प्रतिभा ज्योति
लोग अक्सर सोशल साइटस पर अपने आकर्षक और खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट किया करते हैं। पोस्ट के बाद उम्मीदों के बादल इसी सोच के आस-पास घुमड़ते रहते हैं कि न जाने तस्वीरों को कितने लाइक्स मिले, तारीफ के कितने कमेंट मिले होंगे। उसने ऐसा तो नहीं सोचा था कि खूब वाहवाही मिलेगी। पर ऐसा भी नहीं सोचा था। फेसबुक पेज खोलते ही उसे खुद पर शर्म आने लगी थी कि आखिर क्या जरुरत थी औरों की तरह सोचने की, दूसरों की तरह हसीन मंसूबे पालने की? लोगों ने ऐसा क्या कमेंट लिख दिया कि कविता को खुद पर ग्लानि होने लगी थी? छी-छी-थू-थू.. यही कमेंट थे कविता के फोटो पर।
उत्तराखंड के हल्द्वानी की रहने वाली कविता बिष्ट देश की उन लड़कियों में शामिल है जिस पर पहले तो एसिड से हमला करके उसकी जिंदगी तबाह कर दी जाती है और उसके बाद परिवार और समाज उसे ही हिकारत की नजर से देखते हैं। वह एक पीड़ित है लेकिन समाज का रवैया उसके साथ ऐसा होता है मानों अपराध उसने किया है। कविता के साथ हुए इस घृणित अपराध की कहानी लंबी है और उससे भी लंबी है समाज और परिवार के साथ उसके संघर्ष की कहानी।
उसने अपने कल और आज के बीच समय की एक लंबाई नापी है फिर भी उसे कभी-कभी लगता है कि इतना गुजर कर भी उम्र बस वहीं ठहर सी गई है या जिंदगी कुछ दूर चलकर आगे बढ़ी नहीं। जबकि समय और जिंदगी की अपनी रफ्तार होती है और यह बेहिसाब भागती जाती है। हम तो बस यह गुणा-भाग करते हैं कि इस रफ्तार में हमने क्या खोया क्या पाया? वह भी हिसाब लगाने बैठती है तो पाती है कि इस घटना के बाद उसकी जिंदगी दर्द, पीड़ा, अपमान, उपेक्षा, घुटन शर्म और ग्लानि के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई।
2 फरवरी 2008 को दिल्ली से सटे खोड़ा कॉलोनी में एसिड हमले का शिकार बनी कविता देश की राजधानी में एक अदद नौकरी की तलाश में आई थी। गोरा रंग, खूबसूरत आंखें और लंबे बालों वाली कविता का तेज इतना था कि लोग उसकी ओर आकर्षित होने से खुद को रोक नहीं पाते थे । इसी बीच किसी सिरफिरे की मानो उसकी खूबसूरती पर नज़र लग गई और उसे बदरंग बनाने का सामान लेकर घूमने लगा । दरअसल सिरफिरे ने एक दिन अचानक कविता को शादी का प्रस्ताव दिया जिसे उसने खारिज कर दिया। एक दिन कविता ऑफिस से लौट रही थी तभी उसने एसिड से हमला कर दिया और कविता का कोमल चेहरा बर्बाद हो गया । इस घटना के बाद दिल्ली में ही थोड़ा-बहुत इलाज कराकर वह रानीखेत के बग्वाली पोखर लौट गई । लेकिन पहाड़ की गोद में बसे जिस गांव में उसे खूब लाड-प्यार मिला था वही गांव अब उसके साथ अजबनी और सौतेला बर्ताव करने लगा ।
एक संगीता दीदी ही है जो कविता के विकृत चेहरे के बाद भी उसकी सबसे प्यारी सहेली बनी हुई हैं । पुरानी सहेलियों और नाते-रिश्तेदारों ने तो कब का नाता तोड़ लिया है । हल्द्वानी के निर्भया सेंटर में कविता के साथ काम करने वाली संगीता दीदी से अक्सर कविता ये सवाल करती है कि ‘’आखिर लोग अच्छे रंग-रुप, अच्छी शक्ल को ही क्यों अहमियत देते हैं, आख़िर जिस हालात के लिए समाज ही जिम्मेदार है उसके लिए हम जैसी लड़कियों को उपेक्षा और बेचारी की नजर से क्यों देखा जाता है।”
समाज भले ही उसका साथ न दे रहा हो लेकिन राज्य सरकार उसका सहारा बनकर खड़ी है । निर्भया योजना में पीआरडी कोटे से उसे अनुसेवक पद पर नौकरी दी गई है। इस नौकरी के जरिए वह न केवल अपने पैरों पर खड़ी है बल्कि अपने परिवार का भी सहारा बनी है। उत्तराखंड सरकार ने सितंबर महीने में कबिता बिष्ट को उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया। एसिड अटैक के बाद कविता की आंखों की रौशनी भले ही चली गई हो लेकिन परिवार और समाज को नई दिशा देने के काम में जुटी है। अब असल जिम्मेदारी हमारी और आपकी है ताकि ऐसी लड़कियों को समाज में सिर उठाकर जीने का हक मिल सके।
प्रतिभा ज्योति। पिछले डेढ़ दशक से प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में सक्रिय। इन दिनों एसिड अटैक सर्वाइवर्स पर पुस्तक लेखन में मशगूल।
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