मैं सड़क हूं, मेरे यहां आपका स्वागत है, लेकिन WALK AT YOUR OWN RISK…! अरे, अरे, घबराइए नहीं, मेरा मतलब तो सीधा सा बस ये है कि चलिये मगर सावधानी से, क्योंकि सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी। भई, सड़क ही तो हूं, मंत्री जी के घर का फर्श थोड़े ही न हूं जो कभी टूटेगा ही नहीं। हां, वो बात दूसरी है कि मैं तो एक सड़क हूं हर जगह टूटती फूटती रहती हूं। लेकिन एक बात की तारीफ तो आप को भी करनी होगी, कि कुछ जगह तो है जहां मेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। वहां मैं ‘ए-वन’ क्वालिटी की रहती हूं। बोले तो एकदम झक्कास, ऐसी जगहों पर तो आप भी मुझे देखकर कंफ्यूज हो जाते हो।
मैं, आपकी अपनी ही हूं या विदेशी, यकीन नहीं आता तो ये देखिये। ये सड़के उन इलाकों की है जहां बड़े-बड़े मंत्री, बड़े-बड़े अफसर या यूं कहिये कि ये वो जगह है यहां सब बड़े आदमी ही होते है। मैं सड़क हूं, अभी थोड़ी देर पहले मैं मंत्री जी का नाम लिया तो आप ये मत सोच लिजियेगा कि जहां-जहां मेरी स्थिति के जिम्मेदार मंत्री जी है, बिल्कुल नहीं, न ही मंत्री जी, न ही संत्री जी, न कोई अफसर, न ही कोई इंजीनियर और न ही कोई ठेकेदार। मेरी इस स्थिति का जिम्मेदार है कोई नहीं है।
मैं आप ही टूट जाती हूं, वैसे भी तो इस देश में कई घटनाएं अपने आप ही हो जाती है जैसे जोधपुर में सलमान भाई के केस में हिरण ने अपने आप को ही गोली मार ली थी, ऐसे ही मुंबई में फुटपाथ पर सो रहे लोग खुद सलमान की कार के नीचे आ गये थे, जैसे आरुषी भी खुद ही मर गयी थी, जैसे सरकार बदलते ही कई दफ्तरों में खुद ही आग लग जाती है और कई जरूरी दस्तावेज खुद चलकर उस आग में आहूत हो जाते हैं। ऐसे ही, मेरा निरंतर टूटते रहना भी इसी क्रम का ही हिस्सा है इसलिए आप आम लोग जरा संभल कर चले।
विक्रांत बंसल। एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय ।