प्रतिभा ज्योति
पटना के मनेर ब्लॉक के छितनावा गांव की चंचल पासवान पर 21 अक्तूबर 2012 को एसिड से हमला हुआ था। गरीब मजदूर पिता की इस बेटी पर हमले से मानो पूरे परिवार पर वज्रपात हो गया था। चंचल के साथ-साथ उसकी बहन भी इस हमले का शिकार हुई थी। परिवार दोहरे सदमे में था। जैसे-तैसे गरीब पिता बेटियों का इलाज कराते रहे। 2013 में सुप्रीम कोर्ट का एक निर्देश आया कि एसिड हमले का शिकार होने वाले हर पीड़ित को तीन लाख रुपए का अंतरिम मुआवजा दिया जाए। इस निर्देश के बाद चंचल के पिता ने मुआवजा पाने के लिए काफी भागदौड़ की। काफी मुश्किलों के बाद दोनों बहनों को अगस्त 2015 में तीन-तीन लाख रुपए का मुआवजा मिला।
यह कहानी है ऐसी लड़कियों की है, जिनकी जिंदगी बेहद दर्दनाक और बोझिल तब हो जाती है जब कोई सिरफिरा या मनचला अपने अहं की खातिर उन पर एसिड फेंक कर भाग जाता है। ऐसी घटना के बाद ज्यादातर मामलों में जिन्हें दूसरों के लिए मौत की सजा मांगनी चाहिए, वह कई बार हताशा और निराशा में अपने लिए मौत की दुआ मांगने लगती हैं। वो अस्पताल और कोर्ट के चक्कर लगा-लगा कर थक जाती हैं लेकिन न तो अस्पताल पीछा छोड़ते हैं और न कोर्ट की तारीख। एसिड पीड़ित लड़कियों पर काम करने के दौरान मैं जितनी भी लड़कियों से मिल रही हूं उनमें ज्यादातर यही मानती हैं कि वह अपनी जिंदगी को एक जिंदा लाश की तरह ढ़ो रही हैं। किसी सिरफिरे ने उन्हें सबक सिखाने के लिए एसिड को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इस हथियार से मिली पीड़ा और दर्द से उन्हें हर रोज गुजरना पड़ रहा है।
एसिड हमला करने वालों के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 326 ए के तहत 10 साल या अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान है लेकिन दोषियों का छूट जाना, एसिड की बिक्री रोकने को लेकर कोई सख्त नियम नहीं होना, पीड़ितों के इलाज के लिए सरकार और अस्पतालों का असंवेदनशील रवैया, पीड़ितों के मानसिक और आर्थिक पुनर्वास जैसी समस्याएं ऐसी है जो एसिड हमले का शिकार हुए पीड़ितों के लिए रोज एक नई मुश्किल लेकर आती है।
सुप्रीम कोर्ट की सीनियर वकील कमलेश जैन कहती हैं कि घटना के बाद किसी भी पीड़ित को जिस बात की सबसे ज्यादा जरुरत होती है वह है किसी अच्छे अस्पताल में इलाज और हमलावर को गिरफ्तार किए जाने की। एसिड विक्टिम का इलाज का काफी खर्चीला और लंबा होता है। ऐसी पीड़िताओं की सहायता के लिए ही सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि घटना के तुरंत बाद उन्हें तत्काल तीन लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए। लेकिन दुर्भाग्य से पीड़ितों को यह मुआवजा हासिल करने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चक्कर काटने पड़ते हैं। काफी जद्दोजहद के बाद तीन लाख में से 75 हजार रुपए नगद दिए जाते हैं और बाकी रकम का एफडी कराया जाता है।
कमलेश जैन के मुताबिक एक तो ऐसे ही खर्चीले इलाज के लिए यह रकम ऊंट के मुंह में जीरे के समान है लेकिन फिर भी पीड़ित को कुछ राहत तो मिल ही जाती है। पर यह रकम पाना भी इतना मुश्किल है कि इसमें लंबा वक्त लग जाता है। वह बताती हैं कि कानून यह भी कहता है कि हमलावर गिरफ्तार हो या नहीं, एफआईआर दर्ज हुई हो या नहीं लेकिन यदि एसिड पीड़ित सामने हो तो मुआवजा देना ही पड़ेगा लेकिन प्राधिकरण इसमें कोताही करता है। एसिड हमले का शिकार हुई दिल्ली की नसरीन और अनु को तीन लाख रुपए का मुआवजा दिलाने में मदद कर चुकी कमलेश जैन कहती हैं कि अनु के मामले में उन्होंने सारी जरुरी कागजी कारवाई खुद की इसलिए उसे केवल 15-20 दिनों में मुआवजे की रकम मिल गई लेकिन बाकी लड़कियों के मामले में प्राधिकरण यह तत्परता नहीं दिखाता। इसकी एक वजह यह भी है कि प्राधिकरण पीड़ितों को कागजी कारवाई में उलझा कर रखता है। वह अभी भी दो-तीन लड़कियों को मुआवजा दिलाने की कोशिश में जुटी हैं। वह कहती हैं कि काश समाज, अस्पताल, पुलिस, कोर्ट सब संवेदनशील हो जाएं तो ऐसे अपराधों पर अंकुश भी लग जाए और किसी लड़की को एसिड की दर्द और पीड़ा से न गुजरना पड़े।
प्रतिभा ज्योति। पिछले डेढ़ दशक से प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में सक्रिय। इन दिनों एसिड अटैक सर्वाइवर्स पर पुस्तक लेखन में मशगूल।
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Anil Kumar-Acid attackers should’t be differentiated from a murderer. Just charge 302 & hang!
Dhirendra Pundir- Good report
Pata nahi kya ho gaya hai logo ko..