टीम बदलाव
गांव और निचले तबके का विकास राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्राथमिकताओं में हमेशा सबसे ऊपर रहा। लिहाजा बापू के आदर्शों को जीवन में उतारने की हर मुमकिन कोशिश में जुटी टीम बदलाव ने गांधी जयंती के मौके पर समाज के उपेक्षित किंतु अपेक्षित वर्ग के बच्चों में शिक्षा की रौशनी बिखेरने का जो संकल्प लिया वो अब धीरे-धीरे ही सही अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा है ।
बापू ने कहा है कि कोई भी काम हो उसे बेहद सादगी पूर्ण ढंग से करना चाहिए, लिहाजा सामान्य तरीके से बिहार के मुजफ्फरपुर में शुरू हुई बदलाव पाठशाल दो महीने पूरा कर चुकी है । पिछले दो महीने में बदलाव पाठशाला के बच्चों में क्या बदलाव आया, बच्चे क्या नया सीख पाए और दो महीने में बच्चों में कितना आत्मविश्वास बढ़ा, ये सब जानने के लिए पेश है एक छोटी सी रिपोर्ट ।
तन्नु, गौरव, रोहन, शिल्की, चंदा, भोला, तन्नु जैसे कुल 10 बच्चे बदलाव पाठशाला के नियमति विद्यार्थी हैं । इन सभी की उम्र 8 से 14 साल के बीच है । ये सभी बच्चे निम्न मध्यम वर्गीय किसान परिवार से आते हैं और सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं । इनके पिता, चाचा सुबह से शाम तक खेत में काम करते हैं और मां घर के कामकाज में जुटी रहती हैं, लेकिन बच्चों के लिए किसी के पास अलग से वक्त नहीं हुआ करता । लिहाजा बच्चे स्कूल जा रहे हैं या फिर रास्ते में खेलकर लौट आ रहे हैं किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता । एक बात और बदलाव पाठशाला के जिन बच्चों का जिक्र हम कर रहे हैं उनमें से ज्यादातर के पिता ककहरा तक नहीं जानते । लिहाजा पढ़ाई से ज्यादा मां-बाप को बच्चों से घर और बाहर का काम कराने में दिलचस्पी है। ना तो स्कूल जिने की जरूरत न रात में घर पर स्वाध्याय की फिक्र।ऐसे परिवार के बच्चों का चयन करना टीम बदलाव के लिए जितना मुश्किल भरा रहा उतना ही उन्हें बदलाव पाठशाला में नियमित ले आना । बच्चे जब बदलाव पाठशाला में आने लगे तो हमने महसूस किया कि 5वीं कक्षा तक के बच्चों को ना तो अंकों का ठीक से ज्ञान है और ना ही शब्दों की पहचान ।
लिहाजा हामारी पहली कोशिश ये रही कि बच्चे किसी तरह रोजना पाठशाला आएं, क्योंकि जब बच्चे एक जगह बैठेंगे तभी कुछ पढ़ेंगे । कुछ दिनों तक तो बच्चे समय से पाठशाला में आ ही नही रहे थे। इस पर उनके अभिभावकों को बुला कर समझाने की कोशिश की गई।
हालांकि 2 महीने के कड़ी मेहनत के बाद आज स्थिति काफी बदल चुकी है । बच्चे ना सिर्फ समय से (शाम 4-6 बजे) पाठशाला आ रहे हैं बल्कि उनकी संख्या भी 10 से बढ़कर 12 हो चुकी है । यही नहीं कल तक जो अभिभावक बच्चों की पढ़ाई में कोई दिलस्चपी नहीं लेते थे आज वो ना सिर्फ अपने बच्चों में आ रहे छोटे-छोटे बदलाव से खुश हैं बल्कि इन बच्चों को देखकर दूसरे अभिभावक भी अपने बच्चों को बदलाव पाठशाला में भेजने का अनुरोध करने लगे हैं । हालांकि टीम बदलाव ने पाठशाला की आधारशिला रखते वक्त 10-12 बच्चों का निर्धारण किया था ताकि बच्चों की शिक्षा में कोई रुकावट ना आए लिहाजा फिलहाल बच्चों की संख्या बढ़ाना अभी मुश्किल है । क्योंकि बच्चे ज्यादा होंगे तो संसाधन की भी जरूरत उतनी ही ज्यादा होगी, चूंकि बदलाव कुछ साथियों के सहयोग से चल रहा है लिहाजा जब तक और संसाधन की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक हम संख्या या नई पाठशाला खोलने पर विचार नहीं कर सकते । हां अगर कोई अपने यहां पाठशाला खोलने का प्रस्ताव देता है तो टीम बदलाव इसपर विचार कर सकती है।
टीम बदलाव ढाई आखर फाउंडेशन की शुक्रगुजार है जिसकी वजह से गांव के वो बच्चे जो कल तक कम्फ्यूटर का क नही जानते थे आज वो लैपटॉप को देख रहे हैं बल्कि उससे काफी कुछ सीख भी रहे हैं और ये सब मुमकिन हुआ ढाई आखर की ओर से उपलब्ध कराए गए लैपटॉप की बदौलत ।
हम ये नहीं कह रहे हैं कि इन 60 दिनों बहुत बड़ा कोई बदलाव हो गया लेकिन इतना जरूर है कि बच्चों में पढ़ने की ललक बढ़ी है । बिना बुलाए बच्चे 4 बजे की बजाय 3 बजे ही पाठशाला पहुंच रहे हैं । खास बात ये है कि 2 घंटे की पढ़ाई के बाद बच्चे करीब एक घंटे तक स्वाध्याय करते हैं और ये हर दिन का रुटीन बन गया है । टीम बदलाव रिटायर्ड शिक्षक ब्रह्मानंद ठाकुर का तहेदिल से शुक्रगुजार है जिनके संरक्षण में बदलाव पाठशाल की नींव रखी गई । साथ ही पाठशाल में नियमित बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक बिंदेश्वर राय का योगदान भी सराहनीय है । इसके अलावा समय समय पर बच्चों में कंप्यूटर और तकनीकी ज्ञान का लालसा बढ़ाने के लिए मणिकांत और शिवकांत के भी हम आभारी हैं। बदलाव पाठशाल के लिए योगदान दे रहे उन सभी लोगों का शुक्रिया जिन्होंने किसी ना किसी रूप में बदलाव पाठशाल के संचालन में मदद पहुंचा रहे हैं। उम्मीद है कि बदलाव पाठशाला का ये कारवां यूं ही आगे बढ़ता रहेगा । शायद किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘’रगडने दे वतन की रेत एंडियां मुझको/यकीन है, पानी यहीं से निकलेगा।’