देवेंद्र शुक्ला
दिल्ली के बाद विधानसभा चुनावों का अगला पड़ाव बिहार। और सवाल ये कि बिहार में बयार किसकी या अच्छे दिन किसके? यूं तो “अच्छे दिन आएंगे” हालिया भारतीय राजनीति का बड़ा जाना पहचाना सा जुमला बन चुका है। राजनीति ही क्या, इस जुमले का इस्तेमाल सब्जियों से ले कर सोने के दाम उछलने या गिरने के हालिया घटना-क्रम में बड़ी कुशलता से आम या खास जनता ने बखूबी किया। लोकसभा चुनावों के साथ ही शुरू हुए कमल दल के अखिल भारतीय ‘अच्छे दिन’ चुनावी बयार में महाराष्ट्र और हरियाणा से होते हुए झारखण्ड से कश्मीर तक ताबड़तोड़ जारी रहे। भाजपा इन चारों ही राज्यों में सरकार बनाने या सरकार में साझीदार बनने में कामयाब रही। जहाँ एक ओर महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड में भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनवाने में कामयाब रही, वही स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण भाजपा ने कश्मीर में चुनाव परिणामों के लगभग 2 माह बाद पीडीपी के साथ साझा सरकार बनाई।
अथ बिहार चुनाव कथा-एक
जून-2014 में लोकसभा चुनावों के परिणाम और दिसंबर-2014 के झारखंड-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के परिणामों के मध्य करीब 6 माह का समय बीता। फिर हुए फ़रवरी 2015 में दिल्ली विधान सभा चुनाव, जो लोकसभा चुनावों के बाद हुए 4 अन्य विधानसभा चुनावों के परिणाम के लिहाज से विशेष थे। भाजपा ने 1980 के बाद किसी भी राज्य में बतौर प्रमुख दल इस तरह की करारी पराजय नही झेली थी। 6 महीने के भीतर ही बदली चुनावी-बयार में भाजपा के ‘अच्छे दिन’ पर ‘आप’ ने झाड़ू लगा दी। अब दिल्ली में ‘अच्छे दिन’ सिर्फ ‘आप’ के थे।
दिल्ली में अचानक बदले चुनावी समीकरण ने भाजपा और उसके मातृ संगठन संघ को आत्ममंथन पर मजबूर किया। वहीं विश्लेषकों का चुनावी रणनीतिकार के रूप में नरेंद्र मोदी के अपराजेय रहने का भ्रम भी टूट गया। सामान्य संघ प्रचारक से शुरुआत करके अक्टूबर 2001 में अचानक गुजरात के मुख्यमंत्री बनाये गए नरेंद्र मोदी ने पहला आधिकारिक चुनाव फ़रवरी 2002 में राजकोट-2 विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में लड़ा और जीता। उसके बाद बतौर मुख्यमंत्री 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा को लगातार 2 जीत दिलाई। इसके अतिरिक्त 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा के चुनावों में गुजरात की कुल 26 सीटों पर भाजपा ने क्रमश: 14, 15 और 26 सीटें जीतीं। और तो और गुजरात नगर निगमों और दूसरे अन्य चुनावों में भी भाजपा को मोदी के कार्यकाल में बेहतरीन जीत मिली। मोदी की इन लगातार जीतों ने उन्हें भाजपा के चुनाव रणनीतिकारों में सबसे आगे ला खड़ा किया और इसी कारण मोदी 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार संघ की पहली पसंद बने।
मोदी की इस कहानी में ही बिहार की हालिया चुनावी बिसात का राजनीतिक इतिहास-भूगोल भी छुपा है। भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर संघ की पसंद बने मोदी के नाम पर मुहर लगते ही बिहार में भाजपा के साथ मिल कर बनी सरकार के बड़े दल जनता दल (यू) ने भाजपा के साथ अपना 17 वर्षों पुराना गठबंधन तोड़ लिया। बिहार में लोकसभा चुनाव 2004 और 2009 में साथी रहे और 2014 में आमने सामने खड़े थे। इस मुकाबले में भाजपा ने अपने 2 अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर जद (यू) को लगभग तहस नहस करते हुए स्कोर 31/02 कर दिया। जद (यू) को मिली इस करारी शिकस्त की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पद से मई 2014 में इस्तीफ़ा दे दिया।
( इसके बाद की डगर नीतीश के लिए किन मुश्किलातों से भरी रही, ये किसी से छिपा नहीं। बिहार के चुनावी समर पर हमारी ये सीरीज जारी रहेगी। इस विमर्श में आप भी साझीदार बनिए।)
देवेंद्र शुक्ला। फिलहाल दूरदर्शन में रिसर्च हेड हैं। चुनाव विश्लेषण का दस साल से ज़्यादा का अनुभव। आप 2005 में C-VOTER के साथ जुड़े और रिसर्च को-ऑर्डिनेटर के तौर पर आधे से ज़्यादा हिंदुस्तान के चुनाव विश्लेषण में शामिल रहे।