सत्येंद्र कुमार यादव
पिछले दिनों नोएडा में साइनबोर्ड गिरा और एक व्यक्ति की मौत हो गई। उज्जैन में भगदड़ मची और कुछ लोगों की मौत, सड़क हादसे में मौत, बादल फटने से मौत, भूकंप में घर गिरने से मौत। फिर क्या होता है? हम सरकार को कोसते हैं, जहां समाज की गलती है समाज को कोसते हैं। कहीं हल्ला गुल्ला करने पर कुछ पैसे मिल जाते हैं। इससे ज्यादा भारत में कुछ नहीं होता और ना ही करने की कोशिश की जाती है। हो सकता है जानकारी के अभाव में ऐसा होता हो या दिमाग में ऐसी बातें आती ही ना हो। जो मर गया या तो आग में जल गया या जमीन में दफना दिया गया। यहीं तक मृतक व्यक्ति और उसके परिजनों का साथ होता है। क्यों ना हम इस साथ को और आगे बढ़ाएं। मौत के बाद किसी के घऱ में खुशियां लाए। जीते जी पता नहीं अपने घऱ में लोग खुशियां ला पाते हैं या नहीं । लेकिन मौत के बाद आप अपने रिश्ते-नातों में ही नहीं, दूसरे लोगों जो आपको जानते नहीं और ना ही आप उन्हें जानते, के घर मे खुशियां ला सकते हैं। AIIMS के ORBO में तैनात डॉक्टर बलराम ने बताया कि- देश में जीतने लोगों की मौत विभिन्न दुर्घटनाओं में होती है उससे कई गुना ज्यादा लोगों की मौत अंगदान की कमी के चलते दिल, जिगर या किडनी फेल हो जाने से होती है। अगर मृतक व्यक्ति जीते जी अपना शरीर दान (मृत्यु के बाद) कर दें तो उसके बाकी बचे अंगों से कम से कम 5-6 लोगों की जान बचाई जा सकती है।
‘तुम्हारा क्या खो गया जो तुम इतना रोते हो । तुम क्या लाए थे जो तुमने खो दिया । तुमने क्या पैदा किया जो नाश हो गया । जो लिया यहीं से लिया । जो दिया यहीं से दिया । खाली हाथ आए थे, खाली हाथ चले जाओगे।’
गीता का जो सार है उसमें ये लाइनें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इसका मतलब कई तरह से निकाल सकते हैं। मैं इसे अंगदान से जोड़ना चाहूंगा। जिंदा व्यक्ति मोह माया, अपना-पराया के चक्र में फंसा रहता है। लेकिन मौत के बाद उसे पंचतत्व में ही विलिन होना पड़ता है। चाहकर भी धन दौलत तो छोड़िए अपने शरीर का एक हिस्सा भी कोई साथ नहीं ले जा सकता। तो फिर जो तुम्हारा नहीं है, जो तुम अपने साथ नहीं ले जा सकते, जिसका वजूद मौत के बाद खत्म हो जाती है। उसे देकर जाने में, दान करने में क्या हर्ज है। क्यों नहीं मौत के बाद भी किसी में जिंदा रहने की चाहत रखते हैं। क्यों नहीं किसी की जिंदगी को दीर्घायु बनाने में उस अंग को दान कर के जाते हैं जो या तो आग में जलकर राख हो जाएगा या जमीन में गलकर मिट्टी बन जाएगा या पानी में डूबकर पंचत्तव में विलिन हो जाएगा। जिंदा रहते आपकी थोड़ी सी सतर्कता, जागरुकता किसी को जीवनदान दे सकता है। वैसे भी अंगदान को महादान कहा गया है। इस महानपुण्य को पाने में इतनी देरी और ढिलाई क्यों ?
