सत्येंद्र कुमार
गंगा को हम सब मां, जीवनदायिनी, मोक्षदायिनी और कई नामों से पुकारते हैं। गंगा जल के बिना हिंदुओं के घरों में कोई पवित्र काम नहीं होता। जन्म से मरण तर हर मौके पर मौजूद रहती है गंगा। हम भारतीय गंगा को जीवन मानते हैं। लेकिन हमारी वजह से मां गंगा आज गंदी हो गई है। हम सब अपने स्तर से गंगा की सफाई के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। सरकारों ने कागजों में साफ-सफाई की कोशिशें तो बहुतेरीं की लेकिन ज़मीन पर उसका असर नहीं दिख रहा। गंगा की सफाई का संकल्प लेकर दिल्ली में सरकार को बने भी डेढ़ साल गुजर चुके हैं। पीएम बनने से पहले नरेंद्र मोदी को ‘मां गंगा ने बुलाया’ था। मोदी काशी गए, गंगा से मिले और उनका दुख दर्द देखा, गंगा को साफ करने की कसम भी खाई। मोदी ने ये भी कहा कि शायद ये पुण्य काम उनके लिए ही है। लगे हाथ फावड़ा उठाकर कुछ साफ सफाई भी की । गंगा सफाई की जिम्मेदारी लिए उत्तराखंड के हरिद्वार से काशी तक घूम रहीं केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने तीन साल में सफाई कराने का प्रण लिया है।
राइन का नाम सुनकर गंगा को उम्मीद जगी!
गंगा चुपचाप अपने बेटों की बातें सुन रही है। कई वर्षों से एक ही बात सुनते सुनते आदत सी पड़ गई है। लेकिन गंगा को उस समय एक उम्मीद जगी जब जर्मनी ने राइन नदी की सफाई का उदाहरण देते हुए ये कहा कि, वो गंगा की सफाई कर सकता है और इस अभियान में भारत का साथ देना चाहता है। अगस्त 2015 के आखिरी हफ्ते में जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जर्मनी दौरे पर थीं, उस वक्त गंगा अभियान का हिस्सा बनने की इच्छा व्यक्त करते हुए जर्मनी ने अपने यहां राइन नदी को साफ करने में उपयोग की गई प्रौद्योगिकी को उत्तराखंड में गंगा नदी के एक हिस्से के पुनर्जीवन में प्रयोग करने की पेशकश की। राइन नदी यूरोप में सबसे महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है।
राइन नदी की कहानी जब गंगा तक पहुंची तो उसने जर्मनी जाकर मिलने का फैसला कर लिया। कूड़े-करकट और गंदे पानी में सनी गंगा जब राइन से मिलने पहुंची तो वो हैरान रह गई। राइन की रगों में दौड़ते साफ पानी देखकर अपने पुराने दिनों को याद करने लगी। लेकिन
तभी गंगा से राइन ने कहा, सुनो गंगा! परेशान होने की जरूरत नहीं है। तुम अभी मुझसे काफी अच्छी स्थिति में हो। मुझे यूरोप के लोग गंदा नाला (सीवर ऑफ यूरोप) कह कर पुकारते थे। हर घर की गंदगी, हर फैक्ट्री का कचरा, शहरों का मल-मूत्र मुझमें ही आता था। मैं पूरी तरह से मैली हो चुकी थी। सांस लेने के लिए ऑक्सीजन भी नहीं था। अंदर-अंदर घुंटन हो रही थी। मैं दम तोड़ने के कगार पर थी। सभी मछलियां मर गई थीं, किसी जीव के काम की नहीं थी। सिर्फ नाम की मैं नदी थी। तीस साल पहले तक मैं इतनी प्रदूषित हो चुकी थी कि मेरे किनारे से हो कर गुजरने वाले मुझे देखने से बचते थे। मानव को जीवन देने वाली जानलेवा साबित हो रही थी। लेकिन आज मैं बिल्कुल साफ हूं। साल्मन और ईल के साथ-साथ मछलियों की 64 प्रजातियां अपनी जिंदगी जी रही हैं। चिंता मत करो गंगा तुम भी साफ हो जाओगी गर तुम्हारे बेटे जर्मनी के बताए रास्ते पर चलें।
सुनो गंगा! राइन के निर्मल होने की कहानी!
