सत्येंद्र कुमार यादव
कहीं ऐसा ना हो बेटी धूप में जलती रहे
और आप चीन के दीये जलाएं!
इस दिवाली जरूर याद रखिएगा। ये बेटी आप के भरोसे मिट्टी के दीपक बना रही है। भूलना मत, ऐसी कई बेटियां हैं जो आपके लिए मिट्टी के दीये बना रही हैं। मां-बाप के साथ डिजाइनदार मिट्टी के बर्तनों को गढ़ने में हाथ बंटा रही हैं। पीएम मोदी ने भी मन की बात में खादी के कपड़े और मिट्टी के बर्तन खरीदने की अपील की। वहीं 2 नवंबर को यूपी के सीएम अखिलेश ने भी राज्य की जनता से अपील करते हुए कहा कि, ‘इस दिवाली मिट्टी के दीये और खिलौने इस्तेमाल करें’। सीएम अखिलेश ने यहां तक कहा कि, प्रजापति समाज को सरकार मिट्टी के लिए पट्टे पर जमीन देने की नीति बनाएगी। ताकि मजबूरी में जी रहे कुम्हारों की स्थिति सुधर सके। सरकार जमीन दे या ना दे, प्रजापति समाज के लिए नीति बनाए या ना बनाए, उसकी मर्जी। लेकिन इस दिवाली कुम्हारों के घर में दीये जलें इसके लिए कोशिश आपको करनी होगी।
पिछले एक दशक से देश में चाइनीज सामनों का इस्तेमाल बढ़ गया है। चाइनीज बल्ब की लड़ियों, दीपक, कई प्रकार के सजावटी सामान बाजार में उपलब्ध होने की वजह से लोगों ने मिट्टी के बर्तनों की ओर से मुंह मोड़ लिया है। नतीजा कुम्हारों का रोजगार संकट में है। मिट्टी के दीये बनाकर जीवन यापन करने वाले समाज पर आधुनिकता भारी पड़ रही है।
दस साल पहले का दिन याद कीजिए। हम सभी के घरों में जब तक मिट्टी के दीये नहीं जलते थे तब तक मोमबत्ती या कोई लाइट नहीं जलाई जाती थी। उत्साह से हम लोग कुम्हार के घर से दीये लाते थे। कभी-कभी कुम्हार जाति की महिलाएं, उनकी बेटियां मिट्टी के बर्तन पहुंचा जाती थीं। फिर हम उसे धो पोछकर थाली में सजाते थे, रुई की बत्ती बनाते थे, सरसों का शुद्ध तेल डालकर दीपक जलाते थे। घर के बच्चे इतने उत्साहित होते थे कि सबसे पहले कौन देवघर में, दरवाजे पर दीपक रखेगा की होड़ मची रहती थी। जिसके घर की जनसंख्या ज्यादा होती थी उनके घरों में दीपक जलाने और उसे सजाने की खुशी में खूब हो हल्ला होता था। आज भी गांव में ऐसा ही होता है लेकिन मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा धीरे-धीर खत्म होती जा रही है और नतीजा मिट्टी के दीयों के जगह चाइनीज दीयों ने ले ली है। उस दौर में कुंभकारों की आजीविका मिट्टी के बर्तनों पर ही चलती थी। मिट्टी के दीयों के बदले कोई पैसे देता था तो कोई अनाज। अब ऐसा नहीं है, लोगों की उदासीनता और महंगाई ने प्रजापति समाज के इस व्यवसाय को बर्बाद कर दिया है।
कुंभकार अब दूसरे व्यवसाय की ओर रुख कर रहे हैं। जो लोग अभी इस व्यवसाय में हैं वे बाजार को देखकर काफी कम मात्रा में मिट्टी के बर्तन बनाते हैं। वजह ये है कि ना तो उन्हें बाजार में खरीददार मिलता है और ना ही उचित दाम। वहीं दूसरी ओर बाजार में दूर्गा, गणेश, लक्ष्मी, भगवान शिव, महावीर हनुमान, राम-सीता की चाइनीज मूर्तियां कुंभकारों की बनाई मूर्तियां और दीये सस्ते दाम पर उपलब्ध हैं। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपका पर्यावरण सुरक्षित रहे, हवा साफ रहे और कुंभकारों का जीवन संकट में ना पड़े तो इस दिवाली मिट्टी के बर्तन और दीये ही इस्तेमाल कीजिएगा। इस व्यवसाय को संकट से उबारने के लिए सिर्फ सरकार के भरोसे ना बैठें, क्या पता सरकार आप के भरोसे बैठी हो?
सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व छात्र। सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता से आप लोगों को हैरान करते हैं। उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।
काए गुड़िया नई चीन्हो का… कहानी पढ़नी हो तो क्लिक करें