पशुपति शर्मा
दिसंबर के पहले हफ़्ते में आर्ट सर (श्री राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ) से आख़िरी मुलाक़ात हुई। सर के चेहरे का रंग काला पड़ चुका था। शरीर थोड़ा शिथिल सा था। आंखें झपक रही थीं। बावजूद इसके आर्ट सर ने मुझसे कुछ बातें की। वही आत्मीयता और परिवार से जुड़े सवाल। “बहू कैसी है, बाबू कैसा है? भान्जी की शादी कैसी रही?” फिर उन्होंने प्रीति को कहा- ‘भैया को जूस दो’। सर ने भी दो दिनों बाद लिक्विड डाइट लेना शुरू ही किया था। इस मुलाक़ात के बाद से ही मन भारी सा हो गया था। पिछले डेढ़ साल में पहली बार ऐसा लगा कैंसर से जंग लड़ रहा योद्धा अब इस चक्रव्यूह में घिरने लगा है, पस्त होने लगा है।
एक दिसंबर को राजेंद्र प्रसाद गुप्ता सर को मैक्स में एडमिट करवाया गया। सर का डायजेस्टिव सिस्टम गड़बड़ा गया था। वो कमजोरी महसूस कर रहे थे। खाना-पीना लगभग बंद हो गया था। वोमिटिंग हो रही थी। प्रीति (आर्ट सर की छोटी बेटी) की घबराहट बढ़ रही थी। एक बार फिर स्टंटिंग की जरूरत थी। मैक्स के डॉक्टर्स बार-बार एक ख़तरे की आशंका जाहिर कर रहे थे। इस ऊहापोह के बीच मेडिकल ट्रीटमेंट को लेकर सख़्त फ़ैसले लिए जा रहे थे। इस दौरान प्रीति खुद को संयमित और संयोजित रखने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी। 8 दिसंबर को तबीयत बिगड़ी और फिर आर्ट सर को आईसीयू में एडमिट करना पड़ गया।
मैक्स अस्पताल में तमाम जाने-अनजाने चेहरे दिखने लगे। बेगुसराय और पूर्णिया नवोदय के साथ राजेंद्र प्रसाद गुप्ता सर के तार किस कदर सघन रूप से जुड़े थे, वो इन चेहरों के भाव देखकर महसूस हो रहा था। रिश्तेदारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। फोन, सोशल ग्रुप्स और बातचीत में आर्ट सर की बिगड़ती तबीयत को लेकर चर्चा होने लगी। सभी एक अनजाने ख़तरे को लेकर सशंकित थे। 12 दिसंबर की रात करीब 8 बजे हर्ट स्ट्रोक और फिर एक कलाकार की यात्रा रूक सी गई। ब्रश और पेंट से एक दुनिया रचने वाला कलाकार बांसुरी की धुन के साथ अनंत की यात्रा पर निकल पड़ा।
कई ख्वाहिशें अधूरी रह गईं। श्री राजेंद्र प्रसाद गुप्ता सर की भी और हमारी भी। पिछले डेढ़ साल से जब से आर्ट सर को कैंसर की बीमारी का पता चला, हम उनके साथ तरह-तरह की योजनाएं बनाते रहे। कुछ साथियों ने बार-बार ख्वाहिश जाहिर की कि आर्ट सर की एक पेंटिंग एग्जीबिशन दिल्ली में आयोजित की जाए। खुद आर्ट सर कुछ और तैयारियों की बात कर इसे टालते रहे। हम उन पर बहुत ज्यादा जोर देकर इसे मुमकिन नहीं कर पाए।
