ब्रह्मानंद ठाकुर
क्रांति का मतलब है अन्याय और शोषण पर टिकी शासन व्यवस्था की जगह किसान-मजदूरों का राज स्थापित करना।
23 मार्च का दिन सरदार भगत सिंह का 90 वांं शहादत दिवस का दिन है।आज से 90 साल पहले 23 मार्च, 1931 को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के तीन जांबाज योद्धाओ, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेज जी हुकूमत ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था।
1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय एसेम्बली में बम विस्फोट करने के बाद उन्होंन अपनी गिरफ्तारी दी थी। अदालत में उस मुकदमें की सुनवाई के दौरान जज ने भगत सिंह से जानना चाहा था कि क्रांति से उनकी क्या मंशा है? भगत सिंह ने कोर्ट में इस सवाल का जो जबाव दिया था वह उन लोगों की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त है जो क्रांति का अर्थ खून-खराबा, रक्त-पात और आगजनी, नरसंहार जैसी घटनाओं के रूप में समझते हैं। तब भगत सिंह ने जज से कहा था ‘ क्रांति का अर्थ न तो रक्तपात है और न व्यक्तिगत द्वेष और न वह केवल बम और पिस्तौल है। क्रांति से उनका तात्पर्य है वह शासन व्यवस्था जिसकी आधारशिला अन्याय है को बदल कर रख देना। उत्पादनकर्ता या मजदूर का जो समाज का आवश्यक अंग है, शोषक शोषण कर रहे हैं । उसके प्राथमिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। दूसरी ओर जो किसान अनाज पैदा करता है वह भी अपने परिवार सहित भूखा मर रहा है। बुनकर जो दुनिया की मंडियों को कपड़ों से पाट देता है उसे अपना तथा अपने बाल-बच्चों का तन ढ़कने को कपड़ा नसीब नहीं होता। बढई ,राज तथा अन्य कारीगर जो बडे-बडे महलो का नार्म ण करते हैं ,स्वयं गंदी वस्तियों में सिसकते रहते है।
दूसरी ओर स्थिति यह है कि पूंजीपति, शोषक तथा समाज के जोंक रुपी तत्व अपने एक सनक पर ही लाखों बर्बाद कर देते हैं।इस शोषण और असमानता का जबर्दस्ती निर्माण किया गया ये असंतुलन समाज में अराजकता का कारण होगा। परंंतु यह अवस्था अधिक दिनों तक नहीं टिक सकती। आज का समाज ज्वालामुखी पर बैठा है ।शोषक मासूम बच्चों की तरह लाखों की संख्या में खतरनाक कगार पर चल रहे हैं। सभ्यता के इस इमारत को यदि समय पर नहीं बचाया गया तो यह नष्ट- भ्रष्ट हो जाएगी। इसलिए क्रांतिकारी परिवर्तन आवश्यक है। जोइसकी आवश्यकता समझते हैं , उन्हें चाहिए कि वे समाजवादी व्यवस्था के आधार पर नये समाज का निर्माण करें।
जब तक यह नहीं होगा, मनुष्य द्वारा मनुष्य और राष्ट्र द्वारा राष्ट्र का शोषण, दूसरे शब्दों में जबतक पूंजीवाद समाप्त नहीं किया जाता तबतक मानवता के भीषण संकट और विनाश को रोका नहीं जा सकता। उन्होने आगे कहा —‘ क्रांति से उनका मतलब ऐसे समज का निर्माण है जो जै इन सब आपदाओं से मुक्त हो , जिसमें किसान – मजदूरों का वर्चस्व स्वीकार किया जाए , जिससे विश्वसंघ मानवता को पूंजीवादी शोषण से बचाया जा सके तथ युद्ध के संकट से उसे छुटकारा दिलाए। ‘
भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के प्रामाणिक इतिहासकार मन्मथनाथ गुप्त की पुस्तक ‘ भगत सिंह और उनका युग ‘ से साभारः।