देश की आन-बान और शान के लिए मर मिटने वाला एक फ़ौजी जब समाजसेवा की ठान लेता है तो उसकी जो परिणति होती है वो बतौर अन्ना हजारे के रूप में पूरी दुनिया ने देखा है। अन्ना हज़ारे के आदर्शों पर चलने वाला वैसा ही एक फ़ौजी अपने गांव की सेवा करने का संकल्प लेकर पंचायत चुनाव में उतरा और गांव वालों ने उसे सेना नायक से गांव का नायक बनाने में जरा भी संकोच नहीं किया और उसे अपना मुखिया चुन लिया । हम बात कर रहे हैं जौनपुर जिले के धर्मापुर ब्लॉक में आने वाले मोहद्दीपुर गांव के नये मुखिया यानी ग्राम प्रधान अनिल यादव की जो 16 बरस तक मुस्तौदी के साथ चीन बॉर्डर से लेकर पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर दुश्मनों से लड़े । वो आज अपने गांव के विकास की जंग के लिए तैयार खड़े हैं । 34 साल की उम्र के जांबाज अनिल यादव ने टीम बदलाव के साथी एपी यादव के साथ अपने अनुभव, गांव की समस्याओं और विकास से जुड़े तमाम सपने साझा किए ।
बदलाव– फ़ौज की नौकरी छोड़ गांव की सेवा का विचार कब और कैसे आया।
अनिल- ये बात साल 2012-13 की है, उस दौरान मैं एनसीसी की दिल्ली 6 बटॉलियन में तैनात था। राजधानी में चुनावी सरगर्मियां तेज थी, आम आदमी पार्टी के नायक अरविंद केजरीवाल के कामकाज ने मुझे काफी प्रभावित किया। केजरीवाल के गुरु अन्ना हज़ारे को मैं अपना आदर्श मानता हूं, लिहाजा जब फौज़ में मेरी नौकरी 16 साल पूरी हुई तो मैंने अपने जीवन की दूसरी पारी अपने गांव की सेवा में गुजारने की सोची। अन्ना की तरह मैं भी नायक पद से इस्तीफ़ा देकर गांव लौट आया।
बदलाव– अन्ना ने कभी चुनाव नहीं लड़ा फिर आपका चुनावी अखाड़े में उतरने का मन कैसे बना ?
अनिल- फ़ौज में रहते हुए जब कभी छुट्टी के दिनों में मैं गांव आया करता था तो लोगों से मिलता रहता था। गांव के लोगों की हालत देख मुझे बहुत दुख होता था। सरकार इतनी योजनाएं चलाती है लेकिन कुछ लोगों की वजह से गरीबों तक उसका फ़ायदा नहीं पहुंच पाता। इसी साल जून में जब मैं गांव लौटा तो उसके कुछ महीने बाद ही पंचायत चुनाव का ऐलान हो गया। गांव के कुछ बड़े बुजुर्ग आए और कहा कि आपने देश की रक्षा में अपना खून बहाया है, आपसे ज्यादा भरोसेमंद इस गांव को और कौन मिल सकता है। मुझे भी लगा सिस्टम में आकर विकास की लड़ाई थोड़ी आसान हो सकती है लिहाजा मैंने हामी भर दी। गांव का साथ मिला और बंपर वोट से विजय मिली। गांववाले पूरी तरह मेरे साथ खड़े रहे जिसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कुल 6 उम्मीदवारों में से 4 की जमानत जब्त हो गई जबकि एक ने किसी तरह अपनी साख बचाई।
बदलाव– गांववालों को आप पर इतना भरोसा है तो आप सबसे पहले गांव के लिए क्या करना चाहेंगे?
अनिल- देखिए मैं गांव की सेवा के इरादे से आया हूं, मैंने गांव वालों को बोल दिया है कि विकास का जो भी पैसा आएगा वो आपसे पूछकर ही खर्च होगा। आम सभा में जिस काम के लिए मुहर लगेगी वो सबसे पहले किया जाएगा।
बदलाव– फिर भी आपने कुछ तो खाका खींचा होगा कि गांव के लिए क्या-क्या करना है ?
अनिल- पिछले कुछ महीनों में मैंने गांव के एक-एक शख्स से मुलाक़ात की है। हर किसी के घर गया, चाहे वो जिस वर्ग का हो। मैंने ये महसूस किया कि गांव में जागरुकता की कमी है, जिस वजह से हर कोई आसानी से भोले-भाले गांववालों को ठग लेता है। इसे इस तरह समझिए, सरकार गांवों में वृद्धा पेंशन बांटती है, लेकिन किसी को कभी पूरा पैसा नहीं मिलता, बिचौलिये बहला-फुसलाकर एक हिस्सा हजम कर जाते हैं। गरीबों का हक मारा जा रहा है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा ।
बदलाव– आपको अपने गांव में सबसे ज्यादा कमी किस बात की नज़र आती है ?
अनिल- हमारा गांव लोहिया गांव है, किसी भी लोहिया गांव में विकास के लिए करीब 34 डिपार्टमेंट काम करते हैं, लेकिन हमारे गांव में सिर्फ खानापूर्ति हुई है। लोहिया ग्राम योजना के तहत हमारे गांव में कुल 132 टॉयलेट बने हैं, जिनमें बमुश्किल 32 ही चालू हालत में हैं, बाकी किसी में छत नहीं है तो किसी में दरवाजा नहीं लगा है। तमाम तो ऐसे हैं जिसमें कमोड तक नहीं बैठा है। ऐसे में गांव वाले क्या करें, लिहाजा टॉयलेट को लोग सामान रखने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं। स्कूल के नाम पर सिर्फ एक प्राथमिक विद्यालय है। आगे की पढ़़ाई के लिए लड़के-लड़कियों को पास के गांव में जाना पड़ता है। लोहिया गांव होने के बाद भी हमारे गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
बदलाव– क्या गांव के लोगों ने कभी इसकी शिकायत नहीं की ?
अनिल- शिकायत करें भी तो किससे। सब अधिकारियों की मिलीभगत से ही तो चल रहा है। सरकार ने पैसा तो गांव के विकास के लिए भेज दिया लेकिन वो कैसे खर्च हो रहा है, काम ठीक से हुआ या नहीं, इसकी निगरानी भी उन्हीं को दी गई जिनपर काम कराने का जिम्मा होता है, ऐसे में कौन सुनने वाला है?
बदलाव– तो फिर आप उन अधिकारियों से कैसे निपटेंगे, आपको भी तो उसी सिस्टम में काम करना होगा ?
अनिल- बॉर्डर पर लड़ाई के दौरान हमें सिर्फ फतह दिखाई देती थी, सामने दुश्मन कौन है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था लिहाजा हमारा टॉरगेट गांव का विकास है और उसकी राह में जो भी रोड़ा डालेगा, उससे लड़ने-भिड़ने में मुझे कोई गुरेज नहीं है। मुझे चाहे कलेक्टर से लड़ना पड़े या सीएम के दरबार तक जाना पड़े, मैं जाऊंगा। गांव वाले मेरे साथ हैं मैं उनका हक किसी को भी खाने नहीं दूंगा ।मैं करगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर फतह करने वाले योगेंद्र यादव की प्लाटून से हूं। हमारी प्लाटून ने मुश्किल हालातों में कभी हार मानना नहीं सीखा है फिर मेरे पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं। अगले पांच साल में मैं गांव की सूरत और सीरत दोनों बदलकर दिखाऊंगा।
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Bahut accha.
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Sabhi pareshan aisa soch le to kitna accha ho