राजेंद्र प्रसाद गुप्ता बतौर कलाकार भारतीय कला परंपरा को उसकी मूल आत्मा के साथ कैनवस पर उकेरने की साधना कर रहे थे। वॉश तकनीक को उन्होंने अपनी साधना से न केवल समृद्ध किया बल्कि इस क्षेत्र में शुरुआती वर्षों में ही अपनी एक अलग पहचान कायम कर ली थी। 1982 आते-आते राजेंद्र प्रसाद गुप्ता के चित्र राज्य और राष्ट्र स्तरीय कला प्रदर्शनियों में सराहे जाने लगे थे। 1985 तक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कला प्रेमियों और समीक्षकों के बीच अपनी छोटी ही सही किंतु अलग पहचान बना ली थी। शिल्प कला परिषद (पटना), बिहार राज्य ललित कला अकादमी (पटना), बिरला एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट एंड कल्चर (कलकत्ता), साहित्य कला अकादमी, ललित कला अकादमी (दिल्ली), उत्तर प्रदेश ललित कला अकादमी (लखनऊ), ऑल इंडिया ड्राइंग एग्जीबिशन (चंडीगढ़), द क्रिएटर (अंबाला) जैसी प्रमुख कला दीर्घाओं में आपके चित्रों को प्रदर्शित किया गया, पुरस्कृत किया गया। साहेबगंज के मिर्जापुर चौकी के लाल बाबू के लिए बतौर कलाकार मिल रही ये पहचान एक सपने के सच होने सरीखी थी।
इन्हीं अधूरी ख्वाहिशों में शुमार है, उनकी कला यात्रा पर एक मुकम्मल बातचीत। तीन किस्तों के बाद ये सिलसिला थम गया। अब हम चाहकर भी इसके आगे की यात्रा पर बात नहीं कर पाएंगे। एक पथिक जो बहुत सी यादें संजोए था, हमसे साझा करना चाहता था, हम उसे आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। मिर्जापुर चौकी में अभावों से शुरू हुई लाल बाबू की कला यात्रा में संघर्ष के कई पड़ाव रहे। लेकिन इस पथिक की सबसे बड़ी खासियत रही चेहरे पर छाई एक चिर-परिचित मुस्कान। कला के मूल स्वभाव आनंद को उन्होंने तमाम संघर्षों के बीच भी कायम रखा। उन्होंने अपनी जिंदगी को सुरूचिपूर्ण बनाया और अपनी परिधि में हमेशा एक सकारात्मक संसार रचा।
नवोदय विद्यालय पूर्णिया और फिर बेगुसराय में कला शिक्षक के बतौर सैकड़ों छात्रों को उनके सान्निध्य का लाभ मिला। वो छात्र जिन्हें कला में गहरी अभिरुचि थी, राजेंद्र प्रसाद गुप्ता केवल उनके ही प्रिय गुरु नहीं थे। बल्कि वो उनके कहीं ज्यादा प्रिय रहे जिन्हें ब्रश तक पकड़ने का शऊर नहीं रहा। मैं खुद ऐसे ही छात्रों में शुमार था। लेकिन ऐसे तमाम छात्रों को महज अपने स्नेहिल स्वभाव से आर्ट सर ने न केवल कला की दुनिया से रूबरू कराया बल्कि स्कूल की कला प्रदर्शनियों में उन्हें जगह भी दी। आर्ट सर से उनके छात्रों का किस कदर लगाव रहा है, उसे मृत्युंजय ने शब्दों में कुछ यूं बयां किया- “मेरी बिटिया जब भी अपनी कॉपी पे रंग उड़ेलती है, मुझे सर की याद आती है। और आती रहेगी। मैं कभी भी अच्छा आर्टिस्ट नहीं बन पाया, पर मैंने दुनिया का सबसे अच्छा आर्ट टीचर पाया। “
बतौर कलाकार श्री राजेंद्र प्रसाद गुप्ता की शख्सियत के कई रंग थे। उनमें एक चित्रकार भी बसता था, एक संगीत साधक भी और एक रंगकर्मी भी। पूर्णिया नवोदय की वो सांस्कृतिक सभाएं हम सभी के जेहन में कौंध रही हैं, जब आर्ट सर के लबों से बांसुरी की तान गूंजती थी। हर कोई सुध-बुध खो बैठता था। उन्हीं दिनों हमने एक छोटा सा नुक्कड़ नाटक भी तैयार किया था- “सब पेड़वा कटागईल हो रामा”। आर्ट सर ने खुद उसकी स्क्रिप्ट लिखी थी और उसका निर्देशन भी किया था। बोर्ड इम्तिहान से चंद दिनों पहले हमने इस नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन रांची में किया था और हमने नुक्कड़ नाट्य प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल किया था। सर ने ही मुझसे एकल अभिनय कराया था- सिनेमा हॉल की टिकट खिड़की पर भीड़ के बीच टिकट हासिल करने की खुशी।
