण की बारीकियों को बताते हैं। उन्होंने मुझे और मेरे मित्र को जोहड़ क्या होता है और उसके अपने क्या फायदे हैं के बारे में भी बताया। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, कि अगर राजेंद्र जी के जल संरक्षण मॉडल को बारीकी से अध्ययन किया जाए तो हम अगले जल संकट को बखूबी टाल सकते हैं। मैली होती गंगा, युमना को भी हम नालों से फिर नदियों में बदल सकते हैं।
संजय तिवारी, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्याल के पूर्व छात्र। कवि, पत्रकार। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी लघु फिल्में बनाने का शौक। फिलहाल जल पुरुष राजेंद्र सिंह पर लघु फिल्म बना रहे हैं।
जब राइन से मिलने जर्मनी पहुंची गंगा… पढ़ने के लिए क्लिक करें