शिरीष खरे
आमतौर पर घर, खेत, खलिहान और दुकानों पर काम करने वाली महिलाओं के काम को काम नहीं माना जाता है। बच्चों को पालने और उन्हें बड़े करने के साथ ही आर्थिक गतिविधियों में सहयोग करने के बावजूद ऐसी महिलाओं को नहीं लगता कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में कुछ विशेष किया है, लेकिन पणजी से करीब पचास किलोमीटर दूर पिरणा के हसापुर का एक शासकीय प्राथमिक स्कूल ने अनोखी पहल शुरू की है । स्कूल ने अपने समुदाय की साठ पार कर चुकी महिलाओं की एक सूची बनाई है जिसमें कुल 60 महिलाएं हैं । स्कूल के बच्चे इन सभी महिलाओं को या तो स्कूल में आमंत्रित करते हैं या खुद उनके घर जाकर ऐसी बुजुर्ग महिलाओं का सत्कार करते हैं। ऐसी महिलाओं के संघर्ष की कहानी को समझने के लिए समूह में एक प्रश्नावली भी तैयार की गई है जिसके आधार पर उनसे बातचीत की जाती है ।
आमतौर पर गृह-कार्य स्कूल को बच्चों के परिजन से जोड़ता है, लेकिन गोवा के इस सरकारी स्कूल का यह प्रयास स्कूल को पूरे गांव से जोड़ रहा है, जिसकी काफी सराहना भी हो रही है ।
शिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर , राजस्थान पत्रिका और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति पुणे में शोध कार्य में जुटे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।