पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार
फ़रीदाबाद के सूरजकुंड की ये शाम मेरे लिए बेहद ख़ास है. इस शाम नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी जी का आत्मीय आतिथ्य उससे भी ज़्यादा ख़ास है. हम यानी मैं, मोहन जोशी और कैलाश सोनकिया जब चार्मवुड विलेज के उस घर में दाखिल हुए तो मेरे मन में कुछ झिझक थी. जब मुँडेर पर पहुँचे तो सामने स्वयं कैलाश सत्यार्थी जी थे. आगे बढ़कर इतनी गर्मजोशी से स्वागत किया मानो वर्षों की जान-पहचान हो. घर के एक बुजुर्ग की तरह हाल-चाल पूछा. कैलाश सोनकिया जी से नाम को लेकर एक चुटकी, मुस्कान, हंसी और फिर पल भर में व्यक्तियों के जो अपने-अपने दायरे होते हैं, वो दरकते चले गए.
गिने-चुने 30-40 मेहमानों का समूह. आदरणीय अनिल पांडे सर के ‘व्यक्तिगत आमंत्रण’ और फ़ोन पर मिले संदेश ने आत्मीय आदेश की शक्ल ले ली, और ये संयोग वाक़ई सुखद ही रहा. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के बग़ल में बैठ कर एक तस्वीर खिंचाने का लोभ संवरण नहीं कर सका. मैं चाय की प्याली लिए बेहद अनौपचारिक माहौल में उनके क़रीब बैठ गया, बिना ये सोचे भी कि ये उचित है या नहीं. उचित-अनुचित जैसे ख़्यालों के लिए ख़ुद कैलाश सत्यार्थीजी ने ही कोई ‘स्पेस’ नहीं छोड़ा था. बेहद सहजता से उन्होंने हमारे साथ तस्वीरें खिंचाई, गुफ़्तगू की.
जहां तक मुझे याद पड़ता है साल 2004 में वर्ल्ड सोशल फ़ोरम के दौरान मुंबई में कैलाश सत्यार्थी जी से पहली मुलाक़ात हुई थी. बचपन बचाओ आंदोलन के स्टॉल पर कैलाश जी की जो छवि तब मन में बैठी थी, वही छवि 2023 की होली पूर्व की इस संध्या में भी नज़र आई. वक़्त का फ़ासला लंबा है. इस दौरान उनके बचपन बचाओ अभियान ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दुस्तान का मान बढ़ाया. नोबेल शांति पुरस्कार भारत की झोली में डालने वाले कैलाश सत्यार्थी जी ने लेकिन अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी, अपनी सहजता-सरलता को क़ायम रखा, ये एहसास मेरे लिए काफ़ी सुखद है.
साथियों के परिचय सत्र के दौरान कैलाश सत्यार्थी जी के वन लाइनर माहौल को और ख़ुशनुमा बनाते गए. सभी के साथ उसी आत्मीयता से मिले, हाल-चाल पूछा. धीरे-धीरे दिलों में दाखिल होते गए सत्यार्थी जी. उनके ठीक बग़ल में बैठे एक बालक ने बड़ी सहजता से परिचय दिया और कहा- मैं अभी कोई जॉब नहीं करता तो ठहाकों से पूरी छत गूंज उठी. आमंत्रण लिट्टी-चोखा भोज का था सो आख़िर में वो भी ग्रहण किया गया. गाँव-घर वाला स्वाद मन तर कर गया.
मेरे लिए असल भोज तो सत्यार्थी जी का ‘सान्निध्य भोज’ ही रहा. चलते-चलते पुस्तकें गिफ्ट की. इस की गई टिप्पणी में उन्होंने बेटी रिद्धिमा के साथ-साथ उनकी माँ सर्बानी, भाई अनमोल और पिता पशुपति को भी अपने स्नेह से सराबोर कर दिया.
साधुवाद अनिल सर. उम्मीद है ये पाती आप कैलाश सत्यार्थी जी तक ज़रूर पहुँचाएंगे. ताकि फिर किसी शाम, कुछ बचकानी हिमाक़तों के साथ मैं, हमारे मित्र और परिवार के सभी सदस्य ऐसे किसी ‘सान्निध्य भोज’ का भरपूर आनंद ले सकें.
पशुपति शर्मा, 5 मार्च 2023