ज़िंदगी इतने बड़े इम्तिहान क्यों लेती है ?

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कीर्ति दीक्षित

कई दिनों से फेसबुक पर उसकी पीहू और उसे देख रही हूं। एक बार नहीं दर्जनों बार। अखबारों में इंटरव्यू पढ़ी। टीवी पर उसकी बातें सुनी। फेसबुक पर पोस्ट उसकी फोटों में खुशियां देखी। सोच रही हूं कितनी हिम्मत होगी उसमें? अपने अंदर कैसे जीती होगी और बाहर कैसे? उसकी जिंदगी का सफ़र पन्नों पर उकेरने बैठी तो पन्नों का रास्ता भी दरदरा सा हो चला है। इस सफ़र की पीर की तपिश इतनी है कि स्याही भी पिघलने सी लगी है। लेकिन शायद दरदरे रास्तों पर चलकर ही ज़िंदगी में रक्त का संचार होता है। मेरी इस सोच को आकार दिया लक्ष्मी ने, जिसने तेजाब की झुलसन के बावजूद पूरी दुनिया के सामने खुद को एक साहस की प्रतिमूर्ति की तरह स्थापित किया।

vinod kapdiलक्ष्मी किसी चट्टान से कम नहीं है। उसके भीतर एक बहुत सुंदर आत्मा बसती है। जो उसे और खूबसूरत बनाती है। उसकी इसी खूबसूरती से प्रभावित होकर मैंने उसे एंकर बनाया। मुझे लगा कि ये बच्ची नकली नहीं है। ये बच्ची जो सोचती है वही कहती है- विनोद कापड़ी, वरिष्ठ मीडियाकर्मी और फिल्म निर्देशक

कहते हैं न अपने दर्द की पीर नहीं होती लेकिन अपनों की वेदना इंसान को झकझोर कर रख देती है। लक्ष्मी के आत्मबल केlaxmi saa6 साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। उसके साहस की कड़ियाँ तब कमजोर पड़ने लगीं जब लक्ष्मी के भीतर एक और जिंदगी साँस लेने लगी। उसके चेहरे की झुलसन का दर्द अब उसकी कोख से जुड़ चला था। वो अक्सर सोच कर सिहर उठती कि कहीं उसका अपना अंश उसके चहरे को देखकर डर तो नहीं जायेगा? अक्सर रातों में चौंक कर उठ बैठती, आलोक का हाथ जोर से भींचकर कहती, कहीं हमारी संतान मेरा चेहरा देखकर डर तो नहीं जाएगी? उसके हाथों की सख्त भींचन से आलोक उसके भीतर का दर्द बखूबी महसूस कर सकते थे, लेकिन दर्द तो दर्द होता है उसका कोई साथी नहीं होता। और माँ के लिए तो संतान से बड़ा सुख और दुःख कोई नहीं। संतान के सुख में माँ ही प्रथम सुखी और संतान के दुःख में माँ ही प्रथम दुखी होती है।

32 साल की लक्ष्मी को गुजरे सोलह सालों की तकलीफ भी इतना न झिंझोड़ पाई थी जितना डर और वेदना उसने इन नौ laxmi saa4महीनों में सहा था । कभी न हारने वाली लक्ष्मी हर वक्त इस डर में जीती रही कि तेजाब की उस जलन की तपिश कहीं माँ बच्चे के रिश्ते के लिए ग्रहण न बन जाये। क्यूंकि उसकी संतान भी तो इसी समाज का हिस्सा होगी जिसके किसी हिस्से ने उसकी लकीरों में ये दर्द लिख दिया। लेकिन इसी समाज ने उसे अपनी प्रेरणा बनाया है, उसके आत्मबल ने उसे साहस और शक्ति की मिसाल बनाया है तो उसकी संतान कैसे उस भय के साथ इस दुनिया में आती। 7 माह पहले लक्ष्मी ने नन्ही लक्ष्मी को जन्म दिया। लक्ष्मी ‘लक्ष्मी’ की माँ बनी और जब वो ‘लक्ष्मी’ उसके चहरे को देखकर मुस्कराई तो माँ लक्ष्मी के साहस को आसरा मिल गया वो भी ऐसा आसरा जो अब कभी किसी डर से रूबरू नहीं होगा। उसकी नई जिंदगी उसे देखकर चहकती है खिलखिलाती है। अपनी इस चहकती जिंदगी का उसने नाम रखा है पीहू ।

