राकेश कुमार मालवीय
उस लड़की के जोर से चिल्लाने से मेरी नींद खुली। वह अपनी बर्थ से उठकर दौड़ती ट्रेन के फर्श पर बदहवास-सी खड़ी थी। अंधेरे में उसकी पीठ मेरी ओर थी, चेहरा दिख नहीं रहा था, समझ नहीं आया कि वह घबराई हुई है या गुस्से में है। भोपाल से चलकर दुर्ग को जाने वाली अमरकंटक एक्सप्रेस की अपर बर्थ पर सो रही अपनी बड़ी बहन को वह जगा रही थी। बहन जागी तो पहले कम्पार्टमेंट की बत्ती जलाई गई। रात को दो बजे के आसपास ट्रेन शहडोल के करीब कहीं दौड़ रही थी। इस शोर-शराबे से अन्य यात्रियों की नींद टूटी। मैं भी मामला समझने की कोशिश करने लगा। लड़की का इशारा ठीक बाजू के कम्पार्टमेंट की साइड अपर बर्थ सीट पर बैठे एक शख्स की तरफ था। तब तक उसकी बहन भी उतरकर नीचे आ गई। ‘इसने मुझे टच किया… एक बार नहीं… तीन बार टच किया…’ उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
आरोपी व्यक्ति ने अपनी बर्थ पर बैठे-बैठे ही जवाब दिया, ‘मैडम, आपको गलतफहमी हुई है…’ वह इन आरोपों को सिरे से नकार रहा था। बाकी यात्री निरपेक्ष भाव में थे। लड़की ने सवाल दागा, “इतनी रात को यह अपनी बर्थ पर बैठा क्यों है…? यह चौथी बार भी आता और हरकत करता… इसने मेरी ब्रेस्ट को छुआ और जब तीसरी बार भी ऐसा हुआ तो मैं समझ गई कि यह जानबूझकर ऐसा कर रहा है… मैंने आपत्ति जताई तो इसने कहा, मैं देख रहा था- मेरा बेटा कहां सो रहा है…? बताइए, इसका बेटा कहां है…? बता, तेरा बेटा कहां है…?” लड़की की आंख में आंसू थे। पता नहीं, इन सवालों पर वह आदमी चौंक रहा था या चौंकने का नाटक कर रहा था! वह लगातार यही कह रहा था, “आपको गलतफहमी हो रही है…” लेकिन इस बात का कोई जवाब नहीं था कि ‘उसका बेटा कहां है…?’ उसका यह तर्क ज़रूर था कि ऐसा किया तो आपने तुरंत एक्शन क्यों नहीं लिया…? हम यात्री चार-पांच मिनट के इस घटनाक्रम में कुछ भी तय कर पाने की स्थिति में नहीं थे। … और अक्सर होता यही है कि ऐसे संवेदनशील मसले पर चुप्पी ही होती है।
जीन्स-टीशर्ट पहले वह दोनों बहनें लिबास और व्यवहार से उच्च-मध्यमवर्गीय परिवार से लग रही थीं। रेल में वे दोनों ही सफर कर रही थीं, उनके साथ कोई पुरुष नहीं था, जिसे हम सुरक्षा की गारंटी मानकर चलते हैं। वही सोच महिलाओं को जीवन भर अकेले सफर ही नहीं करने देती। दूसरी तरफ वह व्यक्ति भी किसी ऐसी उम्र या अवस्था का नहीं लग रहा था, जिसे एक दौर का असर मान लिया जाए। ऐसी स्थिति में किसी निर्णय पर पहुंचना आसान भी नहीं होता।
उस आदमी को अपनी गलती न मानता देख उन्होंने पुलिस के पास जाने का निर्णय लिया। उधर से एक पुलिसवाला आता हुआ दिखाई भी दिया। यह संयोग था या शोरगुल सुनकर इधर आया, पता नहीं। उसने पहले अपने स्तर पर लड़कियों से बात की। मामला संगीन देखकर उसने फोन करके अपने वरिष्ठ अधिकारी को बुलाया। अगले दो या तीन मिनट में एक अधिकारी समेत दो बंदूकधारी और दो पुलिस वालों सहित पांच लोगों की टीम मौके पर मौजूद थी। यह एक अच्छा अनुभव था। लगा कि नरेंद्र मोदी की सरकार और सुरेश प्रभु की रेल में यह तो अच्छी बात हुई।
