बुंदेलखंड के लिए एक उम्मीद है दशरथ का कुआं

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आशीष सागर

-हमारे देश में सूखा सियासत नहीं करता बल्कि सूखे पर सियासत जरूर होती है । शायद यही वजह है कि सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड तक मोदी सरकार के ‘प्रभू’ की रेल अभी तक नहीं पहुंच सकी । ख़बर है कि 6 मई तक रेलनीर ‘छुकछुक’ जरिए बुंदेलखंड की धरती तक पहुंचेगा । खैस ये पानी जब पहुंचेगा तब पहुंचेगा लेकिन उससे पहले बुंदेलखंड की सूखी धरती पर ‘उम्मीद की बूंदे’ दिखने लगी हैं और ये सब हुआ है पहाड़ सा हौसला रखने वाले दशरथ अहिरवार की बदौलत ।

बुंदेलखंड सूखा- आशीष की आंखों देखी पार्ट- 1013139268_1401888656503356_5710247421266594981_n

बुंदेलखंड में जहाँ शहर से पंद्रह किलोमीटर वाले लगभग हर गाँव में जल संकट है ।  ग्रामीण आबादी वाले इलाके में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है, किसान बेहाल हैं आलम ये कि कुछ लोग खुदकुशी को मजबूर हैं । वही कुछ ऐसे भी किसान भी हैं जिन्होंने सूखे के आगे हार नहीं मानी । सरकारी अव्यवस्था और लूट के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि पहाड़ सा हौसला रखा और पहाड़ खोदकर पानी निकाल लिया । इसके लिए ना तो कोई सरकारी मदद ली और ना ही ‘तालाब के ठेकेदारों’ ने कोई मदद की, बल्कि अपने जीवन की गाढ़ी कमाई खपाकर कुएं से पानी निकालने में कामयाबी हासिल की । हम बात कर रहे हैं अजयगढ़ (मंझपटिया), पन्ना के दशरथ की । दशरथ अहिरवार ने अपनी 15 हजार की पूंजी लगाकर अपनी पत्नी सुनीता के साथ यह कुआं खोदा । नीचे पत्थर निकला तो उसको तोड़कर उम्मीद से निकाला गया । दशरथ पत्थर निकालते तो लोग उनपर हंसते लेकिन दशरथ ने हार नहीं मानी । कहते हैं भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करे । किस्मत गरीब दशरथ का साथ दे गई और सूखे के बीच पानी मिल गया । दशरथ के कुएं में तीस फिट पर पानी निकल आया है । इससे उसका आधे घंटे बोर चलता है जो खेत में पानी ले जा रहा है अहिरवार का कुआं अभी चारो तरफ से कच्चा है उसको आशा है कि जल्द ही इसे पक्का करने के बाद वो आने वाली बारिश तक बड़ी जलराशि एकत्र कर लेगा । दशरथ की प्यारी बिटिया ऊषा से बात करने पर पता चला कि दीप, केतकी और मातादीन, भगवानदीन उसके दो छोटे भाई भी है । जिसके लिए ये कुआं अंधेरे में किसी रोशनी से कम नहीं ।

3a2b404b-bad1-4a2e-a94b-29facba4de97वैसे तो दशरथ के गांव में 9 कुंए और कई हैंडपंप है, लेकिन सब ‘बेपानी’ है । कुछ हैण्ड पम्प रिबोर से पानी दे रहे हैं लेकिन दो बाल्टी निकालने के बाद आराम तलबी हो गए हैं, क्या करें उनकी देह से इस गाँव के बासिंदों ने हाड़-मांस और आतें निकाल ली है अत्यधिक जल दोहन से ठीक वैसे ही जैसा मानवीय स्वभाव से दूसरी जगह हुआ है । लिहाजा बुंदेलखंड के लोगों को दशरथ से सीख लेने की जरूरत है ।  क्योंकि इस भयावह सूखे में वो ही गाँव त्रस्त है जिन्होने अपने पारंपरिक तालाब,कुंए,पोखर कब्जाकर हैंडपंप और नलकूप को जुगाड़ का साधन मानकर जीवन जीना सीख लिया या वे दुखी है जो सरकारी मदद का मुंह ताक रहे है । कहते है अपने हुनर और सब्र से आदमी सब कुछ कर सकता है अगर यह न होता तो इसी देश में ‘ झारखण्ड का सिमोन, बुंदेलखंड का भैयाराम यादव और दशरथ पैदा न होते ।


बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर एकला चलो रेके नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।