पीहू और लक्ष्मी की तस्वीर देखकर उनकी दोस्त अंकिता जैन फेसबुक पर लिखती हैं- अभी अभी तुम्हारी ममता की पहली सूरत देखी। वाकई यकीन नहीं होता कि ये सच है। मैं इसे किस्मत या ऊपर वाले का चमत्कार नहीं कहूंगी। मैं इसे सिर्फ तुम्हारी हिम्मत और जिंदगी जीने का जज्बा कहूंगी। जब पहली बार तुमसे मिली थी तब लगता था कहीं किसी घड़ी में तुम कमजोर ना पड़ जाओ। लेकिन एक मां बनने से बड़ी हिम्मत दुनिया में और किसी चीज में नहीं। एक बार फिर तुम्हें सलाम।

लक्ष्मी दर्द के समंदर में तब धकेली गयी जब वो यौवन की दहलीज पर थी। सपनों की दुनिया गढ़ रही थी। वो सुरसाधक laxmi saaबनना चाहती थी। लक्ष्मी जब 7 वीं में पढ़ रही थी और उसकी उम्र सिर्फ 15 साल थी। एक 32 साल के युवक ने शादी के लिए प्रस्ताव रखा लेकिन लक्ष्मी ने इनकार कर दिया। उसे कहाँ पता था कि वो इंकार उसकी जिंदगी जलाकर रख देगा। 22 अप्रैल 2005 कि सुबह का वो सूरज उसके लिए ऐसी जलन लेकर आया जिसने उसकी जिंदगी की दिशा ही बदल कर रख दी। उस मासूम को तो इस गहरी चाल का इल्म भी न था। उस मनचले ने खान मार्केट में उसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया। वो तेजाब उसके चहरे को ही नहीं उसकी आत्मा को भी झुलसा गया। हम और आप तो उस वेदना की डोर के सिरे को भी नहीं जान सकते जो उस सोलह साल की बच्ची ने झेला होगा। लक्ष्‍मी ने बताया कि गवान का शुक्र रहा कि मैंने उसके हमले को भांपते हुए अपनी आँखों को तुरन्त हाथ से ढक दिया था जिसके कारण मेरी आंखें बच गई और आज मैं आप लोगों को देख और समझ पा रही हूं। हालाँकि दर्द की टीस आज भी आंसू बनकर छलक पड़ती है। लेकिन उस वक्त लक्ष्मी हारी नहीं। उसने दुर्गा की तरह उठकर समाज का सामने किया अपने उस झुलसे चहरे को अपना अस्त्र बनाया और आज वो समाज को इस क्रूरता से लड़ने के लिए प्रेरित करती है।

laxmi saa5सामाजिक मंचों पर लक्ष्मी एक प्रेरणा बनकर उभरी। हालाँकि जख्म भले ही ठीक हो गया लेकिन अंदर का दर्द अब भी है। भले ही लक्ष्मी हंसते हुए गुजरे दिनों को भुलाकर आगे बढ़ने की बात करती हो लेकिन उस हंसी में उसके गहरे दर्द की परछाईं साफ़ दिखाई दे जाती है। लक्ष्मी के इस साहस के साथ खड़े हैं आलोक दीक्षित। लक्ष्मी और आलोक दीक्षित ढाई साल से लिव इन रिलेशनशिप में हैं। लक्ष्मी और आलोक साथ रहकर समाज की झुलसन से पीड़ित-पीड़ितों की मदद करते हैं। लेकिन उनकी ज़िंदगी के कई बड़े इम्तिहान अभी बाकी हैं।


kirti dixit profileकीर्ति दीक्षित। उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के राठ की निवासी। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट रहीं। पांच साल तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों में नौकरी की। वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता। जीवन को कामयाब बनाने से ज़्यादा उसकी सार्थकता की संभावनाएं तलाशने में यकीन रखती हैं कीर्ति। 


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3 thoughts on “ज़िंदगी इतने बड़े इम्तिहान क्यों लेती है ?

  1. लक्षमी की पीड़ा और उसकी अदम्य जिजीविषा की सार्थक अभ्व्यक्ति के लिए साधु वाद

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