डा. सुधांशु कुमार
इधर मी-टू ने पाँच-दस दिनों में जितना रायता फैला कर दस-बीस लोगों की साँस साँसत में डाल दी , उतना रायता तो बेचारे साठ पार ‘दिग्गी’ तीस पैंतीस साला सड़क पर भी न फैला सके। वैसे भी , इन दिनों हमारा राष्ट्र रायतामय हो गया है। कोई इटली से आकर रायता फैला रहा है तो कोई पाकिस्तान जा-जा कर। जिस प्रकार सावन के अंधे को बैशाख में भी हरा ही हरा दिखता है , वैसे ही बोफोर्स की हरियाली में मुंह मार चुके वैशाखनंदन को सपने में भी राफेल ही राफेल दिखता है। किसी को इन दिनों अपने चैनल के लिए पंचलाइन नहीं मिल रही तो किसी को ममा क्वात्रोची , चचा एंडरसन , टूजी , थ्री जी , … आदि आदि जीजाजी भी सूझ नहीं रहे ! साठ-सत्तर सालों के फैले हुए रायते में पसरी पड़ी जनता पाँच साला चौकीदार को मी-टू मी-टू फरमा रही है। बेचारा चौकीदार भी कहे तो क्या कहे , वोट तो फिर उसी मी-टू वाली से लेना है न ! इसलिए उसकी तरफ बस कातिलाना मुसकान उछाल-उछाल कर ही अनकही मनकही कह जाते हैं। बेचारी जनता ‘ऐडवीना’ सी हो -हो कर भी किसी का नहीं हो पाती है।
वैसे मैं बचपन से ही मंदबुद्धि रहा हूँ – पढ़ने में, खेलने में नहीं ! जब मुझे बियालीस तक की गिनती ठीक से याद नहीं थी तभी मेरे गांव के काका ने बाढ़ की बेकारी के बीच ‘ताश की चौकड़ी पाठशाला’ में उसकी बावन पत्तियों के ‘कंसेप्ट’ को क्लियर कर दिया था। उस बाढ के मौसम में जब सभी विद्यालय बंद रहते थे, तब हमारे गुरुजी इसी पाठशाला में शत-प्रतिशत अटेंडेंस लगवाते थे। यहां एक ही मेथड गुरु जी अप्लाई करते थे ‘लर्निंग बाई प्लेइंग’ ! वैसे भी मैं बचपन से ही खेलक्कड़ था सो मैथ की तरह यहां किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हो पाई। मैं चट समझ गया कि यहां ‘एक्का’ का पावर ‘दहला’ से अधिक होता है। लेकिन आज एक बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रही कि पच्चीस बरस पहले की छुवन का पता पच्चीस साल बाद कैसे चला ?
वो तो मेरा खटारा मोबाइल था जो मैंने अमिताभ बच्चन का विज्ञापन देखकर खरीदने का बचपना कर बैठा। दो महीने में ही उसका टच स्क्रीन ‘टच-लेट’ (नोट – यह ‘टच-लेट’ शब्द मेरी कापीराइट के अंतर्गत है , कैंब्रिज एनालिटिका का इससे कोई संबंध नहीं है) हो गया अर्थात जब मैं उसका स्क्रीन टच करता तो पच्चीस मिनट बाद वह हरकत में आता ! लेकिन आदमी भी मोबाइल हो गया, यह ‘मी-टू’ ने मुझे बतलाया ! वैसे भी गुड टच और बैड टच के बीच अंतर समझने में पच्चीस बरस का अंतराल ज्यादा थोड़े ही होता है। मेरी समझ में धीरे-धीरे अब बात आ रही है कि मामलों को निपटाने में मीलार्ड पचीस- पचास साल क्यों लगाते हैं !
पच्चीस साल पहले के टच का पता चलते- चलते इतनी देर कैसे हो गयी। लगता है स्कीन में कुछ गड़बडी रही होगी , उसने सही समय पर दिमाग को इन्फार्मेशन पास नहीं किया होगा। देर होनी थी , हो गयी , खैर ! इस्तीफा में देर नहीं न हुई !! इस देर से एक गाना याद आ रहा है – हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी । वैसे आप गा सकते हैं -हुजूर जाते – जाते बहुत देर कर दी ! अच्छा जरा कल्पना कीजिए कि निर्जीव वस्तु को यदि मी-टू कहने की छूट दे दी जाय तो मी-टू का सबसे अधिक शोर कहाँ सुनाई देगा ? …कहाँ से ? संसद से ? सही पकड़े आप ! बुद्धि लब्धि हाई है आपकी ! मान गए आपको !!
