मुनव्वर – मेरी नज़र से देखो मेरी माँ

 

MUNNAWAR RANAउर्दू के जाने माने शायर मुनव्वर राणा ने साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटा दिया है। अभी वो इसी वजह से सुर्खियों में हैं। जाहिर है, सम्मान को लेकर जो सियासत चल रही है, उसमें कई पाठक उनके इस कदम की सराहना कर रहे होंगे, कुछ पाठकों को उनसे शिकायत होगी। लेकिन मुनव्वर के एक मुरीद फिलहाल उनसे शिकवे-शिकायतें तो कर रहे हैं लेकिन इसकी धुरी है, वो मां- जिसने मुनव्वर को मुनव्वर बना डाला।

शिवेंद्र कुमार 

आज वीमेन्स डे नहीं है, मदर्स डे भी नहीं है और न ही मेरी माँ का जन्मदिन या सालगिरह वैगरह कुछ है। आज मेरे पैदा होने का दिन भी नहीं है। आज का दिन बस एक साधारण सा दिन है जो अब बीतने को है। दिन ने अपने सारे काम निपटा लिए हैं। किसी को घाम तो किसी को कुहरा बाँटकर अब वह घर जा रहा है। कुछ ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें आज कुछ नहीं मिला होगा, दिन उनसे बिना कोई वायदा किये ही घर जा रहा है। अगर वह एक बार कह देता कि तुम्हें कल कुछ दूंगा तो देश बल्कि दुनिया के पास कम से कम एक उम्मीद की पुड़िया होती। मगर दिन कोई नेता नहीं है वह अच्छे कल की चूरन दिए बिना ही जा रहा है।

पता नहीं दिन जहाँ जा रहा है, वहां कोई होगा भी या नहीं? पता नहीं वह गांव के घर जा रहा है या किसी महानगर के किराये वाले कमरे में? पताTaken with Lumia Selfie नहीं आज उसके घर में आटा है कि ख़तम हो गया है ? पता नहीं उसके पास भूख को तसल्ली देने के लिए पानी पकाने वाली माँ होगी या नहीं? (भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए/माँ ने फिर पानी पकाया देर तक) जिस दिन को हम रोज देखते हैं, उस दिन के बारे में हम कुछ नहीं जानते; हम किसी दिन के बारे में कुछ सोचते भी नहीं ! दिन से हमारा काम बस इतना है कि वह हर रोज ऑफिस आये। ऐसे में यह सोचना अच्छा लगता है कि दिन के पास कम से कम एक माँ है। मेरी माँ जैसी माँ नहीं, मुनव्वर राणा की माँ जैसी माँ।

मैंने रोते हुए किसी दिन पोंछे थे आंसू

मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

ऐसी वाली माँ। मेरी माँ ऐसी नहीं है। बचपन में एक बार मैंने उसके दुपट्टे में अपनी नाक पोछी थी तो उसने कसके एक चाटा रसीद किया था। मैं दुआ करता हूँ कि दिन के पास शशि कपूर वाली माँ हो। जब बाकी लोग दिन को अपना गाड़ी, बंग्ला, बैंक बैलेंस और ब्लैक मनी दिखा रहे हों तो वह उनकी आँखों में आँखे डालकर, (कुछ न होने से बढ़कर कोई शान नहीं होती वाली) शान में, सीना तानकर कहे कि मेरे पास माँ है। मुझे तो माँ के होने से डर लगता था। स्कूल से घर लौटता तो कोशिश करता कि माँ न देखे, अगर देख लेती तो वह होमवर्क के बारे में पूछने लगती और खेलने जाना कैंसिल हो जाता। माँ ने मुझे जबरदस्ती करेले की कड़वी सब्जियां खिलाई हैं। हर दोपहर वह मुझसे अंग्रेजी के दस मायने याद करवाती (जिनमें से अब मुझे एक भी याद नहीं)। जब लू चलती तो बेवजह जेब में एक प्याज रख देती, खुद पूजा करती और मुझसे भी करवाती। माँ के पास हर काम के लिए अपने लॉजिक होते, वही लॉजिक मुझे भी मानने पड़ते, न मानने पर माँ ने मेरी चप्पलों से पिटाई की है। मुनव्वर की माँ की तरहबस माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती’ वाली माँ मेरे पास नहीं थी, लोग खुश भी होते तो माँ मुझसे ख़फ़ा हो जाती।

shivendra1एक बार आंधी आई तो मैं बगीचे में आम बीनने चला गया, दादी खुश हुईं कि चटनी के लिए आम हो गया। माँ ने पिटाई की कि कोई टहनी तुम पर गिर जाती तो ? मुनव्वर की माँ कितनी अच्छी थीं कि जब भी वह कोई गुनाह करते तो उनकी माँ बस रोकर बात ख़त्म कर देतीं।

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

मेरी माँ ने मेरी हर गलती को पिता तक पहुँचाया है। एक बार मेरे मुहल्ले के एक लड़के ने मुझे गाली दी तो मैंने पत्थर मारकर उसका सर फोड़ दिया। उसकी माँ ने मेरी माँ से शिकायत की। माँ ने पूछा कि क्यों मारा? अब माँ से कहते ये ठीक नहीं लग रहा था कि इसने गाली दी, इसलिए मैं बस चुप रहा। माँ ने चप्पल निकाला और मुझे पकड़ने को हुईं तब तक मैं सीढ़ी कूदकर भाग चुका था। माँ को गुस्सा आ गया, उन्हें लगा कि लड़का गुंडा हो रहा है। रात जब मैं खाना खाने आया तो उन्होंने पिता से शिकायत की। उस रात मेरी वैसी ही धुनाई हुई जैसे थाने में गुंडों की होती है। माँ चाहती तो रोकर बात ख़त्म कर सकती थी। पर वह मुनव्वर की माँ थोड़ी ही थी, वह तो मेरी माँ थी।

मुनव्वर की तरह मैं यह बात नहीं जानता कि जब तक मैं घर नहीं लौटता तब तक मेरी माँ सिर्फ सजदे में ही रहती है या उसी समय में बेसन के लड्डू भी बना लेती है। मुनव्वर की माँ और मेरी माँ में इतने सारे डिफरेंसेस होने के बावजूद अपनी माँ के बारे में मैं एक बात बिलकुल मुनव्वर की तरह कहना चाहता हूँ वो ये कि ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता।

shivendra


शिवेंद्र कुमार। युवा लेखक, फ़िलहाल मुंबई में टीवी सीरियल के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं। कई कहानियां देश की मुख्य साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।


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