विपिन कुमार दास
दरभंगा के लालबाग की वजीफन खातून ने नारी शक्ति की एक बड़ी मिसाल पेश की है। वो छपरा के मढ़ौरा (सारण) से रोजी-रोटी की तलाश में दरभंगा पहुंची। वजीफन ने गाड़ियों की पेंटिग का वर्कशॉप शुरू किया। इस तरह का काम करने वाली वो फिलहाल बिहार की इकलौती महिला हैं। वो बारह साल से ये काम करती आ रही हैं।
लेकिन पांच साल पहले पति की मौत के बाद उन्होंने पांच-बच्चों की परिवरिश के साथ-साथ वर्कशॉप को भी अकेले संभाला है।
न तो बड़ी जगह और ना ही आधुनिक मशीन या औजार, वजीफन खातून के पास कुछ बड़ा है तो वो है उनका हौसला। दरभंगा शहर के लालबाग मुहल्ले की एक सकड़ी गली में सबीर हिट पेन्टर नाम का वर्कशॉप लोगों के लिए हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। वजीफन ने अपने मरहूम पति सबीर के नाम पर ये वर्कशॉप चलाती हैं। जेनरेटर स्टार्ट करने से लेकर गाड़ियों के कल-पुर्जे की घिसाई और फिर उसकी पेन्टिंग सब कुछ वो खुद ही करती हैं। वजीफन का हाथ किसी भी कुशल मेकेनिक से कहीं ज्यादा सफाई से और तेजी से चलता है। इतना ही नहीं पाँच बच्चों के लिए खाना बनाने से लेकर उनकी पढाई लिखाई तक का जिम्मा खुद ही सम्हालती है।
वजीफन के इस काम को शरू-शरू मे लोगों ने हिकारत की नज़र से देखा। लेकिन धीरे-धीरे उसके बुलंद हौसले की तारीफ़ होने लगी और शहर में उसे आदर मिलने लगा। वजीफन का मानना है कि जिंदगी से क्या शिकवा, हमने तो अपना रास्ता ढूंढ लिया। वजीफन कहती हैं कि मुश्किल आने पर घबराना नहीं, बल्कि उसका सामना करना चाहिए, आगे खुदा की मर्जी।
वजीफन खातून का 1990 में मढ़ौरा (सारण) के साबिर हुसैन से ब्याह हुआ। पति ने पटना के नाला रोड में दुकान खोलकर पेंटर का काम शुरू किया। कुछ दिन बाद, जब कारोबार धीमा पड़ा तो काम की तलाश में सपरिवार दरभंगा आ गए। किडनी और कैंसर की बीमारी से कारण साल 2007 में वजीफन के पति साबिर की मौत हो गयी। दरभंगा से दिल्ली तक वजीफन ने पति इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जब पति का इंतकाल हुआ, छोटी बेटी यासरीन सालभर की थी। मायके और ससुराल वालों ने भी वजीफन का हाल-चाल पूछने की जहमत नहीं उठाई। पति के काम में कभी-कभार हाथ बंटाते समय जो कुछ वजीफन ने सीखा, उसे अपने जीवन में आजमाना शुरू कर दिया।
आज स्थिति ये है कि वजीफन को काम से फुर्सत नहीं मिलती। इलाके के लोग उनकी कारीगरी के मुरीद हैं। कार, बाइक की पेंटिंग के लिए लाइन लगी रहती है। स्थानीय लोग भी वजीफन खातून की मेहनत और लगन की सराहना करते नहीं थकते, क्योंकि अकेली महिला ने मुसीबत के पलों में दूसरों का मुंह देखने के बजाय अपने हुनर से आने उसका सामना किया। किसी शायर ने शायद वजीफन जैसी महिलाओं के लिए ही लिखा हो-
हमने उन तुद हवाओं में जलाए हैं चिराग
जिन हवाओं ने उलट दी है बिसातें अक्सर
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आशीष सागर- सलाम