शुरुआत से ही मोदी सरकार को विपक्षी पार्टियों ने सूट-बूट वाली सरकार का तमगा दिया तो ऐसा लग रहा था ये सिर्फ विरोध करने के लिए विपक्षी दलों का शिगूफा है, लेकिन वक्त बीतने के साथ नोटबंदी जैसे तमाम फैसलों ने सरकार को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया कि आखिर नोटबंदी किसके लिए थी । इन सबके बीच जनता के लिए खुश होने का ज्यादा मौका नहीं मिला हालांकि उद्योगपतियों को मालामाल होते हर किसी ने देखा । ऐसा लगा जैसे कुछ चुनिंदा लोगों के लिए देश का खजाना खोल दिया गया हो । लिहाजा एसबीआई की पूर्व प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य के रिलायंस से जुड़ते ही एक बार फिर सोशल मीडिया पर ये चर्चा जोरशोर से उठने लगी है कि क्या सचमुच मोदी सरकार शुरुआत से ही जनता से ज्यादा अडानी अंबानियों के लिए काम कर रही है । बदलाव पर पढ़िए कुछ फेसबुक टिप्पणियां ।
गिरीश मालवीय
और बाजीगरी किसे कहते हैं ?
पूरी हिंदी मीडिया से यह खबर गायब है कि एसबीआई की पूर्व चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य अब मुकेश अंबानी के रिलायंस इंडस्ट्रीज में 5 साल के लिए एडिशनल डायरेक्टर हो गयी हैं। आपको याद नहीं होगा इसलिए आपको याद दिलाने का यह उचित समय है कि बतौर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन रही अरुंधति भट्टाचार्य के कार्यकाल मे ही रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के साथ जियो पेमेंट्स बैंक एसबीआई के साथ ज्वाइंट वेंचर में एक्टिव पार्टनर बन गया था ।
जियो पेमेंट बैंक में एसबीआई की सिर्फ 30 फीसदी हिस्सेदारी दी गयी जबकि 70 फीसदी हिस्सेदारी रिलायंस इंडस्ट्रीज को दे दी गयी थी । गजब की बात तो यह है कि जियो पेमेंट बैंक लिमिटेड को नोटबंदी के ठीक दो दिन बाद ही 10 नवंबर 2016 को आधिकारिक तौर पर निगमित किया गया था इस समय मार्केट में मिल रहे तगड़े कॉम्पिटिशन के बावजूद एसबीआई का पेमेंट स्पेस में 30% मार्केट शेयर है । एक तरह से थाली में सजाकर एसबीआई के कस्टमर को जिओ को परोस दिया गया था, यह कमाल अरुंधति भट्टाचार्य जी ने ही किया था। अरुंधति मैडम द्वारा जियो पेमेंट बैंक को एसबीआई के बड़े नेटवर्क का फायदा जो दिलवाया गया उस अहसान को आज मुकेश अम्बानी ने चुका दिया है। यह बिल्कुल इस हाथ ले और उस हाथ दे वाला लगता मामला है।
कुछ समय पहले सिर्फ कागजों में बन रहे जिओ इंस्टिट्यूट को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिया था उसके पीछे की असली वजह यह थी कि जिन्होंने ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ की नीति बनाई थी वह विनय शील ओबरॉय जी मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग में मार्च 2016 में एचआरडी सेक्रटरी थे और वही रिटायरमेंट के तुरंत बाद रिलायंस में एजुकेशन के क्षेत्र में एडवाइजर के पद पर जॉइन हो गए थे ओर उन्होंने ही पूरा प्रजेंटेशन तैयार करवाया था
पुष्य मित्र
फेसबुक पर यह चित्र दिखा। यह 16 नवंबर 2014 की तस्वीर है, जब मोदी को पीएम बने जुमा जुमा चंद महीने हुए थे। आस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन शहर में G20 की बैठक थी, साथ मे उनके प्रिय गौतम अडानी भी गए थे। उस समिट में ही अडानी ने एक कोल माइंस खरीदा था और इसके लिये SbI की तत्कालीन चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य को भारत से बुलवाया गया था। इस टेबल पर ही अडानी को एक बिलियन डॉलर लोन देने का फैसला हुआ था, पीएम के सामने। जबकि उस वक़्त भी अडानी sbi के 65 हजार करोड़ के कर्जदार थे। यह चित्र यह तो बताता ही है कि आज सिर्फ उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने की वजह से बीजेपी कहाँ से कहाँ पहुंच गई। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि सत्ता संभालते ही मोदी की प्राथमिकता में अडानी के कारोबार को आगे बढ़ाना था और वे इस तरह लोन सैंक्शन करवाते थे।