धीरेंद्र पुंडीर
सिद्धारामैया को कांग्रेस ने जीत के लिए हर दांव की छूट दी। अलग झंडा, हिंदी से नफरत और लिंगायत जैसे दांव चले- लेकिन मोदी भारी पड़ते दिख रहे हैं। बीजेपी की जीत से मोदी को कोई मुकुट नहीं मिलेगा लेकिन हार पर बड़ी चोट सहनी होगी।
महर्षि वाल्मीकि की मूर्तियां, मोरारजी देसाई के नाम पर इंस्टीट्यूशन, जगजीवन राम के चित्र, बाबा साहेब अंबेडकर की कानून की किताब के साथ वाली चिर-परिचित मूर्तियां और संत कनकदास की गाते हुए मूर्तियां और साफ-सुथरे घरों वाले गांव। गांवों में नारियल और सुपारी के हरे भरे पेड़, गन्ने की फसलें, आमों से लदे हुए बाग, सड़कों के किनारों पर फूलों से लदे हुए मनमोहक गुलमोहर के अनगिनत पेड़ और इन सबके बीच कर्नाटक चुनाव बहुत से लोगों के लिए परीक्षा की तरह है।
राजनेता हमेशा परीक्षा देते हैं चुनावों में लेकिन चुनाव पत्रकारों के लिए भी एक परीक्षा होती है कि कौन से मुद्दे सामने ला पाये, क्या जनता के दिल तक जा पाए, क्या जनता की आकांक्षा और जातिवाद के बीच फंसी उसकी गर्भनाल का रिश्ता समझ पाए। हर बार ये आसान नहीं होता क्योंकि आप जितने लोगों से मिलते हैं उससे कई हजार गुना लोगों के मूड का अंदाज लगा रहे होते हैं। ये बात आप हर बार सीखते हैं और उसमें सुधार करते हैं कि आपकी समझ ने उन लोगों में क्या देखा? आज अगर विश्वास खोती कई संस्थाएं दिख रही हैं तो उनमें एक पत्रकारिता भी है। आप जनता में जाते हैं और उनका सबसे पहला और मासूम सा सवाल होता है कि आप किस पार्टी का प्रचार करते हैं।
मेरे लिए चुनाव हमेशा लोगों के बारे में मेरी अज्ञानता को दूर करने में थोड़ी मदद करते हैं। भारत में विविधता है ये बात हर कोई कह सकता है लेकिन इसमें अन्तर्निहित एकता देखने के लिए आपको लगातार घूमना पड़ता है। ये चुनाव भी इस मायने में बहुत अहम रहा। बैंगलोर में पहले कदम से ही आप को लगता है कि वाकई आप एकदम से अलग जगह कदम रख रहे हैं। बैंगलोर में आपको भाषाई दिक्कत नहीं होती लेकिन आपको अहसास हो जाता है कि भाषा आगे बड़ी दिक्कत होने जा रही है। कन्नड़भाषी गांवों में लोगों से बात करना काफी मुश्किल होता है। गांव में आपकी भाषा में उत्तर देना तो दूर ऐसा मालूम होता है कि कोई बात नहीं कर पाएगा। आपको ये फैसला करना होता है कि या तो आप सिर्फ उन शहरों को चुने जहां आपकी बात हिंदी या इंग्लिश में समझा जा सके या फिर आप उन अंजान गांवों में जाने का फैसला करे जहां इस बात की संभावना ज्यादा है कि आप गांव वालों के महज चेहरे देखकर वापस लौट आएं।
ज्यादातर रिपोर्टर्स ने दूसरा रास्ता चुना। मैं भी शहर दर शहर गुजरते हुए देहात में जरूर गया। और मेरे लिए हैरानी की बात ये रही लगभग स्वागत जैसा भाव दिखा। भाषाई दिक्कतों को उन्हीं में किसी एक ने दूर कर दिया। हर भीड़ में, गांव में, चौपाल में, आपको लोगों से बात करने का मौका मिला। यहां ये बात जरूर है कि बहुत से ऐसे मुद्दे जिनको आप सिर्फ भाषाई योग्यता हासिल करने के बाद ही समझ सकते थे उनको छोड़कर ज्यादातर बातें मालूम हुईं। पानी ऐसी समस्या थी जिसको आपने हर जगह देखा। खुशमिजाज लोग परेशानियों में हमेशा की तरह हास्य खोजते हुए सरकार को कभी कोसते तो कभी तारीफ करते दिखे। धीरे धीरे जाति का रहस्य भी हम लोगों के सामने खुल रहा था और फिर हम बस ड्राईवर से ये जानने के बाद कि ये किस जाति का गांव है, वहां का मिजाज कमोबेश समझने लगे।
चुनाव में एक बात विरोधाभासी थी। सिद्धारामैया की हिंदी न समझने की अदा और कन्नड़ प्राईड के लिए लड़ने की मुद्रा के दीवाने लोगों की एक भीड़ थी तो उससे उलट एक भीड़ मोदी की हिंदी को समझने में भी लगी हुई थी और हर बात पर ताली बजा रही थी। मैं हैरान था कि कर्नाटक में ये कौन सा कोण है, हिंदी से हाल फिलहाल कन्नड़ को तो कोई खतरा नहीं था, अगर भाषा की वजह से गांव के लोगों को परेशानी हो रही थी तो वो भाषा अंग्रेजी है लेकिन उस भाषा का स्वागत कर रहे हैं सिद्धारामैया।
