बसपा प्रमुख मायावती ने जब इस बात की पुष्टि कर ही दी है कि उनका भतीजा आकाश आनंद अब पार्टी के आंदोलन से जुड़ेगा तो क्या अब ये नहीं मान लेना चाहिए कि नीले ‘आकाश’ तले ही दलित आंदोलन का भविष्य छिपा है?
15 जनवरी को बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन पर उनके बगल में नीला सूट पहने दिखाई दे रहा युवा, अचानक सुर्खियां बन जाता है। लंदन से एमबीए की पढ़ाई किए हुए आकाश को लेकर न्यूज चैनलों और अखबारों में ये अटकलें लगाई जाने लगी कि वही बसपा का भविष्य है, तब मायावती सामने आईं और कहा कि ‘हम दब्बु किस्म के लोग नहीं हैं जो सुन कर बैठ जाएंगे, घबरा जाएंगे। मुंहतोड़ जवाब देना भी हमें आता है’ इसके बाद मायावती ने ऐलान किया कि वो आकाश आनंद को पार्टी से जुड़ने और सीखने का मौका देंगी। मायावती ने ये भी साफ किया कि वो मीडिया के आरोपों के जवाब में आनंद को अपने आंदोलन से जोड़ रही है। गनीमत है कि बसपा प्रमुख ने ये नहीं कहा कि मीडिया द्वारा टिकट देने के एवज में पैसे लेने का आरोप लगाना एक साजिश है, लिहाजा मैं मीडिया को मुंहतोड़ जवाब देते हुए अब हर टिकट के एवज में पैसे लूंगी।
खैर, पार्टी में किसे शामिल करना है किसे नहीं, किसे अपना उत्तराधिकारी बनाना है किसे नहीं बनाना है, दल प्रमुख होने के नाते मायावती का ये विशेषाधिकार है। इस पर भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। अलबत्ता मीडिया वही अटकलें लगा रहा था जिसे बाद में बसपा प्रमुख ने भी कहा लेकिन खुद की कही बात को पीड़ित का प्रतिकार बताया और मीडिया की उसी बात को षड़यंत्र। क्या कहीं परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए तो उन्होने मीडिया पर वार नहीं किया? ये तो वही जानें।
रहा सवाल उत्तराधिकारी का तो करीब-करीब हर राजनीतिक शख्स अपने उत्तराधिकारी की घोषणा जोर शोर से करता रहा है। दलित आंदोलन में महान किरदार निभाने वाले कांशीराम ने भी तो अपनी सक्रियता के दौर में ही मायावती को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया था। हालांकि कांशीराम के निधन के बाद उनके परिवारवालों ने मायावती पर तमाम आरोप लगाए थे। जिसे विरासत के बंटवारे से ही जोड़ कर देखा गया।
यहां एक बात का जिक्र करना जरूरी है कि दलित आंदोलन के सबसे प्रतिष्ठित नाम बाबा साहेब ने किसी को अपना राजनीति उत्तराधिकारी नहीं बनाया। क्यों नहीं बनाया ये बात समझ से परे है और शायद इसीलिए बाबा साहेब के बाद दलित आंदोलन को 80 के दशक में कांशीराम के रूप में ही नेता मिला। जिन्होने यूपी में दलितों को सत्ता के साधन से सत्ता का साधक बना दिया। ये वो करिश्मा था जिसे बाबा साहेब भी नहीं कर पाए थे। दलित आंदोलन की इस सार्थक सफलता के बाद कांशीराम ने पार्टी की बागडोर एक कार्यकर्ता को सौंप कर जो बड़ी लकीर खींची वो दूसरा करिश्मा था। क्या इसी बड़ी लकीर से तुलना होने के अंदेशा बसपा प्रमुख को भी था? और शायद इसीलिए वो मीडिया से कुपित भी हो गईं। ये भी वही जानें। फिलहाल बीएसपी के कार्यकर्ता ये जान लें कि आकाश आनंद बहुजन समाज पार्टी से जुड़ने वाला नया नाम है।
संदीप कुमार पाण्डेय, टीवी पत्रकार । राजनीतिक हलचलों पर पैनी नजर रखते हैं।