अब वरिष्ठ अधिकारी के सामने एक बार फिर वही किस्सा दोहराया जा रहा था। वह आदमी लगातार आरोपों को वहीं बैठे-बैठे खारिज कर रहा था। पुलिस वाले ने उस आदमी को डांटा और उसे नीचे उतरकर बात करने को कहा। पुलिस वाले दोनों ओर के तर्क सुनकर स्थिति को जांचने की कोशिश कर रहे थे। लड़की का कहना था कि मैं ‘इसी पर क्यों आरोप लगा रही हूं, जबकि कम्पार्टमेंट में और भी लोग सो रहे हैं...’ अंत में यह लाइन भी कि अब रेल में कैमरे लगाने पड़ेंगे, तभी तुम लोग सुधरोगे।
पुलिस वालों ने लड़कियों को भरोसा दिलाया, ‘आप चिंता न करो, अब कुछ नहीं होगा…’ उन्होंने कहा, ‘आप थोड़ा सोच लीजिए, आपको क्या करना है… क्या रिपोर्ट दर्ज करानी है या इस व्यक्ति की सीट बदल दें…’ अधिकारी ने अपने मातहत को आदेश दिया, ‘जाओ, टीटीई को देखो, कहां है…?’ दोनों लड़कियां एक-दूसरे की तरफ देखकर सोचने लगीं। उन्होंने अपने किसी रिलेटिव या सहेली को फोन लगाया, उनकी कुछ बातचीत हुई। दोनों एफआईआर कराने के लिए तैयार थीं। अब पुलिस वाले ने कहा, ‘आपको और आरोपी को अगले स्टेशन पर उतरना होगा… तभी इसके आगे की कार्रवाई होगी…’ अब लड़कियां सोच में पड़ गईं। पुलिस वालों ने आरोपी को भी माफी मांगने को कहा। “यदि आपको ऐसा लगता है, तो सॉरी…” रिपोर्ट दर्ज कराए जाने की नौबत आती देख वह माफी के लिए तैयार हुआ… उसके माफी के वाक्य में भी एक शर्त थी। लगता है, तो सॉरी, नहीं लगता है, तो कोई बात नहीं। जो किया, उसे भूल जाइए। लेकिन इसके बाद आधी रात को एक अंजान स्टेशन पर उतरकर अपने साथ हुई छेड़छाड़ की रिपोर्ट दर्ज कराने का फैसला लड़कियों को अंतत: बदलना पड़ा।
दिमाग में यह गुत्थी उलझी थी। एक ओर से सवाल आ रहे थे, दूसरी ओर से जवाब। मैं अपने कलीग से हल्की आवाज में यह समझने की कोशिश कर रहा था। आखिर रात को दो बजे एक लड़की ऐसा व्यवहार क्यों करेगी? वह ऐसे मामलों पर आखिर क्यों दूसरे लोगों की नजर में आना चाहेगी। वह कोई फिल्म या नाटक की नायिका भी नहीं है, जिसे पब्लिसिटी चाहिए। वह एक आम यात्री है। उसका वास्ता उस व्यक्ति से कुछ घंटे पहले का ही है, जैसे मेरा। केवल सहयात्री होने का नाता, इसलिए कोई साजिश, कोई दूसरा मंतव्य भी हुआ तो क्या होगा। हो ही नहीं सकता। न उसे ऐसे मामलों में फंसाकर तथाकथित रूप से कोई आर्थिक लाभ होने वाला है। आरोपी अपने बेटे को सामने क्यों नहीं पेश कर सका…?
मेरे दिमाग में गूंज रहे यह सवाल उन पुलिस वालों के दिमाग में आए होंगे या नहीं…? क्या ऐसे गुनाह में सीट भर बदल देना पर्याप्त उपाय है। वैसे, एक लंबी प्रक्रिया और कई पचड़ों से बचने का यह भी एक तरीका है, ताकि एक और अपराध दर्ज होने से बच जाए। या फिर दूसरी बोगी में ले जाने के बाद कुछ और ‘फायदा’…? यह तो पुलिस वाले ही बेहतर समझ सकते हैं, लेकिन एक महिला यात्री की मुश्किल यह है कि ऐसी परिस्थिति के बाद अपना सफर बीच में रोककर वह एक व्यक्ति को कैसे कठघरे में खड़ा करे…? अक्सर महिलाएं ऐसी परिस्थिति के बाद अपनी आवाज ही मुश्किल से उठा पाती हैं, और यदि उठी हुई आवाजों को इस तरह बिना किसी मुकाम तक पहुंचाए बीच में ही दबा दिया जाए, तो फिर कौन आगे आएगा?
