– पशुपति शर्मा की रिपोर्ट।
नेक इरादों के साथ छोटी कोशिशों का भी अपना एक असर होता है। कुछ इसी विचार के साथ ‘ढाई आखर‘ फाउंडेशन ने ‘हंड्रेड पर्सेंट काइंडनेस‘ की एक छोटी सी पहल की है। कोर मेंबर्स ने तय किया कि मजबूरों की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा किया जाए। सीमित संसाधनों में जो भी मुमकिन हो सके, ग़रीबों और मजबूरों तक मदद पहुंचाई जाए। ढाई आखर फाउंडेशन की अध्यक्ष रमा सिक्का ने इस कॉन्सेप्ट को सामने रखा, जिस पर संस्था के सदस्यों ने हामी भरने में ज़्यादा देर नहीं लगाई। पिछले एक साल में इस पहल के तहत कुछेक लोगों तक ही मदद पहुंची है, लेकिन उसका सुकून संस्था के लोगों को आगे काम करते रहने की प्रेरणा दे रहा है।
पूर्वी दिल्ली के नंदनगरी में एक छोटे से मंदिर के पुजारी के बेटे विकास की उंगलियां कंप्यूटर पर जब भी जाती हैं, तो मन से ‘हंड्रेड परसेंट काइंडनेस‘ की पहल के लिए दुआएं निकलती हैं। पिछले तीन-चार महीनों से ये कंप्यूटर विकास की रोजी-रोटी का जरिया बन गया है। ढाई आखर ग्रुप के एक सदस्य ने जून महीने में अपना कंप्यूटर विकास को डोनेट किया था। बी कॉम के 19 साल के छात्र विकास के लिए ये जीवन में अब तक का सबसे सुंदर गिफ़्ट है। विकास इस कंप्यूटर के जरिए अपने घर पर ही कुछ बच्चों को कंप्यूटर के बेसिक भी सिखा रहे हैं। इससे वो अपनी पढ़ाई का खर्च तो निकाल ही रहे हैं, साथ ही परिवार की आर्थिक मदद भी कर पा रहे हैं।
ढाई आखर फाउंडेशन के सचिव संदीप शर्मा ने कुछ ऐसा ही किस्सा गुड़गांव की एक झुग्गी झोपड़ी को लेकर बदलाव के साथ शेयर किया। पिछले साल दिसंबर की सर्द रातों में जब ढाई आखर की टीम एक झुग्गी में पहुंची तो वहां का हाल देख परेशान हो उठी। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में लोग गुदड़ियों से अपना तन ढंकने को मजबूर थे। टीम ने कुछ कंबलों का जुगाड़ किया और ‘हंड्रेड परसेंट काइंडनेस‘ की सुकून देने वाली कुछ और तस्वीरें सामने आईं। प्लास्टिक और कपड़ों के टेंट में जिंदगी बसर कर रहे लोगों ने कंबल के साथ ही ‘ढाई आखर‘ की संवेदनाओं की गुनगुनी तपिश भी कई हफ़्तों तक महसूस की।
आप इस ग्रुप से जुड़ कर लोगों की मदद कर सकते हैं। https://www.facebook.com/ 100percentkindness?fref=ts पर विजिट कर सकते हैं। संस्था के प्रयासों को कई लोगों ने सराहा है। मदद को आगे आए हैं। सिलसिला चलता रहे, इसके लिए ज़रूरी है कि आप भी इसका हिस्सा बनें।
गुड़गांव की प्राची। 6 साल की मासूम आज से एक साल पहले अगस्त के महीने में ही खेलते-खेलते छत से गिर पड़ी। उसके सिर में ज़ख़्म आए, हड्डी टूट गई। उड़ीसा से आया ये मजूदर परिवार परेशान हो उठा। इलाज के लिए बहुत ज़्यादा पैसे नहीं थे।
जब इस बच्ची के बारे में ढाई आखर फाउंडेशन को पता चला तो एक बार फिर जद्दोजहद शुरू हो गई। सदस्यों ने कुछ पैसे जोड़े और प्राची के पिता प्रदीप पहुंच गए। अनजान लोगों के मददगार चेहरों ने प्रदीप को नई ताकत दी। बेटी के सिर का ऑपरेशन हुआ और आंगन में हंसती-खेलती बेटी को जब भी प्रदीप देखते हैं तो इंसानियत का एक बेहतरीन सबक उन्हें याद हो आता है।
बच्चों के हाथ में खिलौने आ जाएं तो उनका मन सातवें आसमान पर जा पहुंचता है। और वैसे बच्चे जो सालों खिलौनों को दूर से देखते रहे हों, उनके हाथ में ये आ जाएं तो उनकी खुशी का अनुमान लगा पाना लगभग नामुमकिन सा ही है। हां, ऐसे पलों को आप अपनी आंखों से निहारने के बाद ही महसूस भर कर सकते हैं, बयां नहीं कर सकते। कुछ ऐसी ही तस्वीरें ‘हंड्रेड पर्सेंट काइंडनेस‘ के सदस्यों ने केरल के कन्नूर में अपनी यादों में कैद कीं। यहां एक आंगनबाड़ी के प्लेस्कूल में संस्था ने कुछ खिलौने बच्चों को गिफ्ट में दिए। उसके बाद वहां कहने सुनने को कुछ बाकी न था… बस थे तो बच्चों के खिलखिलाते चेहरे… उनकी खुशियों के रंग… मस्ती और बस मस्ती।
पशुपति शर्मा बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।