पुष्यमित्र
सरकारी आंकड़ों में बिहार में दस में से आठ बच्चे कुपोषित हैं। 26 फीसदी बच्चे अति कुपोषित हैं। 80 फीसदी महिलाएं एनीमिक हैं। किशोरियों का ब्याह हो रहा है। माताएं और बच्चे असमय मौत के चंगुल में फंस जाते हैं। मगर चुनावी शोर में इन सवालों को जगह नहीं मिल रही। न नीतीश के निश्चयों में, न नरेंद्र मोदी के विजन में। और तो और खुद पीड़ितों के लिए भी यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं है, उन्हें जात की पड़ी है. मुजफ्फरपुर के हरपुर गांव से यह जमीनी रिपोर्ट।
चुनावी ज़मीन पर मुद्दों की पड़ताल-5
जब यह बातचीत चल ही रही थी, तभी पीछे से एक 13-14 साल की लड़की आकर खड़ी हो गयी और उसने अपने भाई को झट से उठा कर गोद में ले लिया। मैंने देखा कि उस बच्ची के माथे पर सिंदूर लगा हुआ था… और यह लड़की कितने साल की है? 18-20 के होइहैं बाबू… वहां की महिलाएं उस बच्ची की उम्र छुपाने की कोशिश करने में जुट गयीं। उन्हें शायद बाल विवाह के कानून के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी होगी। इस बीच बक से लड़की ने खुद कह दिया कि वह 13-14 साल की है। फिर महिलाओं ने उस परिवार की कहानी सुनानी शुरू कर दी।
द्रौपदी देवी सूचना दे रही थीं कि किशोरियों को बंटने वाला आयरन टेबलेट एक सवा साल से बंटना बंद है। दवा घोटाले के शोरगुल में सरकारी दवा की खरीद ही पूरे राज्य में ठप है। मुझे वे आंकड़े याद आ गये, जिसके मुताबिक बिहार में 80 फीसदी से अधिक महिलाएं एनीमिक हैं। तभी 40-45 साल की एक महिला कांति कुमर गोद में सात-आठ साल के अपने पोते को लिए आकर खड़ी हो गयीं। शायद उन्हें किसी ने बताया था कि राशन कार्ड का पता लगाने लोग आये हैं। आते ही उन्होंने अपनी राम कहानी शुरू कर दी। मगर मेरी निगाह उनकी गोद में टंगे सात-आठ साल के लड़के पर थी। क्या नाम है? किशन मांझी। क्या हुआ इसको? खड़ा नहीं हो पाता है। काहे? कमजोर है… अतिकुपोषित है। पीछे से द्रौपदी देवी ने कहा। हम कहे कि इसको एनआरसी सेंटर में भरती करवा दो, मगर इ लोग माने तब न। पिछले साल इ टोला से 17 ठो अतिकुपोषित बच्चा को एनआरसी सेंटर में भरती करवाये थे। सब की माय दस दिन, बारह दिन में भाग के आ गयी।
17 बच्चे यहां अतिकुपोषित हैं? मेरे सवाल पर द्रौपदी देवी चौंक गयी। बोलीं, 17 ही ठो थोड़े है। हर घर में है। 400 परिवार का इ टोला है, आप जिस घर में जाइयेगा आपको कुपोषित बच्चा मिलेगा। 500 से कम बच्चा यहां थोड़े है। सब गरीब-गुरबा है, खाने का इंतजाम नहीं है। आंगनबाड़ी में 40 बच्चों का एडमिशन हो सकता है। बांकी बच्चा कहां जाये। और आंगनबाड़ी में भी पोषाहार दो महीना से बंद है। मुझे वे आंकड़े याद आ गये, कि बिहार में हर दस में आठ बच्चे कुपोषित हैं और इनमें 26 फीसदी बच्चे अतिकुपोषित हैं। पिछले दिनों जिज्ञासा संस्था के लोगों ने मुजफ्फरपुर के चार प्रखंडों में बेसलाइन सर्वे करवाया तो पता चला कि यहां 30 हजार से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और 12 हजार अतिकुपोषित।
422 घर की इस बस्ती में हर जगह एक जैसा माहौल था। खदखदाते बच्चे, काम करती औरतें और बीड़ी पीते बूढ़े। जवान लोग कहां गये? पैंजाब.. कमाने गये हैं। क्या करें, पहले भात का इंतजाम होगा, तब न भोट डालेंगे। आगे सात साल का अनुल मांझी मिला। अपने दादा के साथ मकई का सत्तू खा रहा था। बिल्कुल नंगे बैठा था। दादा ने कहा, असवारी हुई है, देवी आई है। तीन दिन से बोखार है। द्रौपदी देवी ने कहा, चेचक। टोले में आधे दर्जन से अधिक बच्चों को चेचक हुआ है। राम प्रवेश मांझी के बेटे की तो मौत भी हो गयी है। परसाल भी दो बच्चा खराब हो गया था, चेचक के कारण। हर साल बच्चे मरते हैं। इलाज नहीं कराते? अस्पताल नहीं ले जाते? अनुल मांझी के पिता डांगर मांझी ने कहा, पैसा नहीं है बाबू। डागदर बहुत पैसा मांगता है. सरकारी अस्पताल में डॉगडर मिलता कहां है… ? वोट डालेंगे? हां, बाबू। नेताजी आयेंगे तो कुछ मांगेंगे… ? ‘हां बाबू, मांगेंगे काहे नहीं, हमरे गांव तक आने के लिए रोड नहीं है। रोड यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है।’
(पुष्यमित्र की ये रिपोर्ट साभार- प्रभात खबर से)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
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