मैं किसी नतीजे पर पहुंच पाने की स्थिति में बिल्कुल नहीं हूं। वह लड़की ही जानती है कि चलती रेल में उसके साथ क्या हुआ, या वह आदमी जानता है कि उसने लड़की को छुआ, या नहीं छुआ, या गलती से छुआ, लेकिन प्रभु की रेल में महिलाओं की आवाज को बीच में गायब होते ज़रूर देखा।
राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के फेलो । पिछले एक दशक से पत्रकारिता और एनजीओ सेक्टर में सक्रिय। आप उनसे 9977958934 पर संपर्क कर सकते हैं।
मैंने बारह साल ट्रेन में डेली पैसेंजर के रूप में सफर किया है । सुबह चार बजे ट्रेन पकड़नी और शाम को भी चार बजे । लगभग ढाई घण्टे का सफर । मुझे इस प्रकार के अनुभव हुए है । लड़की सही कह रही है । कुछ विकृत मानसिकता के लोग महिलाओं (विशेषकर लड़की) की चुप्पी का नाजायज लाभ उठाते है । किन्तु FIR दर्ज़ कराने के लिए ट्रेन छोड़नी पड़ती है । इस व्यवस्था में सुधार होना चाहिए ।
Malviya ji do sal pahle mere sath bhi kuchh ghatna hui thi .pr mene apne sahyatriyon ke sahyog se apna FIR train me hi likhvaya . Ye bahut hi galat tarika hai .koi ladki kiski surksha ke bhadose kisi bhi station pr utar sakti hai ? Ek bar me Dilli se madhubani Garib rath se ja rhi thi .us train me RPF nhi mila hai fir bhi us train me ek farzi police vala maujud tha ..us tathakathit police ke sath sath do aur log the .darasal ye chor uchakkon ki team thi ..jaise hi rat ke 1 baje .police vale ke pichhe pichhe vo ac boggy me ghus gye .kanpur ke aas pas usne mere gale ki chain khichne ki koshish ki .etane me mere pati ki nazar us pr pd gyi jb mere pati ne usko pakda to police vale ne unko baton me uljha kr badmason ko bhaga diya ..fir mujhe police pr shak huaa aur mene uska color pakad liya tb tk stn aa gya tha aur vo mera hath chhuda kr bhag gya .ab hamne jb kanpur station pr FIR likhane ki koshish ki to hame ye kah kr tal diya gya ki aap mugalsarai me FIR likha sakte hain ..fir jb hm mugalsarai pahuche vhan mujhe bhi yhi bat kahi gyi ki train se utarna padega ..pr hamne kaha aap ko FIR yahin likhni padegi ,varna ham train chalne nhi denge …vhan ganimat ye thi ki boggy ke sare log hamara sath de rhe the ,aur is sb vakye ke darmyan mene sara kuchh record kr liya tha .eske bad jb unhe pata chala ki me media me hu to un logon ne mera FIR train me hi likh liya aur us pr jaldi hi action bhi liya gya .yhan bhi yadi sahyatriyon ka sath hota to sthiti anzam tak pahuch sakti thi pr ham sbme se koi dusron ke mamle me bat to kr sakte hain pr sath dene se katrate hain . Ydi mujhe bhi sahyatriyon ka sath nhi mila hota to shayd ye sb sambhav nhi tha .ye khabar news paper me bhi chhpi thi .
Malviy ji aapne ladkiyon ke aansun dekhkar kuch jyaada hi jaldi nirnay le liya aesa lagta hai. Report bhale darj n hui ho par aapne to us aadmi ko phale se hi mujrim karar de diya hai. Mahilaaon dwara famous hone ke liye aese seen create kanaa delhi NCR mein to aam baat ho gai.
Kyunki yeh mamlaa delhi NCR kaa nahin hai shayad isliye hi aap jaldi bah gaye in aansuon mein.
Vaise mera bhi ek sawaal hai aapse.
Kyaaa vo ladki bhi upar ki birth par us aadami ke saath baithi theee
Yaaa fir vo aadmi neeche baithi ladki ko upar ki birth se bandar ki tarah neche latak latak kar cher raha thaaa aur fir vapas apni birt par jump karke jaaa raha thaaaa
Sirf ek CCTV hi mamlaaa spasht.kar sakta hai aur vo vahan nahin thaaa. Isliye bhavnaaaon mein mat baho janaab. Aapne bhi vahi dekhaaa jo un donon ne sabko dikhaaana chaha. Parde ke peeche kaa sach kuch aur bhi ho saktaaa hai.