अक्सर देखा जाता है सरकारी नौकरी मिलने के बाद बहुत से लोग उसी में सिमट जाते हैं और आगे बढ़ने के लिए संघर्ष पर विराम लगा देते हैं । पूरी जिंदगी को एक ही नौकरी में खपा देते हैं । लेकिन वहीं कुछ लोग हैं जो और पाने की चाहत कभी नहीं छोड़ते । 22 फरवरी 2016 को ऐसे ही एक नौजवान से बात हुई जो उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित अवर अधिनस्थ सेवा परिक्षा 2013 में चयनित हुए हैं । गोरखपुर जिले के बड़हलगंज थाना क्षेत्र के मकरंदपुर गांव के निवासी हरिवंश सिंह के सबसे छोटे पुत्र धीरेंद्र कुमार सिंह का चयन उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित अवर अधिनस्थ सेवा परिक्षा 2013 में मार्केटिंग इंस्पेक्टर के पद पर हुआ है। धीरेंद्र सिंह ग्रामीण पृष्ठभूमि के मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखते हैं। बातचीत के दौरान धीरेंद्र सिंह ने बताया कि “अभी मेरा संघर्ष खत्म नहीं हुआ है, IAS बनना चाहता हूं और उसके लिए संघर्ष जारी है ।”
धीरेंद्र सिंह भी उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने सफलता के लिए कड़ी मेहनत की ।
“मैंने राजकीय जुबली इन्टर कॉलेज, गोरखपुर से 2001 में हाई स्कूल, 2003 में 12वीं, दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर से 2006 में स्नातक, 2008 में हिन्दी विषय में परास्नातक किया और 2012 में नेट क्वालिफाई करने के बाद हिन्दी साहित्य में “समकालीन हिन्दी दोहा साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन” विषय में दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर से पीएचडी कर रहा हूं।“
शुरू में धीरेंद्र गोरखपुर में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की लेकिन उनके मुताबिक गोरखपुर में उतनी सुविधाएं नहीं है जिसके दम पर बड़ी प्रतियोगिताओं में फसलता पाई जा सके । इसलिए उन्होंने गोरखपुर से दिल्ली का रुख किया ।
“मैं प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी करने 2010 में ही दिल्ली चला आया । दिल्ली के प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के गढ़ कहे जाने वाले मुखर्जी नगर में रहकर अध्य्यन करने लगा । मुखर्जी नगर में मुझे वो माहौल मिला जिसकी मुझे तलाश थी । यहां देश के कोने-कोने से आए लड़के सिविल सर्विसेज परीक्षाओं की तैयारी करते हैं । मैं भी कड़ी मेहनत करने लगा और अब मुझे एक सफलता मिली है ।“
धीरेंद्र सिंह संपन्न परिवार से आते हैं । पिता हरिवंश सिंह, जो पूर्व में डीसीएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर रह चुके हैं, वर्तमान में गोरखपुर भारतीय शिक्षा परिषद के प्रबंधक, एवं हिन्दू धर्म कल्याण समिति, धर्मशाला बाजार के महामंत्री हैं, साथ ही गोरखपुर में समाज सेवा के कार्य से जुड़े हुएं हैं। धीरेंद्र सिंह के दो चाचा गजेंद्र सिंह और स्व. साहब सिंह पूर्व प्रधान रह चुके हैं। सबसे छोटे चाचा जीतेंद्र सिंह किसान हैं और सामाजिक कार्यों में बड़े भाई के साथ सक्रिय भूमिका निभाते हैं। धीरेंद्र के सबसे बड़े भाई डॉ. धर्मेंद्र सिंह सरदार पटेल इंटर कॉलेज, गोरखपुर में प्रवक्ता हैं और दूसरे भाई भूपेंद्र सिंह जे. आर. कॉन्वेंट स्कूल, दोन दरौली बिहार के प्रिंसिपल हैं। धीरेंद्र के बड़े भाई उपेंद्र सिंह भारतीय सेना में रहकर देश सेवा कर रहे हैं। बड़े भाई सतेंद्र सिंह अपनी संस्था चलाते हैं तथा दूसरे भाई सुरेंद्र सिंह गांव में रहकर पशु चिकित्सा केंद्र चलाते हैं। बड़े भाई यादवेंद्र सिंह हैं जो इलाहाबाद में रहकर प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी तकते हुए अपना कोचिंग संस्थान चलाते हैं। प्रतियोगी परीक्षायों के दौरान परिवारिक सहयोग के बारे में धीरेंद्र सिंह कहते हैं –
