एक दिन
दिन डूब जाएगा
पर दिनचर्या से नहीं
और रात
दिन के मटमैले विस्तार में
लंबे समय तक अस्त हो जाएगी
उस दिन धरती धरेगी एक रंग
जब लूटी गई दौलत
धूसर प्रवाह की गर्जना में गुम हो जाएगी
तब हमारे दिमाग में उग आए
दुस्साहस के पहाड़ पस्त होंगे
और उद्दंड इच्छाओं की नदियां होंगी नरम
तब कुदरत सब कुछ कह चुकी होगी जो उसे
ईश्वरीय चोटियों की निजता चूर करने पर
और स्वच्छंद नदियों को नाथ डालने पर कहना था
देवांशु झा। उन चुनिंदा पत्रकारों में शामिल हैं जो व्यावसायिक मजबूरियों में चाहे खुद को संयमित कर ले जाएं, लेकिन उनकी छटपटाहट दूसरे प्लेटफॉर्म पर अभिव्यक्ति का रास्ता ढूंढ ही लेती है। कुछ लोग उन्हें खारिज करने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन उनकी दलीलों को पूरी तरह नज़रअंदाज करना आसान नहीं होता। आप उनसे 9818442690 पर संपर्क कर सकते हैं।
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