शंभु झा
ए भाई, देख के मत चलो…आगे भी सड़क तुम्हारे बाप की है, पीछे भी तुम्हारे पप्पा की है। बाएं-दाएं देखने और सोचने की क्या ज़रूरत है। जैसी मर्ज़ी हो, वैसे गाड़ी चलाओ। तुम्हारा जन्म सड़क से बलात्कार करने के लिए ही हुआ है। सो करते रहो। लेफ्ट से काटो, राइट से चांपो… या फिर बीचों बीच ही ठेल दो… कौन तुम्हारा क्या उखाड़ लेगा ?
रेड लाइट तुम्हारे लिए महज एक टिमटिमाता हुआ लाल बल्ब है…जिसके इर्द गिर्द अक्सर भिखारी, फूलवाले और कभी-कभी पुलिसवाले भी खड़े रहते हैं। तुम्हें इन सबसे चिढ़ है, इसलिए तुम कभी लाल बत्ती पर रुकना नहीं चाहते हो। अगर रेड लाइट पर पुलिस वाला ना हो, फिर भी कोई गाड़ी वाला तमीज के साथ वहां रुका है तो तुम उसे ‘…तिया’ समझते हो… ।
और जहां तक लेन का प्रश्न है तो वह काली सड़कों पर खींची हुई सफेद पट्टियां है, जो सड़क की खूबसूरती बढ़ाने के लिए बनाई गई हैं। उनका कोई और मतलब या मकसद नहीं है।
तुम बहती हवा के झोंके हो, बहते दरिया का पानी हो…तुम ट्रैफिक रूल्स के दायरे में बंधने वाले नहीं हो। जिधर चाहो, उधर डोलते फिरो। ज़्यादा से ज्यादा क्या होगा, तुम किसी को ठोंक दोगे..या कोई तुम्हें पेल देगा। दोनों स्थिति में जय तुम्हारी है क्योंकि तुम मरने से नहीं डरते हो। ‘…सड़ीके’, तुम मर सकते हो, लेकिन कोई भी ख़तरा तुमको डरा नहीं सकता है, क्योंकि तुम गब्बर सिंह को अपना आदर्श मानते हो। श्रीमान गब्बर सिंह ने कहा था… जो डर गया सो मर गया।
एक्सप्रेस वे पर गाड़ियां 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से फर्राटे भरती हैं, लेकिन वहां तुम कान में फोन दबा कर आराम से बतियाते हुए हौले-हौले गाड़ी चलाते हो। ना लेन छोड़ते हो, ना साइड देते हो। क्योंकि ऐसा करना तुम्हारी शान के खिलाफ है।
अगर तुम्हारी हाहाकारी ड्राइविंग पर कोई टोके तो तुरंत उसकी मां-बहन के साथ निकट संबंध स्थापित करने का ऐलान करो। वो बेचारा अपनी गाड़ी और इज़्ज़त संभालता हुआ निकल लेगा लेकिन याद रखना कि सड़क पर कुछ मुसाफिर ऐसे भी होते हैं, जो हाथ को हथौड़े की तरह इस्तेमाल करने में विश्वास करते हैं, अगर तुम उनकी चपेट में आ गए तो फिर तुम्हें अपनी हड्डियों के कड़कने की आवाज़ सुनाई पड़ेगी। शायद तुम्हारा माटी का तन सड़क की मिट्टी से एकाकार हो जाए। इसे अंग्रेज़़ी में रोड रेज कहते हैं।
अगर रोड रेज और एक्सिडेंट से बच जाओ, तो कभी गाड़ी साइड में लगा कर दो मिनट सोचना कि इस देश में हर साल करीब डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में क्यों जान गंवा देते हैं। उन डेढ़ लाख परिवारों पर क्या बीतती होगी। उनके आंसू कौन पोंछता होगा। उनकी ज़िंदगी कैसे कटती होगी। तुम्हारी भी एक फ़ैमिली है… तुम मरना चाहते हो तो बेशक मरो…लेकिन अपने बीवी बच्चों को जीते जी मारने का तुम्हें कोई हक़ नहीं है।
शंभु झा। पत्रकारिता में डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त से सक्रिय। दिल्ली के हिंदू कॉलेज के पूर्व छात्र। आजतक, न्यूज 24 और इंडिया टीवी के साथ लंबी पारी। फिलहाल न्यूज़ नेशन में डिप्टी एडिटर के पद पर कार्यरत।
ट्रेफिक सेंस को उंगली दिखाती शंभुनाथ झा जी की बेहतर रिपोर्ट जिसे पढते हुए दिनकर जी की कविता एनार्की याद आ गई।