रूपेश कुमार
आज महापर्व छठ है। एक साल के इंतज़ार के बाद छठ का पर्व आया है। दिल्ली सहित पूरे भारत से परदेसी बाबुओं का पिछले तीन दिनों से लगातार आना जारी है। सभी ट्रेनें भरी हैं। बस, टेंपो, टैक्सी सब के सब खचाखच भरे हुए। सुबह तीन बजे से ही भारी भरकम बैग और सूटकेस कंधे पर उठाये लोग अपने गांव की ओर भागे जा रहे हैं। कौन अमीर और कौन गरीब। उनमें सुबह की प्रतीक्षा का सब्र नहीं। कुछ परिवार के लोग उदास हैं कि ट्रेन में टिकट नहीं मिलने के कारण उनके रिश्तेदार नहीं आ रहे। उन्हें अब दिल्ली में ही छठ की परंपरा निभानी होगी।
बेहद सादगी से भरे लोक आस्था के इस महान पर्व को धर्म के नजरिये से देखें या आस्था के पहलू से, इसमें उतनी ही विशालता नजर आती है। भारतीय समाजवादी परंपरा की सच्ची और जीती जागती तस्वीर है यह छठ पर्व। न आडंबर, न पैसा और न स्टेटस। छठ घाट पर सब बराबर।
पिछले कई दिनों से बाज़ार में खरीदारी के लिए भीड़ उमड़ी पड़ी है। हर जगह जाम ही जाम, लेकिन खास बात है कि भारत का यह एक मात्र महापर्व है जिसमें बाजार गौण हो जाता है। बाजार में भीड़ ही भीड़ है लेकिन खरीदना क्या है लोगों को, केवल कंद और मूल। छठ पर्व में प्रसाद तैयार करने में कुछ आटा, चीनी और तेल के अतिरिक्त ऐसी वनस्पतियों का इस्तेमाल होता है, जो बस इस पर्व के दरम्यान ही कीमती हो उठती हैं।
पिछले दो महीने से बांस के शिल्पकार कहे जाने वाली मरीक जाति के लोग दिन रात लग कर सूप तैयार कर रहे थे। दउरा बनाया जा रहा था। इस महापर्व की महत्ता तो देखिये सौदागर वे ही हैं जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़े हैं। कंद – मूल में अदरक, हल्दी, सुथनी, अल्हुआ, मूली है। इसके अलावा नारियल, र्इख और कुछ फल आदि। बस यही कुछ मुख्य खरीदारी है छठ पर्व की। बाजार में यही खरीदने वाले लोगों की भीड़ है। पंजाब में मजदूरी कर लौटा सिंहेश्वर का बिजेंद्र भी यही खरीद रहा है और शहर में पेट्रोल पंप के मालिक चंदन कुमार भी यही सामग्री खरीदते नजर आये। फिर भी कहीं- कहीं बाजार अपनी चाल से बाज नहीं आ रहा है। शाम होते -होते नारियल की कमी हो गयी है और कीमत ऊंची।
तालाब के घाट पर सब मिल कर तैयारी कर रहे हैं। सबके घाट एक से ही। पानी सबका और सूर्य देव भी। सब एक समान।
घाट पर गरीब और अमीर का भेद नहीं है। सबके सूप के प्रसाद की महत्ता एक समान। छठी मइया की सब संतान।
नहीं.. यह बाजार का पर्व कतई नहीं। यह लोक की शक्ति है, जन की ताकत है। उनकी आस्था की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे कोई बाजार नहीं हिला सकेगा।
मधेपुरा के सिंहेश्वर के निवासी रुपेश कुमार की रिपोर्टिंग का गांवों से गहरा ताल्लुक रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद शुरुआती दौर में दिल्ली-मेरठ तक की दौड़ को विराम अपने गांव आकर मिला। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।
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