पुष्यमित्र के फेसबुक से साभार
1961 में जब ब्रिटेन की रानी भारत आई थी और नेहरू उसके स्वागत में बिछे जा रहे थे, तब इस कवि ने लिखा था।
आओ रानी हम ढोएंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहर लाल की।
उस वक्त लोकसभा में जवाहर लाल को 361 सांसदों का समर्थन था।
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1974-75 में जब इन्दिरा की तानाशाही के विरोध में जेपी आन्दोलन शुरू हुआ था, तब इसी कवि ने लिखा था।
इन्दूजी इन्दूजी क्या हुआ आपको
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को
उस वक़्त संसद में 352 कांग्रेस के सांसद थे।
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1984 में राजीव गांधी को 414 सीटें आई थी, मगर सरकार के कामकाज को देख कर इसी कवि ने राजीव गांधी को फूला हुआ गुब्बारा लिख दिया था।
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अभी तो सर्वे वाले भी 350 के पार नहीं गये हैं। उनके आँकड़ों में भी कई झोल हैं। फिर भी मोदी एक बार और आ गये तो क्या हम उन्हें छोड़ देंगे। एक बार और विपक्ष की भूमिका निभायेंगे। आखिर हम भी इसी जनकवि की परम्परा से हैं। जिन्होने लिखा था-
मैं लोक कवि हूं, मैं क्यों हकलाऊँ।
वैसे भी हम पत्रकार तो शास्वत विपक्ष हैं। मनमोहन के वक़्त भी थे, मोदी के वक़्त भी हैं। लालू के वक़्त भी थे, नीतीश के वक़्त भी हैं। रिजल्ट, सीटें और आँकड़ें और ट्रोल्स हमारे सच कहने के हौसले को कमजोर नहीं कर सकती।
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। प्रभात खबर की संपादकीय टीम से इस्तीफा देकर इन दिनों बिहार में स्वतंत्र पत्रकारिता करने में मशगुल ।