“पिता श्री हरिवंश सिंह जी ने अपने पूरे परिवार की शिक्षा पर हमेशा ध्यान दिया। परिवार में शिक्षा और सभी को सम्मान देने पर अधिक जोर दिया जाता है। मेरी सफलता का श्रेय माता-पिता व गुरुजनों को जाता है। बड़े भाई डॉ. धर्मेंद्र व भूपेंद्र सिंह व परिवार एंव मित्रगणों ने भी काफी मदद की तभी मैं सफल हो सका।“
बातचीत के दौरान धीरेंद्र सिंह ने ग्रामीण नौजवानों को लेकर चिंता जताई। गोरखपुर में प्रतियोगी परीक्षा के दौरान जिन चिजों के लिए उन्हें जूझना पड़ा उसका भी जिक्र किया । उन्होंने कहा कि-
“गांव में रहने वाले लड़के मेहनती होते हैं। लेकिन संसधानों के अभाव में सिविल सर्विसेज जैसी प्रतियोगिताओं में वे सफलता पाने से चूक जाते हैं। एक तो गांवों में या गोरखपुर जैसे शहरों में बिजली समस्या बनी रहती है। दूसरी ओर अच्छी किताबों का मिलना मुश्किल होता है। ठीक से मार्गदर्शन नहीं मिलने की वजह से गांव के नौजवान भटकते रहते हैं और अपनी एनर्जी कई दिशा में लगा देते हैं जिससे वो सफलता से वंचित रह जाते हैं। जो दिल्ली, इलाहाबाद जैसे शहरों में है वो गोरखपुर में नहीं है। इसलिए गरीब परिवार के नौजवान आगे बढ़ नहीं पाते, उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वो दिल्ली या इलाहाबाद जाकर तैयारी कर सकें।”
धीरेंद्र सिंह डिजिटल इंडिया अभियान को ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अच्छा मानते हैं । उनका कहना है कि अगर गांव-गांव तक इंटरनेट पहुंच जाए तो ग्रामीण छात्रों को परीक्षाओं की तैयारी में मदद मिलेगी। क्योंकि इंटरनेट पर काफी सामग्री मौजूद है जिसका इस्तेमाल नि:शुल्क किया जा सकता है और सरकारों को चाहिए की गांवों के डिजिटलाइजेशन पर ज्यादा ध्यान दें, हो सके तो सस्ते दर पर ग्रामीण छात्रों को इंटरनेट सुविधा मुहैया कराई जाए । हालांकि गांव का जिक्र करते हुए धीरेंद्र ने कहा कि- “गांव में बदलाव हो रहे हैं । पहले पढ़ने के लिए दूर जाना पड़ता था लेकिन अब गांव में या आस-पास अच्छे स्कूल खुल गए हैं। शिक्षा के तरफ लोगों का झुकाव बढ़ा है। हर कोई इस कोशिश में है कि किसी तरह उनका बेटा पढ़-लिख ले। आवागमन के साधन भी बढ़े हैं। खेती-किसानी भी अब परंपरागत तरीके से नहीं हो रही है। आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल होने लगा है। लोग पहले से ज्यादा जागरुक भी हैं। सिर्फ जरूरत इस बात की है कि सरकार बिजली की व्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था को और मजबूत करे ताकि गांव के ज्यादा से ज्यादा मेहनती लड़के-लड़कियां बड़ी परीक्षा प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त कर सकें।“
धीरेंद्र की इस सफलता से जहां उनका परिवार खुश है वहीं गांव के लोग भी काफी तारीफ कर रहे हैं । धीरेंद्र उन लड़कों के लिए आदर्श बन गए हैं जो उनके आस-पास प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं या जो करने की तैयारी में है। धीरेंद्र का संघर्ष अभी जारी है। IAS अफसर बनना चाहते हैं। बदलाव टीम की ओर से उन्हें सफलता के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
सत्येंद्र कुमार यादव, एक दशक से पत्रकारिता में । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता से आप लोगों को हैरान करते हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है ।
बहुत बधाई भाई !! तुम्हारी सफल यात्रा का यह सिर्फ शुरूआती पड़ाव है।और बड़ी उपलब्धियां तुम्हारे रास्ते में तेरा इंतज़ार कर रहीं हैं।भविष्य की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ तुम्हारा भाई
—-राघवेश