IRODAT ने पिछले साल यानि 2015 में आंकड़े जारी किए थे। बताया गया था कि भारत में डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों को गुर्दे की जरूरत है। डेढ़ लाख जरुरतमंद लोगों में से सिर्फ 5 हजार लोगों को ही गुर्दा मिल पाता है। 50 हजार लोग दिल प्रतिरोपण के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन 10 से 15 खुशनसीब लोगों का ही दिल प्रतिरोपण हो पाता है। इसी तरह हर साल 50 हजार से ज्यादा लोग लिवर प्रतिरोपण के लिए दर दर भटकते हैं इनमें से सिर्फ 700 को ही लिवर मिल पाता है। भारत जनसंख्या के मामले में दुनिया का दूसरा बड़ा देश है । हर साल लाखों लोगों की मौत होती है। जिन्हें या तो जला दिया जाता है या दफन कर दिया दाता है। ये लोग जीवित रहते अंगदान कर देते तो ये समस्या इतनी विकट नहीं होती। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में सबसे कम अंग दान भारत में ही होता है। और ये जागरुकता की कमी और मेडिकल सुविधाओं के अभाव में होता है।
1 व्यक्ति शरीर के करीब 11 अंग दान कर सकता है। दिल, फेफड़े, गुर्दे, आंखें, पैंक्रियाज, हार्ट वॉल्व, त्वचा और बहुत कुछ। दो तरह के अंगदान किेए जाते हैं। एक जीवित व्यक्ति और दूसरा ब्रेन डेड घोषित मरीज की ओर से। जिंदा आदमी अपने लीवर और आंतों के अंश, दो में से एक गुर्दे को दान दे सकता है। ये दान सिर्फ खून के रिश्ते वालों को दिया जा सकता है। लेकिन ब्रेन डेड घोषित व्यक्ति किसी को भी दे सकता है। ये तभी होगा जब ऐसे व्यक्ति पहले से ही घोषित कर दिया हो कि उनकी मृत्यु के बाद उनके अंग दान कर दिए जाएं। इसलिए हर व्यक्ति को जीवित रहते ही अंगदान करने का ऐलान कर देना चाहिए ताकि मृत्यु के बाद किसी व्यक्ति की जिंदगी बचाने में काम आ सके।
आर्गन डोनेशन: समस्या और सिस्टम
अंगदान यानि आर्गन डोनेशन को लेकर अभियान चलाया जा रहा है। पीएम मोदी ने भी मन की बात प्रोग्राम में कई बार जिक्र कर चुके हैं। लेकिन कुछ समस्याएं हैं जिसकी वजह से आर्गन डोनर्स की कमी बनी हुई है।
- जागरुकता की कमी।
- मेडिकल सुविधाओं का अभाव
- सरकार की ओर से प्रोत्साहन की पहल की कमी। सरकार संबंधित परिवार को मुआवजा दे। या डोनर परिवार को जब जरूरत उसके लिए आर्गन्स उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे।
- 1995 के कानून में सुधार हो। कानून को तर्क संगत बनाया जाए।
- डोनर्स के परिवार को कार्ड दिया जाए।
- हर जिले में आर्गन्स को सुरक्षित रखने की सुविधा हो।
- स्वच्छता अभियान की तरह इसे भी जनआंदोलन बनाया जाए ताकि लोग इसके महत्व को समझें।
- मरते समय अपने परिवार के अंग दान करना चाहते हैं उनके लिए भी अस्पताल या सरकार की तरफ से कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है।
हर अंग को कुछ घंटे में ट्रांसप्लांट करना होता है नहीं तो वो बेकार हो जाता है। इस संबंध में AIIMS के सीनियर डॉक्टर मुकेश से बात हुई तो उन्होंने बताया कि हार्ट को निकालने के बाद 4-6 घंटे में, लिवर को 12-15 घंटे में, किडनी को 24-48 घंटे में और लंगस को 4-8 घंटे में ट्रांसप्लांट कर देना चाहिए। आर्गन डोनेशन की सुविधा जिलेवार तो नहीं है। लेकिन कहीं-कहीं मेडिकल कॉलेजों में हैं। अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो एम्स में अंगदान की सुविधा है जहां आप रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। सरकारी अस्पतालों में भी इसकी जानकारी मिलती है। इच्छुक व्यक्ति स्थानीय सरकारी अस्पताल से संपर्क कर सकता है। www.orbo.org.in पर संबंधित जानकारी मिल जाएगी। यहां से फॉर्म डाउनलोड कर सकते हैं। 24 घंटे हेल्पलाइन नंबर- 1060, 011 2659344, 26588360 पर फोन कर जानकारी ले सकते हैं या [email protected] पर ईमेल भेजकर डिटेल पता कर सकते हैं।
सत्येंद्र कुमार यादव, एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्विद्यालय के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर हैरान करने वाली सक्रियता । आपसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है ।
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