हमारे आपके आस-पास कई लोग ऐसे होते हैं, जिनकी जिंदादिली एक मिसाल बन जाती है। ऐसे ही एक जिंदादिल इंसान के तौर पर देश के कई शहरों तक पसरे हैं पुष्पेंद्र पाल सिंह। अपने छात्रों के बीच। पत्रकारिता के साथ ही ज़िंदगी का सबक सिखाने वाले शिक्षकों में शुमार पुष्पेंद्र पाल सिंह को जन्मदिन मुबारक।
कितनों का बुलावा है सांबा…
कभी माखनलाल विश्वविद्यालय के सामने से रात-बिरात गुजरें और बगिया में ठहाकों की गूँज आये तो छात्र-छात्राओं के साथ बैठकर गप्पे मारने वाले समूह में एक शिक्षक भी आपको अक्सर मिलेगा। यही नहीं उसके बाद हरेक छात्र-छात्राओं को जिम्मेदारी से अपनी काली गाड़ी में लादकर उनके गंतव्य तक सुरक्षित छोड़ने वाला भी यही शख्स है। उनके हर सुख दुःख में खड़े रहने वाला भी यही शख्स है। यह उनका गुरु तो है लेकिन ऐसा गुरु जो केवल किताबें ही पढ़ना नहीं सिखाता, वरन बिंदास जीवन जीने के तरीके और हुनर भी सिखाता है। एक ऐसा शख्स जो स्वयं के लिए आये न्यौते पर आयोजकों से पूछ ले कि कितने छात्रों के साथ आ सकते हैं ? और खुद ही गिनती भी बता दे कि 30 हैं मेरे साथ, ज्यादा भी हो सकते हैं। होली, दिवाली, ईद या कोई और त्यौहार, सभी अपने छात्रों के साथ मनाता है।… और जब वह ऐसा करता है तो फिर वह गुरु नहीं रह जाता, बल्कि एक दोस्त हो जाता है और धीरे ही धीरे वह फिर इन सबका बाबा हो जाता है।
(प्रशांत दुबे के फेसबुक वॉल से)
पुष्पेंद्र पाल सर के ईर्द गिर्द छात्रों का ये जमावड़ा। गजब है न। जाने कितने सालों से ऐसे ही लगा रहता है मजमा। हो सकता है हाथों में फूलों का ये गुलदस्ता किसी मेहमान के लिए हो लेकिन छात्र तो पहले इन फूलों पर अपने प्रिय गुरुवर का नाम लिख डालते हैं। तस्वीरें तो कुछ यही कह रही हैं।
समंदर की लहरों के बीच मस्ती करते पुष्पेंद्र पाल सिंह। ये तस्वीर तृप्ति शुक्ला के फेसबुक वॉल से है। साल भर पहले जन्मदिन के मौके पर ही उसने ये तस्वीर शेयर की थी- इस उलाहने के साथ- “बाबा, आपको रात से ही फोन कर रही हूं, लेकिन आप फोन ही नहीं उठा रहे हैं। इसलिए आपको फेसबुक पर ही हैप्पी वाला बड्डे मुबारक।”
इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल
जग में रह जायेंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से गोल
इक दिन बिक जायेगा ...
अनहोनी पथ में काँटें लाख बिछाये
होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाये
ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये
धारा, तो बहती है, मिल के रहती है
बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से गोल
एक दिन ...