सिद्धारमैया खुद मानते हैं कि सब्जी बेचने या मजदूरी का काम करने वाले ज्यादातर लोग हिंदी बोलने वाले हैं। ऐसे में हिंदी दूसरी भाषा को कैसे नुकसान पहुंचा सकती है लेकिन हिंदी विरोध को चुनाव का हथकंडा बना कर अच्छे से इस्तेमाल करते दिखे सिद्धारामैया। शहर दर शहर घूमते हुए दूसरी बात महसूस हुई कि नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री के अलावा देश में अपनी एक अपील रखने वाले नेता बने हुए हैं। गांव-गांव में लोगों को मोदी के बारे में कुछ न कुछ बोलना है। बीजेपी के समर्थक हैं तो उनके लिए मोदी ही सबसे बड़ा कारण है पार्टी को वोट देने के लिए। शहरी क्षेत्र में ऐसा अक्सर देखते हैं लेकिन गांवों में भी ऐसा ही हुआ। बीजेपी समर्थकों के लिए मोदी ही उनकी पार्टी का एजेंडा हैं और मोदी ही मुद्दा हैं। गांव गांव में लोगों को मोदी काम करते हुए दिख रहे है।
मैं हर बार अपना शक दूर करने के लिए इधर उधर करके सवाल करता था और मेरा साथी उसको कन्नड़ में दोहरा देता था और जवाब फिर वही मोदी को लेकर ही आता था। और कांग्रेस के समर्थकों के लिए मोदी सरकार ने कुछ नहीं किया इस बात का भाव लगातार सामने आता था। लेकिन बदले में उनकी उम्मीद सिद्धारमैया पर ही टिकती है। राहुल गांधी उस तरफ तभी सामने आते हैं जब मैं अपनी ओर से उसमें जोड़ देता। और मुझे ये जोड़ कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों के सामने भी करना पड़ा। हर कांग्रेसी की उम्मीद सिर्फ सिद्धारामैया की शुरू की गई स्कीम और लिंगायत को एक अलग धर्म बनाने की कहानी है।
यूं तो मठों में भी गया और वहां सिद्धारामैया के इस दांव के फायदे नुकसान का अंदाजा लगाने की कोशिश की लेकिन ऐसा लगा नहीं कि सिद्धारामैया को इससे कोई फायदा दिख रहा हो, हालांकि सीनियर जर्नलिस्ट मदन मोहन जी का कहना था कि इसके बारे में अभी से कुछ कहना बहुत जल्दबाजी है। किसानों के लिए वोक्कलिगा कुमारान्ना से बड़ा नेता नहीं है और दस साल पहले की उनकी डेढ़ दो साल की सरकार के काम अनुपम थे और करप्शन का कोई मसला उनके नेता की छवि को कमजोर नहीं करता है। और कोई हैरानी की बात नहीं कि पूरे चुनाव में करप्शन सिर्फ दूसरी पार्टियों के नेताओं पर ही है अपनी पार्टी के किसी नेता पर नहीं। यहां तक बल्लारी में भी रेड्ड़ी बंधु को बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने किसी तरह के करप्शन का आरोपी मानने से इंकार कर दिया। कांग्रेसियों ने भी कहा कि राजनीति में एक दूसरे पर केस दर्ज करवाने ही होते हैं क्योंकि उनका उम्मीदवार भी सीबीआई के शिकंजें में है।
इतना सब कुछ देखने के बाद समझ में आया कि बीजेपी को इस बार पहले से अधिक सीट मिल रही है। और पिछले अनुभव इस बारे में बताते हैं कि जो पार्टी तेजी से आगे बढ़ रही होती है वही जीत का मुकुट पहन लेती है। इसके अलावा जेडीएस का वोटर बैंग्लोर के लिए वोट करते वक्त कुमारान्ना को देखता है लेकिन वही दिल्ली के लिए मोदी का नाम लेता है। मैसूर के इलाके में जहां बीजेपी कभी ताकत नहीं दिखा पाई वहां भी कई चौपालों में इस बात पर जेडीएस के समर्थक एक जैसे अंदाज में दिखे कि केन्द्र में मोदी ही बेहतर है। जेडीएस का वोटर बेसिकली कांग्रेस का विरोधी वोटर है जो रामकृष्ण हेगड़े के समय से ही कांग्रेस के विरोध में वोट करता है। पहले हेगड़े और फिर देवेगौड़ा इन लोगों ने उस वोटर को एक ठौर दिया है। ऐसे में ये शिफ्ट होकर भी कांग्रेस पर नहीं जाता है और बीजेपी की उम्मीदों को काफी पंख लगा सकता है।
इस पूरे मसले में मोदी किस तरह चुनाव का मुद्दा है वो जिग्नेश मेवाणी और प्रकाश की हुबब्ली धारवाड़ में हुई प्रेस क्रांफ्रेस के बाद समझा जा सकता है। जिग्नेश से सवाल किया कि यहां एंटी इनकंबैसी किसके खिलाफ होगी क्योंकि चुनाव विधानसभा है तो उनका कहना था कि हमारे लिये बड़ा सवाल मोदी से बचाने का है। ऐसे में मैंने पूछ लिया कि क्या आप ऐसे कुछ लोगों की लिस्ट देखकर आए हैं जो निर्दलीय हो या फिर जनता के इश्यू पर हो लेकिन कांग्रेस में न हो, इस पर उनका जवाब कुछ नहीं था फिर से मोदी के विरोध की कहानी थी। प्रकाश राज तो फिल्मी पर्दे से उलट दिखे बहुत डरे हुए थे। कहना था कि बॉलीवुड भी मोदी के कदमों में है। इस पर एक पत्रकार ने पूछ लिया कि क्या आप को हिंदू धर्म से डर लगता है इस पर अचकचा गए प्रकाश ने कहा कि नहीं हिंदू धर्म के नाम पर जो हो रहा है उससे डर लगता है।
धीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही आपकी अपनी विशिष्ट पहचान है।