गांव नया, ठांव नया… श्रेया का अंदाज नया

नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान श्रेया
नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान श्रेया

प्रियंका यादव

यूपी बोर्ड की परीक्षाओं की तरह इस बार पंचायत चुनाव में भी महिला ब्रिगेड ने इतिहास रचा है। घर के बड़े बुजुर्गों ने पंचायत चुनाव में बेटे-बहुओं की जगह बेटियों को तरजीह दी है। गांव के लोगों ने भी बेटियों को निराश नहीं किया और गांव में बदलाव की बेटी को विजय तिलक लगाकर नई परंपरा की शुरुआत की है। यूपी पंचायत चुनाव पर बदलाव में हम लगातार रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं। इसी कड़ी में आज बात शिवनगरी काशी की रहने वाली 24 साल की श्रेया की। जो पढ़ाई के साथ गांव में बदलाव की बयार बहाना चाहती हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के गांव जयापुर से करीब 20 से 25 किमी दूर एक छोटा सा गांव हैं अनौरा। हरहुआ ब्लॉक में पड़ने वाले इस नए नवैले गांव ने अपने लिए मुखिया के रूप में नारीशक्ति को चुना है। अनौरा गांव हाल ही में करोवां से अलग होकर बनाया गया है। गांव नया है, नया मुखिया है, इसलिए चुनौतियां भी नई-नई मिलेंगी, जिसे पूरा करने की जिम्मेदारी गांव वालों ने श्रेया को सौंपी है। अनौरा गांव पिछड़े वर्ग की महिलाओं की आरक्षित सीट थी। यहां चुनाव लड़ने वाली सभी महिलाएं ही थी लेकिन गांव वालों ने अपने लिए सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी और होनहार बेटी को चुना। श्रेया के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने वाले बाकी उम्मीदवारों में तीन की जमानत जब्त हो गई। अनीता नाम की उम्मीदवार ने श्रेया का कड़ी टक्कर दी। अनीता पांचवीं तक पढ़ी लिखी हैं। गांव वालों ने ग्रेजुएट श्रेया पर ज्यादा भरोसा किया और उन्हें महज 12 वोटों से जीत मिली।

schoolश्रेया की जीत का अंतर बेशक कम हो लेकिन जिम्मेदारियां बहुत बड़ी हैं। श्रेया कहती हैं- हमारा गांव काफी
पिछड़ा है। गांव में न पानी की अच्छी व्यवस्था और ना ही टॉयलेट की। आज भी ज्यादातर लोगों को शौच के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है। मेरी प्राथमिकता हर घर में टॉयलेट बनवाने की है।

श्रेया की मां टीचर हैं लिहाजा श्रेया की पढ़ाई-लिखाई अच्छे से हुई। श्रेया ने हिंदी, गृहविज्ञान और समाज शास्त्र विषय के साथ ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरा की और बाद में एक प्राइवेट हॉस्पिटल से दो साल का ANM का कोर्स किया। सामान्य शब्दों कहें तो चिकित्सा से जुड़े पेशे में कदम रखा। हालांकि उसे अपना करियर बनाने की बजाय श्रेया ने समाज सेवा को तरजीह दी और अब गांव में बदलाव के लिए तैयार हैं। श्रेया बताती है कि उनके गांव में ज्यादातर लड़कियां इंटर के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं, क्योंकि उनकी शादी जल्दी कर दी जाती है। वो समाज के इस सोच को बदलाने की कोशिश कर रही हैं- पहले पूरी करो पढ़ाई, फिर करो ब्याह की चढ़ाई।

anaura gaonअनौरा गांव में मुख्य मार्ग तो थोड़ा ठीक है लेकिन गांव के भीतर जो भी संपर्क मार्ग हैं उनमें ज्यादातर कच्चे हैं। गांव की गलियों में कोई साफ-सफाई नहीं है। दलित बस्तियों में हाल और बुरा है। ना किसी के पास रहने को अच्छा आशियाना है और ना ही मूलभूत सुविधाएं। इसलिए श्रेया के एजेंडे में गरीब और दलित पहले रखे गए हैं। श्रेया की छोटी बहन ग्रेजुएशन कर रही हैं जबकि छोटा भाई इंटरमीडिएट में हैं। श्रेया के पिता बेचनजी जी कहते हैं कि- श्रेया की मां टीचर हैं इसलिए घर के कामकाज का पूरा जिम्मा उनकी बड़ी बेटी पर ही रहता है जिसे वो बखूभी निभाती है, और उम्मीद है कि जिस तरह वो घर के लोगों का ख्याल रखती है उसी तरह पूरे गांव का ख्याल रखेगी।


प्रियंका यादव,  तन दिल्ली में भले हो लेकिन मन तो गांव ही बसता है । जब कभी घूमने का मौका मिलता है तो गांव पहली पसंद होती है।


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