अश्विनी शर्मा
विख्यात कवि धूमिल के गांव खेवली की पन्ना माई बिलख रहीं हैं। अपने खून से ही दया की भीख मांग रहीं हैं। करुण वेदना से टकटकी लगाएं हैं लेकिन अपने ही जान लेने पर उतारू हैं। एक तरफ नवरात्र से दीवाली तक त्योहारों के दौरान हिंदू भक्ति में लीन हैं तो दूसरी तरफ बनारस शहर से 12 किलोमीटर दूर खेवली में 95 साल की नेत्रहीन पन्ना माई को मरने के लिए उनकी औलादों ने ही छोड़ दिया है। जब तक पन्ना माई में ताकत थी वो अपने बच्चों और बच्चों के भी बच्चों की खिदमत करती रहीं लेकिन अब वो मात्र ढांचा रह गई हैं। अब वो उन्हीं बच्चों के लिए बोझ बन गईं हैं। पन्ना माई जब जवान थीं तब धूमिल जन्मे रहे होंगे। धूमिल का बचपन देखने वाली पन्ना आज जीने के लिए जद्दोजहद कर रहीं हैं।
आज धूमिल जिंदा होते तो वो भी मर्माहत होते। खुद तो बच्चे पक्के मकान में रहते हैं और पन्ना माई भैंसों के साथ खुले आसमान के नीचे दिन रात पड़ीं रहती हैं। रात गहराने पर भैंसों को भी सुरक्षित जगह ले जाया जाता है लेकिन पन्ना माई अब किस काम की हैं सो बच्चे उन्हें खाट पर ही रहने देते हैं। अब सोचिए क्या जर्जर हो चुकी पन्ना माई मौसम की मार को झेल सकती हैं? बात-बात पर उन्हें पीटा जाता है। कहते हैं बेटे बहू पोते सब जुल्म करते हैं। चौंकाने वाली बात है कि यदि कोई पड़ोसी पन्ना माई की मदद करना चाहता है तो परिवार पड़ोसियों से भी मार पीट को उतारू रहता है और तो और नाराजगी पन्ना माई को मारपीट कर ही उनकी शांत होती है। सवाल है आखिर वो जिंदा कैसे बचेंगी? अरे मां अगर बोझ हो गई है उसका चेहरा नहीं पसंद है या सेवा से भागना चाहते हो तो उस पर जुल्म करने की बजाय उसे वृद्धाश्रम में ही डाल दो लेकिन मां को इतना कष्ट तो मत दो।
सोचो अगर पन्ना मां ने तुम्हें भी जन्म लेते ही भैसों के पास छोड़ दिया होता तो क्या इतनी बर्बरता के लिए आज तुम जिंदा होते? बच्चा जब बोलना भी नही जानता, अपनी भावनाएं ठीक से व्यक्त करना नहीं जानता, ये नहीं बता सकता कि उसे प्यास लगी है या भूख, ये नहीं जता सकता कि उसके मासूम मन में क्या चल रहा है? ये नहीं बता सकता कि वो क्यों रो रहा है? फिर भी मां अपने मासूम की बात समझ जाती है और उसे चुप कराने के लिए तरह तरह की भाव भंगिमा बनाती है। बच्चे की नींद सोती है, जागती है। बच्चा तुतलाता है तो उसके साथ वो भी तुतलाती है। मां दिन भर बच्चे की देख-रेख में लगी रहती है। अपनी जान अपने बच्चों में डाल देती है और उसी के दुख-दर्द के साथ अपना जीवन जीती है। लेकिन वही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो बताने पर भी मां की भावनाओं, दुख-दर्द, तकलीफ का ख्याल नहीं रखते। मां चीखती-चिल्लाती रह जाती है फिर भी कई ऐसे बेटे हैं जिनकी कान पर जू तक नहीं रेंगती। लालन-पालन करने वाली मां को बोझ समझने लगते हैं। ये इंतजार करते हैं कि कब वो इस दुनिया से चली जाए। मां बच्चों की देख-रेख में पैसों का हिसाब नहीं करती लेकिन कई बेटे पहले पैसे का फिर मां का हिसाब करते हैं।
अश्विनी शर्मा। बीएचयू से दर्शनशास्त्र में परास्नातक, संगीत की भी पढ़ाई की। मुंबई से एनिमेशन स्पेशल इफेक्ट्स की पढ़ाई और साल 2000 से मीडिया में सक्रिय। स्टार न्यूज, लाइव इंडिया, टीवी9 महाराष्ट्र के बाद एपीएन चैनल में बतौर सीनियर प्रोड्यूसर कार्यरत।
Sandeep Sharma- bahut durbhagyapurna hai