आज सपने में देवर्षि आए ! कहने लगे -इस पृथ्वी लोक के मी-टू का वायरस उधर …लोक में भी संक्रमित हो गया है । इधर के कुछ संक्रमित जीव हाल ही में उधर पहुंचे हैं। बेचारा ‘इन्दर’ भी इससे ‘इफेक्टेड’ हो गया है। अहिल्या ने उसे मी-टू के लपेटे में ले लिया है , उधर सूर्पनखा ने तो एक साथ ‘रामचंदर’ और ‘लछमन’ दोनों पर मी-टू ठोक दिया है। बेचारे देवता सब भी पृथ्वी लोक के भारत भू-खंड पर फैले हुए मी-टू के रायता की फिसलन से स्वर्ग लोक में फिसल रहे हैं। वो ‘कैंब्रिज एनाटिका’ को ‘गरिया’ रहे हैं । हालाकि विष्णुगुप्त उन्हें समझा रहे हैं कि चिंता न करें , यह सब चुनावी साल में उधर होता ही रहता है ।
वैसे भी बिल्ली जब तक सौ चूहे नहीं खाती , हज को नहीं जाती ! वहां कोई फिरकी ले रहा है । इसका पता चल तो गया है , पर चल नहीं पा रहा है। स्थिति बिल्कुल सरकार वाली है , चलती तो है , चल नहीं पाती ! इस चल – अचल के बीच यदि चल रही है तो तेल की कीमत और उसके पसरे हुए रायते पर फिसलता है तो बस रुपया ! बेचारा कभी गिर जाता है लेकिन मी-टू वाली की तरह ठीक से गिर भी नहीं पाता ! खैर ! बंधू ,जरा ‘हम्मे’ समझाओ तो कि जो बेचारी ‘हलाला’ के रायते में पसरी पड़ी है , वो सबरीमाला में धक्का-मुक्की कैसे कर रही है ? या छोड़िए इसे , इस चुनावी साल में आप इसे ‘एक्शप्लेन’ नहीं कर पाएंगे।
आप ‘हम्मे’ यही समझा दीजिए कि तेरह बार बलात्कार करने वाले बलात्कारस्वामी के खिलाफ तेरह शब्द भी नहीं निकालने वाली समाजसुधारिका, उसके खिलाफ मी-टू का ढोल पीटने के बदले, सबरीमाला की माला गर्दन में लटकाए सनातन संस्कृति के आंगन में रायता क्यों फैला रही है। खैर इसे भी छोड़िए ! आप यही बतलाने की महती कृपा करें कि विदेशी रोहिंग्या को अपना बाप बनाने वाले भारत माता के लाल कश्मीरी हिंदुओं को कैसे भूल गये ? अच्छा पच्चीस साल पहले की छुवन से उत्तेजित होकर मी-टू मी-टू का राग अलापने वाले को पच्चीस साल पहले कश्मीरी माँ -बहनों की चीख-पुकार , सर कटी लाशें और धर विहीन सर की यादें उत्तेजना क्यों नहीं पैदा करतीं, जिन्हें बोरों में भर -भरकर डल झील में फेंक दिया गया ! उस झील की बूंद-बूंद से चीख रही मी-टू …मी-टू…मी-टू..की हृदय विदारक ध्वनियां मेरे कान के परदे फाड़ रही हैं।
पुरस्कार वापसी गैंग को …छप्पन इंची चौकीदार को …वह ध्वनि सुनाई देती है क्या ? नहीं न ! बाबू यह चुनावी साल है …इस साल तो बस अवर्ण-सवर्ण …एससी एसटी …अगड़ा-पिछड़ा का रायता फैलेगा ….अभी उसी की डिमांड है आप तो बस यूं ही मी-टू का रायता फैलाते रहिए …सबरीमाला आते रहिए -जाते रहिए !!
डॉ सुधांशु कुमार- लेखक सिमुलतला आवासीय विद्यालय में अध्यापक हैं। भदई, मुजफ्फरपुर, बिहार के निवासी। मोबाइल नंबर- 7979862250 पर आप इनसे संपर्क कर सकते हैं। आपका व्यंग्यात्मक उपन्यास ‘नारद कमीशन’ प्रकाशन की अंतिम प्रक्रिया में है।