एक यारबाज अफ़सर की वीरगति को सलाम

विकास मिश्रा

साभार-विकास मिश्रा के फेसबुक वॉल से
साभार-विकास मिश्रा के फेसबुक वॉल से

मुकुल द्विवेदी का यूं जाना खल गया। मेरठ में मैं जब दैनिक जागरण का सिटी इंचार्ज था तब मुकुल द्विवेदी वहां सीओ थे। बेहद मृदुभाषी, पुलिसिया ठसक से दूर। सहज ही अच्छी दोस्ती हो गई। अक्सर मुलाकात होती थी। कभी दफ्तर में तो कभी हम दोनों के साझा मित्र संजय सिंह के घर पर। मेरा एक कनेक्शन इलाहाबाद का भी था, मैं उनसे सीनियर था।

श्रद्धांजलि

2003 की बात है, रात करीब ढाई बजे मेरे पास दफ्तर से फोन आया था। बताया कि बागपत का अखबार लेकर जा रही जीप को सिविल लाइन थाने में पुलिस ने बंद कर दिया है, ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया है। अब अखबार समय से बागपत पहुंचे, ये जिम्मेदारी मुझ पर डाली गई थी। मैंने थाने फोन किया, पता चला कि सीओ साहब गश्त पर थे। जागरण की गाड़ी ने उनकी गाड़ी में ठोंक दिया, जिसमें सीओ साहब घायल हो गए हैं। ये सीओ कोई और नहीं मुकुल द्विवेदी ही थे।

मथुरा में शहीद एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी
मथुरा में शहीद एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी

मैंने थानेदार हरिमोहन सिंह को फोन किया तो उन्होंने बताया कि साहब की गाड़ी ठोंकी है, सर, कैसे छोड़ सकता हूं, नौकरी चली जाएगी। जागरण की गाड़ी न होती तो ड्राइवर को कूट दिया जाता। मैंने कहा कि आप हैं कहां, बोले-अस्पताल में। मैंने कहा कि मुकुल का क्या हाल है। बोले सिर में चोट लगी है। मैंने कहा, बात करवा दीजिए। खैर, मुकुल से बात हुई। हाल-चाल हुआ, कुशल क्षेम हुआ। मैं सीधा अस्पताल गया, चोट ज्यादा नहीं थी, गनीमत थी। हंसी मजाक हुआ, मैंने मजाक में कहा कि इतनी मुस्तैदी से ड्यूटी निभाएंगे तो ऐसी ही आफत आएगी, आधी रात के बाद गश्त लगाने की क्या जरूरत थी..। मुकुल भी हंस पड़े। मुकुल ने खुद थानेदार से कहा कि गाड़ी छोड़ दो। मैंने कहा नहीं, एक कांस्टेबल भी साथ भेजिए। मेरी जिम्मेदारी सप्लाई पहुंचवाने की है, सिरफिरे ड्राइवर को बचाने की नहीं। मुकुल बोले-कोई बात नहीं हो जाता है।

मुकुल की मुझसे ही नहीं, वहां कई पत्रकारों से दोस्ती थी। दोस्त आइटम थे। जब हाथरस में थे, तब मेरी उनसे बातचीत हुई थी। यहां कामकाज की आपाधापी में बरसों तक बात नहीं हो पाई थी। दो हफ्ते पहले मुझे पता चला था कि मुकुल मथुरा में एसपी सिटी हैं, सोचा था कि बात करूंगा, लेकिन मुहूर्त नहीं निकल पाया। और जब उनके बारे में खबर आई तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मन कचोट रहा है, क्या कहूं, काश उन्हें फोन कर लिया होता, मथुरा है ही कितनी दूर, एक बार मिल आता, लेकिन अब क्या कहूं।

कहते हैं कि वीरों का हो कैसा बसंत। यानी वीरों का बसंत तो मोर्चे पर ही होता है। मुकुल द्विवेदी मोर्चे पर मारे गए। उनकी शहादत को नम आंखों से मैं सलाम करता हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे, उनके बुजुर्ग पिता, माता और पूरे परिवार को ये असीम दुख उठाने की क्षमता भी दे।


vikash mishra profileविकास मिश्रा। आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ संपादकीय पद पर कार्यरत। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन के पूर्व छात्र। गोरखपुर के निवासी। फिलहाल, दिल्ली में बस गए हैं। अपने मन की बात को लेखनी के जरिए पाठकों तक पहुंचाने का हुनर बखूबी जानते हैं। व्यावसायिक भागमभाग के बीच अपने मन की बात फेसबुक पर साझा करने में जरा भी संकोच नहीं करते।


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