पुष्यमित्र
जीतेगा भाई जीतेगा लालटेन छाप जीतेगा… हमारा नेता कैसा हो अजै प्रताप जैसा हो… फलां छाप पर मोहर लगा कर विजै बनावें… यह चुनाव आपकी तकदीर बदल देगा… बदलिये बिहार… फिर से नीतीश कुमार… लाउडस्पीकर लगातार चीख रहा था। शाम होने से पहले पार्टी वाले भोंपू गाड़ी को मोहलत देने के लिए तैयार नहीं थे। शाम में तो प्रचार अभियान बंद हो ही जाना था। इसी शोरगुल के बीच हम जमुई के केड़िया गांव पहुंचे। आप केड़िया गांव को जानते हैं… ? क्यों जानें, आखिर क्या है इस गांव में… ? 94 किसान परिवारों की साधारण सी नज़र आने वाली इस बस्ती में ऐसा क्या है कि इसे पूरे बिहार के लोग जानें?
चुनावी ज़मीन पर मुद्दों की पड़ताल-3
अब केड़िया गांव वाले अपने खेत में चाहे जो भी जादू-टोना करें, हमें इससे क्या मतलब। हम तो यह समझने गये थे कि चुनाव में नेताजी लोग तरह-तरह का फार्मूला बता रहे हैं। बिहार के किसानों की तकदीर बदल देंगे, ऐसा कह रहे हैं। इसके बारे में केड़िया के जादूगर किसानों का क्या कहना है?
आनंदी यादव का किस्सा-ए-ग़ुस्सा जारी रहता है- हमलोगों ने पंचायत से मांग की कि हमारे खेतों में 10 फुटिया (10 फुट चौड़ाई वाला) एक-एक कुआं दे दीजिये, उसी से हमारा काम हो जायेगा। मगर वह भी नहीं मिला। अब सरकार ने डीजल पर सब्सिडी देना शुरू कर दिया, उसमें घूसखोरी अलग है। इसके अलावा हमलोग मानते हैं कि बोरिंग की सिंचाई से फायदा कम नुकसान ज्यादा है। गांव का वाटर लेयर तुरंत डाउन हो जायेगा। हम समझ गये कि सरकार से कुछ नहीं होगा। सारे किसान एकजुट हुए। गांव से एक कोस दूर एक कैनाल था, वहां से पइन खोदकर गांव तक ले आये। अब हर खेत तक पानी पहुंच रहा है। साल में चार बार पूरा गांव पईन को साफ करता है, तब जाकर खेत में हरियाली आती है।
कहानी केड़िया गांव की
जमुई के बरहट ब्लॉक के पाड़ो पंचायत के केड़िया गांव के सभी किसान परिवारों ने पिछली साल जैविक कृषि को अपनाया है। गांव में फिलहाल 32 किसानों के पास जैविक खाद तैयार करने के बेड हैं और 40 किसान इसे बनाने वाले हैं। गांव की समृद्धि के पीछे किसानों के पास पशुधन की उपलब्धता का बड़ा हाथ है। यहां तकरीबन हर किसान के पास 15-20 पालतू पशु तो हैं ही। कई किसानों के पास यह संख्या 70-75 तक पहुंच गयी है। उन्होंने जैविक खाद के साथ-साथ बायोगैस प्लांट भी स्थापित कराये हैं, जिनसे उनके घरों का गैस चूल्हा जलता है। उनका लक्ष्य 2020 तक गांव को रासायनिक खाद से मुक्त कर देना है। किसान स्वाबलंबी हैं। अपने खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए उन्होंने खुद 4-5 किमी लंबी पईन खोदी है। 4-5 किमी लंबा रास्ता तैयार किया है। आज आसपास के गावों के लिए यहां की उन्नत खेती मिसाल बनती जा रही है। गांव के सभी किसानों ने मिल कर एक संगठन भी बनाया है, जीवित माटी किसान समिति। ग्रीन पीस संस्था ने पिछले साल से यहां काम की शुरुआत की है। संस्था की ओर से इश्तेयाक अहमद किसानों को जैविक खेती के गुर सिखाते हैं और उनकी खेती को बेहतर बनाने में हर तरह से उनकी मदद करते हैं।
आनंदी यादव से बरदास्त नहीं होता है, कहने लगते हैं, घोषणा पत्र तो हम भी पढ़ रहे हैं, अब जैसे कह रहे हैं पैक्स को कंप्यूटराइज करेंगे। अरे कंप्यूटराइज बाद में कीजियेगा, पहले पैक्स और गल्ला व्यापारी का जो तालमेल है उसको तो तोड़िये। पिछले साल धान का सरकारी रेट 1,660 रुपये तय हुआ, मगर हमारे पंचायत का पैक्स वाला पहले धान खरीदने के लिए तैयार ही नहीं हुआ। लाचारी में किसानों को धान व्यापारियों को लागत की लागत में 1,050-1100 रुपये दर से बेचना पड़ा। बाद में पता चला कि गल्ला व्यापारी सब वही धान पैक्स को बेच दिया और मार्जिन आधा-आधा बांट लिया। सहदेव यादव बोले, हम तो किसी तरह अपना धान पड़ोस के पंचायत के पैक्स में बेच दिये, मगर उसका क्या लाभ। पेमेंट आज तक नहीं हुआ।
(पुष्यमित्र की ये रिपोर्ट साभार- प्रभात खबर से)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
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