आस्था के नाम पर मूर्ख बनाने का घनघोर विश्वास गजब का है

आस्था के नाम पर मूर्ख बनाने का घनघोर विश्वास गजब का है

राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार

मेरे गृह राज्य झारखंड में एक मशहूर शिव तीर्थ है। बैजनाथ धाम। जिस तरह किसी भी लोक परंपरा में तीर्थों को लेकर कई कहानियां होती हैं, वैसी कहानियां बैजनाथधाम के बारे में भी हैं। एक प्रचलित कथा बैजनाथधाम के नामकरण को लेकर है। कहते हैं कि देवघर में बैजू नाम का एक अधपगला आदमी रहता है। वह बाबा भोलेनाथ को नियमित रूप से पांच डंडे मारा करता था। उसकी हरकत लोगों की समझ से परे थी। लेकिन बैजू में एक खास बात थी। दुनिया इधर की उधर हो जाये, वह कभी डंडा मारना नहीं भूलता था। यह सिलसिला बरसों तक चला।

अचानक एक दिन बाबा भोलेनाथ प्रकट हो गये और हंसकर बोले- यह जो कर रहा है, पूरी श्रद्धा से कर रहा है। मैं इससे प्रसन्न हूं, इसलिए अब से मेरे आगे इसका नाम होगा। आगे बैजू पीछे नाथ। इस तरह बाबा हो गये बैजनाथ। आस्था कितनी ताकतवर चीज़ है, इसका उदाहरण है, यह दंतकथा। वज्र मूर्ख बैजू की डंडे मारने में आस्था थी। नरेंद्र मोदी की आस्था देशवासियों के वज्र मूर्ख मानने में हैं। जैसे-जैसे उनकी आस्था गहरी होती जा रही है, इस बात को लेकर संशय मिटते जा रहे हैं कि देशवासी स्थायी रूप से मूढ़ हैं। देशवासियों की मूखर्ता के प्रति मोदी की आस्था वचनोत्तर सिद्ध है। अनगिनत उदाहरणों में एक छोटा सा उदाहरण आपके सामने रख रहा हूं।

प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनते ही मोदी अपनी संवेदनशीलता का बखान करने के लिए यह बता चुके थे कि अगर कुत्ते का बच्चा भी गाड़ी के नीचे आ जाये तो उन्हें दुख होता है। पीएम बनने के बाद इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि अहमदाबाद में जब उन्हें टोपी भेंट की गई तो मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्होंने उसे स्वीकार क्यों नहीं किया?

जवाब में गोवर्धन पर्वत उठाने वाली शैली में तर्जनी उठाकर साहब ने जवाब दिया— मैं सम्मान सबका करूंगा लेकिन पालन केवल अपनी परंपरा का करूंगा। दरियादिली ना सही लेकिन इस साफगोई ने बहुत लोगों को प्रभावित किया।

वक्त बीतने लगा। कब्रिस्तान-श्मशान के रास्ते यूपी का चुनावी कैंपेन 2017 में बनारस पहुंच चुका था। चुनावी हवा को लेकर मीडिया का आकलन अत्यंत भ्रामक था। यह खबर लगातार चल रही थी कि बनारस में बीजेपी की हालत खराब है। लगातार कैंप कर रहे साहब का काफिला मुसलमानों के इलाके से गुजरा। किसी ने उन्हें आयत लिखी चादर भेंट की। साहब ने टोपी की तरह चादर लौटाई नहीं, उसे पूरी श्रद्धा से ग्रहण करके माथे से लगाया। काफिले में चल रहे बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के नेता ने गर्व से बाइट दी- मोदीजी मुसलमानों से बहुत प्रेम करते हैं। वे एक दिन टोपी ज़रूर पहनेंगे।

इंदौर में साहब मस्जिद गये, वजू किया और गर्व से तस्वीरें खिंचवाईं। भक्तजनों अगर साहब लखनऊ के मुहर्रम में मातमी जंजीर के साथ छाती पीटते नज़र आयें तो मातम मत मनाइयेगा। आपकी समझदारी और याद्दाश्त के प्रति उनकी निष्ठा असंदिग्ध है, यह आस्था बनाये रखिये।

कहते थोड़ी तकलीफ होती है लेकिन नैतिकता के प्रतिमानों पर मैं प्रवीण तोगड़िया को मोदी जी से बेहतर मानता हूं। बंदा जो कुछ कहता है, डंके की चोट पर कहता है। सुबह और शाम गिरगिट की तरह रंग नहीं बदलता है। बाल ठाकरे की राजनीति से घनघोर असहमति रखते हुए भी मैं यह मानता हूं कि सामान्य नैतिकता के मानदंडों पर वे तमाम भाजपाई नेताओं से हज़ार गुना बेहतर थे। दंगों में भूमिका से लेकर बाबरी ध्वंस तक हरेक मामले में जो कुछ कहा खुलकर कहा, कभी बयान नहीं बदले।

अंग्रेजी की एक कहावत है— आप तमाम लोगो को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बना सकते। लेकिन फिलहाल यह बात कहावत ही लगती है। देशवासी अपने प्रिय नेता की आस्था को इतनी जल्दी नकली साबित नहीं होने देंगे।


राकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ। टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों एक बहुराष्ट्रीय मीडिया समूह से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ और ‘प्रजातंत्र के पकौड़े’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।