आर्ट सर की अधूरी ख्वाहिशों में उनके नाटकों की पांडुलिपि भी है। वो मुझे सौंप गए हैं। मिर्जापुर चौकी, दरभंगा आर्ट कॉलेज और फिर नवोदय के दौरान उन्होंने कुछ नाटक लिखे। वो उन्होंने मुझे पढ़ने को सौंपे थे। पिछले दिनों की भागमभाग में उन्हें पढ़ नहीं पाया। अब इन पांडुलिपियों को आप सभी से साझा करने की जिम्मेदारी मेरी है। मैं देर-सवेर इसे आप तक पहुंचाने की कोशिश जरूर करूंगा।
मेरे गुरु ने मुझे हमेशा प्यार दिया। स्नेह दिया। मेरी ग़लतियों पर मुझे माफ़ किया। आख़िरी दिनों में भी उनका ये स्नेह बना रहा, आशीर्वाद बना रहा, ये मेरी खुशनसीबी है। 10 और 11 दिसंबर को मैं मैक्स अस्पताल नहीं जा सका। मुझे बेहद ग्लानि हो रही थी। 12 दिसंबर की सुबह मेरे गुरु ने ही मुझे बुलाया। आईसीयू में आखिरी दर्शन दिए। उन्होंने अपने आखिरी पलों में भी मेरे अपराधबोध से मुझे मुक्ति दे दी। गुरु हो तो राजेंद्र प्रसाद गुप्ता जैसा, जो चेतन और अवचेतन दोनों अवस्थाओं में हम जैसे स्वार्थी छात्रों से प्रेम करता है, उन पर अपना स्नेह उड़ेलता है, उन पर आशीर्वाद बरसाता है। मेरा भरोसा पक्का है, मेरा गुरु अपने पारलौकिक वजूद में भी हमारी ही फिक्र करता रहेगा। हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। सही और ग़लत की हमारी दृष्टि को परिमार्जित करता रहेगा। श्रद्धांजलि।
हां पशुपति जी ,अपने समादरणीय के खोने का दर्द वयां नही किया जासकता। आपके ‘ आर्ट सर ‘ पर केन्द्रित आपके तीनो संस्मरण पढा हू। अन्तर्मन को छू गया।लेकिन , अपनेसमादरणीय की अधूरी ख्वाहिशें यथा शक्ति पूरी करने की कोशिश ही उनकी याद को आपके जेहन मे बनाए रहे। गुरु का सम्माश करना कोई आप से सीखेः
धीरेंद्र पुंडीर- शिष्य भी गुरु की शिक्षाओं का आईना होता है उसमें झांक कर भी हम लोग गुरु को याद कर लेते हैं। आप में उनकी शिक्षा भी उनका होना है।
अखिलेश कुमार (नवोदय 87-94 बैच) उनकी शख्सियत उनके प्रति तमाम छात्र -छात्राओं एवं अन्य व्यक्तियों के स्नेह व जुड़ाव से महसूस की जा सकती है ।
मृत्युंजय कुमार (नवोदय 87-94 बैच) यार,तुमने मेरा नाम mention करके मेरा जन्म सफल कर दिया…… Sir को मेरा अंतिम प्रणाम
अनिल झा (नवोदय, 87-94 बैच) अवाक हूँ!
दीपक कुमार झा (नवोदय)ृ Bhaiya aapki is lekhni ko padhate padhate art sir ki wo tamam yande udhrit ho gayi. Naman hai sir ko unki is bemisal pari ke liye. Ashrupurn shradhanjali.
विक्रम कुमार, नवोदय पूर्णिया- Sir ko koti koti pranaam or shradhanjali?. Multi talented and great artist. Thanx Pashupati, Sir ke bare me bahut Kuchh batane ke liye.