जब राइन से गंगा मिली और उसकी कहानी जानी तो रो पड़ी और पूछी, इतना निर्मल कैसे हो राइन? क्या तुम्हारे बेटे मेरे बेटों के साथ मिलकर मेरी गंदगी साफ कर देंगे? राइन ने सिर हिलाते हुए हामी भरी और कहा, आज मैं साफ इसलिए हूं-
1- करीब 99 प्रतिशत आबादी को सीवर नेटवर्क से जोड़ लिया गया है।
2- सीवर नेटवर्क बनाने से फॉस्फोरस, जिंक, कॉपर, क्रोमियम, नाइट्रोजन, अमोनिया, लेड, निकल और अन्य प्रदूषणकारी तत्वों की मात्रा 80 से 100 प्रतिशत तक कम हो गई है। जिसकी वजह से ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ गई है।
3- राइन के किनारे लगे औद्योगिक संयंत्र अपने अपशिष्ट जल को साफ कर रहे हैं, यही नहीं आस-पास के कस्बों का घरेलू सीवेज भी साफ कर नदी में डाल रहे हैं।
4- पानी को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए अलग-अलग देशों ने सहयोग किया और अंतरराष्ट्रीय राइन नदी संरक्षण आयोग (आइसीपीआर) गठित किया गया।
5- इस आयोग ने यमुना के बराबर लंबी और छह देशों से बहने वाली राइन नदी को साफ करने में जी जान लगा दी।
6- जर्मनी, फ्रांस, लग्जमबर्ग, नीदरलैंड और स्विटजरलैंड ने 11 जुलाई, 1950 को आईसीपीआर की स्थापना की और राइन नदी के पानी को साफ़ करने का काम शुरू कर दिया।
7- राइन के तटवर्ती क्षेत्र में 950 से अधिक फैक्ट्रियां हैं। दुनिया की सबसे बड़ी केमिकल कंपनी बीएएसएफ भी राइन के तट पर है। दस वर्ग किलोमीटर में फैले औद्योगिक क्षेत्र में 160 उत्पादन संयंत्र हैं, यहां 35 हज़ार लोग काम करते हैं। लेकिन ये कंपनियां अपना पानी साफ कर नदी में छोड़ती हैं।
8- बीएएसएफ के पास बहुत बड़ा वेस्टेज वाटर ट्रीटमेंट प्लांट है, जो गंदे पानी को जैविक तरीके से शुद्ध करता है। यह प्लांट जितना अपशिष्ट जल साफ करता है, उसमें 80 प्रतिशत कंपनी का और 20 प्रतिशत लुडविगशाफेन शहर का होता है।
9- पिछले तीस साल में राइन के किनारे औद्योगिक इकाइयों और शहरों में 80 अरब यूरो (5600 अरब रुपये) खर्च कर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। इसमें एक बड़ा हिस्सा कंपनियों ने लगाया है।
10- उद्योग जगत और सरकार की सामूहिक कोशिश का ही नतीजा है कि आज तीस साल बाद अमोनिया, फास्फोसरस, लेड, कैडमियम, क्रोमियम, कॉपर, निकल, पारा, जिंक और एंडोसल्फान सहित कई दर्जन खतरनाक रसायनों को 70 से 100 फीसद तक राइन नदी में गिरने से रोका गया है।
11- राइन के किनारे लगे औद्योगिक संयंत्रों में ऑनलाइन मॉनिटरिंग प्रणाली भी लगी है, जिससे प्रदूषक तत्वों की निगरानी होती रहती है।
राइन नदी यूरोप के कई देशों से होकर बहने वाली नदी है। यह व्यावसायिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है और यहां से अन्तरराष्ट्रीय व्यापार संचालित होता था। 1,233 किलोमीटर (766 मील) की लंबाई के साथ यूरोप में बारहवीं सबसे लंबी नदी में राइन का नाम शुमार है।
गंगा में 764 प्रदूषणकारी फैक्ट्रियां रोजाना 501 एमएलडी से अधिक गंदगी बिना साफ किए डाल रही हैं। इनमें अधिकांश कानपुर के पास जाजमऊ की टेनरियां हैं। टेनरियों के अपशिष्ट को ट्रीट करने के लिए एक कॉमन एफ्लुएंट प्लांट भी लगा है। लेकिन उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का आरोप है कि टेनरियां इस प्लांट को चलाने के लिए अपने हिस्से की धनराशि नहीं दे रहीं। गंगा को गंदा बनाने में सिर्फ फैक्ट्रियां ही शामिल नहीं हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार से लेकर काशी तक नदी के किनारे जितने शहर बसे हैं उनका मल-मूत्र, कचरा सब गंगा में ही तो जाता है।
उम्मीद ये है कि राइन को साफ रखने में मदद कर रहे यूरोप के उद्योगों को देखकर भारत की औद्योगिक इकाइयां कुछ सीख लेंगी और अपना गंदगी साफ करेंगी। यूरोप के देशों ने जिस तरह का भगीरथ प्रयास राइन नदी को साफ करने के लिए किया, उसी तरह का प्रयास भारत सरकार और लोगों को करने की जरूरत है। आज कई देश अपनी नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए राइन से सीख ले रहे हैं। राइन कैसे साफ हुई? उसे निर्मल बनाने के लिए वहां की सरकारों, लोगों, उद्योगों और वैज्ञानिकों ने कैसे अपनी प्रतिबद्धता निभाई? इसका अध्ययन करना होगा और उसके हिसाब से एक्शन प्लान तैयार करना होगा।
सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।
गंगा का आंगन बुहारती पूर्वोत्तर की बेटियां