बालमगढिया की छात्राएं गढ़ रही हैं सपनों की दुनिया

रूपेश कुमार

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अपनी कक्षा में विजयी मुद्रा में छात्राएं और छात्र। सभी फोटो-रुपेश

एक ओर जब देश में स्कूलों की स्थिति को लेकर विश्व बैंक की रिपोर्ट को लेकर कुछ बुद्धिजीवी चर्चा कर रहे थे, उसी दौरान कोसी के सुदूर एक गांव में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की दास्तान लिखी जा रही थी। राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा 2016 के रिजल्ट में मधेपुरा के एक गांव की छात्राएं इतिहास रच रही थीं।

मधेपुरा के सदर प्रखंड के बालमगढिया गांव में एक सरकारी स्कूल के पैंतीस बच्चों ने राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में सफलता हासिल की है। उल्लेखनीय यह है कि इन पैंतीस सफल बच्चों में छब्बीस छात्राएं हैं। इस सफलता के पीछे शिक्षक संजय कुमार की अहम भूमिका है, जिन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य गांव के वंचित तबके से आने वाले छात्र-छात्राओं के भविष्य को संवारना ही तय कर लिया है। संजय विद्यालय के बाद घर पर ही नि:शुल्क पढ़ाया करते हैं। इस काम में स्कूल के ही अन्य शिक्षक मनीष भी उनकी मदद करते हैं।

जिला मुख्यालय से करीब नौ किमी दूर बालमगढिया जाते हुए सड़क के आसपास स्थित घरों को देखते हुए यकीन करना कठिन हो गया कि इनकी दीवारों पर गोयठा थापते हाथों ने सफलता की नयी इबारत लिखनी शुरू कर दी है। इस पंचायत में ही दो गांव हैं बालम और गढिया। इस पंचायत को सांसद शरद यादव ने गोद लिया हुआ है। इसे आदर्श पंचायत घोषित किया गया है।

गढिया गांव की आठवीं की छात्रा आरती की आंखों में इस सफलता ने नया भरोसा पैदा कर दिया है। उसकी दो साल की मेहनत रंग लायी है। वह खुद पढ़ने के साथ-साथ संजय सर की कक्षा में दूसरे बच्चों को रीजनिंग का अभ्यास कराती है। पिता देवानंद यादव थोड़ी बहुत किसानी और राजमिस्त्री का काम करते हैं। कहते हैं बेटी जब तक पढ़ना चाहेगी, वह पढ़ायेंगे। उनकी आवाज में बेटी पर विश्वास झलकता है। आरती की मां कुमोद देवी अनपढ़ है लेकिन वह आरती को घर का काम नहीं करने देती ताकि उनकी बेटी कुछ बन सके। बालम और गढ़िया, इन्हीं दो गांव की मनीषा, किरण, लक्ष्मी, निशी, मौसम, खुश्बू, इशरत खातून, प्रियंका, रेणु कुमारी, कलावती कुमारी, कोमल प्रिया ने गरीबी, समाज और घर के बंधनों से जूझते हुए अपने इरादों को रोशन रखा। उनकी इस सफलता पर पूरा गांव समाज झूम उठा है।

balamgadhia-2कामयाब छात्रों की लिस्ट में शुमार नीतीश कुमार राम, राजू कुमार, निरंजन कुमार, लोचन कुमार राम, नीतीश कुमार आदि छात्र के मां-बाप मजदूरी किया करते हैं। हाल यह है कि नीतीश कुमार राम की मां शिक्षक संजय से पूछने आयी कि ये तो खेत पर काम भी नहीं करता और कहता कि कुछ पास कर गया है, क्या यह सही है?

विगत वर्ष नौ नवंबर को आयोजित इस परीक्षा में बुधवार तक जारी रिजल्ट में पूरे जिले से करीब 100 स्टुडेंट्स सफल हुए हैं। बालमगढिया में इस परीक्षा में सफलता की कहानी के पीछे कई वर्षों की मेहनत और लगन है। पिछले साल इस विद्यालय के बारह छात्र- छात्राओं ने परीक्षा में सफलता हासिल की थी। जिला टॉपर भी इसी विद्यालय से था। गांव के बच्चों में राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा में सफल होने की धुन सवार हो गई है। अब तो इस गांव का हाल यह है कि यहां पांचवीं में जाते ही बच्चे इस परीक्षा के लिए सिलेबस कंठस्थ कर लेते हैं।

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शिक्षक संजय कुमार। बालमगढ़िया की तस्वीर बदलने की मुहिम के अग्रदूत।

शिक्षक संजय कहते हैं कि वे इन बच्चों पर काफी मेहनत करते हैं लेकिन दुख तब होता है जब उन बच्चों के मां-बाप और समाज के लोग कम उम्र में ही इन बच्चियों की शादी कर देते हैं। गांव के कई ऐसी प्रतिभाशाली छात्राओं की शादी केवल इसलिए जल्दी कर दी गयी क्योंकि उन्हें विभिन्न प्रतियोगिताओं में शामिल होने के लिए बाहर जाना पड़ता था। हालांकि अब इन मानसिकताओं में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। वार्ड सदस्य कैलाश कुमार साह, शिक्षक मनीष कुमार और पुरूषोत्तम कुमार, धर्मेंद्र कुमार गांव के ही शिक्षित युवक सूरज कुमार आदि इस कार्य में शिक्षक संजय कुमार की पूरी मदद किया करते हैं।

विद्यालय में छात्रों से अधिक छात्राओं की संख्या है। इसके बारे में संजय कहते हैं कि लड़कियों को दोयम दर्जा दिया जाता है। इसलिए लोग लड़कों को पढ़ाई के लिए बाहर भेज देते हैं। लड़कियां यहीं रह जाती हैं। वैसे ही लड़के गांव में हैं, जिनके मां-बाप उन्हें बाहर भेजने में सक्षम नहीं होते। लेकिन इन बच्चों ने अपने सपने सच करने शुरू कर दिये हैं। गांव की लड़कियों ने मिल कर तय किया है कि वे लोग अपने – अपने टोलों में पांच छात्र-छात्रा को पढ़ायेंगी। इसी विद्यालय की सातवीं की छात्राओं से जब पूछा कि आठवीं में उनमें से कितने सफल होंगे तो उन्होंने एक साथ कहा – अस्सी…! बालमगढ़िया से लौटते वक्त यह यकीन हो चला है कि यहां एक बार फिर आना होगा किसी ‘किरण बेदी’ से मिलने… ?


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मधेपुरा के सिंहेश्वर के निवासी रुपेश कुमार की रिपोर्टिंग का गांवों से गहरा ताल्लुक रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद शुरुआती दौर में दिल्ली-मेरठ तक की दौड़ को विराम अपने गांव आकर मिला। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।


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