दिलीप कुमार मंडल- मैं जहां तक सर के बारे में जानता हूं कि सर बेहद अच्छे इंसानों की गिनती में आते हैं, भगवान की भी नजरों में आते होंगे। मुझे याद है कि जब मैं नवोदय स्कूल में 12th में फेल हो गया था उसके बाद जब मैं नवोदय स्कूल में कदम रखा था तो कई शिक्षकों के द्वारा दुर्व्यवहार और ताने सुनने को मिले थे। उस दौरान सर का प्यार से बातें करना हौसला अफजाई करना मेरी जिंदगी को एक नई ऊर्जा उमंग उत्साह भर गया था। वरना उस दौरान लोगों का व्यवहार और शिक्षकों के ताने मुझे कोई गलत कदम उठाने के लिए विवश कर दिए होते। मैं आज सर दिल से शुक्रिया अदा करता हूं और सर जिस दुनिया में चले गए हैं इस दुनिया में आ तो नहीं सकते। मगर उनकी कुछ स्मृतियां हमारी जिंदगी भर हमारे दिलों में बसी रहेंगे भगवान उनकी आत्मा को शांति दे
गौरव आनंद- Sir, aap jaise, Jeevat ke Dhani vyakti se milna, baatein karna, aashirwaad lena hi jeevan ka safal hona hai.
Shradhanjali!
प्रभात शर्मा- A very talented & popular teacher has left us for his peace from the troublesome world.
His journey with Navodaya family has full of life with his love to his students.
His works & qualities will be for ever with all of us .
Shradhanjali & prayer for courage to his family to overcome the loss due to untimely demise.
रतन प्रिया- Bhagwan…ye kya kar diya. Wo Guru hi nahi wo humse pehle hume samajh jane wale sachche dost the.. har ek student ka unse ek gehra nata..kabhi nahi bhul sakenge Sir apki sikh ko apki baton ko..apko..
Last year apne sachche dost apne Pita ko maine isi bimari se kho diya aur aaj Pita tulya.. bahut dukhad samay..
राजीव राज- वे हमारे भी गुरू रहे हैं उनसे मैंने दो – तीन माह ही पेंटिंग सीखी है पर चित्रकारी का ज़मीनी इल्म मैंने उन्हीं से जाना है। आज वे इस संसार को छोड़ पंचतत्व में विलीन हो गए हैं । शत् शत् प्रणाम ! श्रद्धांजलि !
स्वरुप दास- मुलाकात उतनी नहीं होती थी फिर भी बहुत करीब थे Art Sir . इतनी जल्दी चले ज़ायेंगे….. बहुत सारी यादे हैं . Purnia में हमलोगों ने एक साथ बहुत काम किये . नवोदय में नुक्कड नाटक , Painting competition , और music . गुप्ता जी बांसुरी लेकर आते थे , मैं, लालू और गुप्ता जी रियाज किया करते थे. अलग-अलग scale का बांसुरी वो खुद बनाते थे . उनके हाथ का बना greetings card करीब 25 साल पुराना , अभी भी है . इसी छोटी सी याद के साथ उनको प्यार भरी श्रद्धांजलि .
कृष्ण शर्मा- I am really very shocked to know about the sudden demise of a versatile artist and a very fine gentleman.I pray to Almighty to grant peace to the departed soul. Om Shanti …
प्रगति कुमार- हमारी कमनसीबी कि सर जब बेगूसराय आये तो हमारा बैच निकल चुका था..खुशनसीबी ये कि जब से इनसे मिला..जाना..कभी ये नहीं लगा कि हम इधर ही मिले हैं..हरदम इस फेर में रहते कि कैसे बच्चों का भला हो..सुशांत जी, फलां बच्चे को आर्थिक सहायता चाहिए..प्रगति, फलां को कुछ गाइडेन्स चाहिए..आपलोग एलुमनी एसोसिएशन के काम आगे बढ़ाइए.. ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों की मदद हो सके..
कहां मिलते हैं ऐसे गुरु..और भी कई बातें..आत्मीयता भरी..
आपका जाना बहुत खाली कर गया.